नई दिल्ली: पूरी दुनिया में एक अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक दिवस के तौर पर मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 14 दिसंबर 1990 को यह तय किया था कि था कि एक अक्टूबर को इंटरनेशनल डे ऑफ ओल्डर पर्संस के तौर पर मनाया जाए। इसके बाद 1991 से पूरी दुनिया में हर साल एक अक्टूबर को इंटरनेशल डे फॉर ओल्डर पर्संस यानी अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस या अंतरराष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक दिवस मनाया जाता है। इसका मकसद है बुजुर्गों को उनके अधिकार दिलवाना।साथ ही यह दिन हमें अवसर प्रदान करता है कि हम समाज में बुजुर्गों के योगदान को सम्मान देने के साथ ही समाज में वरिष्ठ नागरिकों की जरूरत और उनकी भलाई के लिए समुचित प्रयास करें।
भारत में बुजुर्ग
- 2011 तक देश में बुजुर्गों की आबादी 8.6 प्रतिशत थी, यह 2031 तक बढ़कर 13.1 फीसदी हो जाएगी
- 2031 तक भारत में बुजुर्गों की संख्या 19.4 करोड़ हो जाएगी जो फिलहाल 13.8 करोड़ है
भारत में 2007 में पास हुआ विधेयक
भारत में वर्ष 2007 में माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण विधेयक पारित किया गया था। इस विधेयक में माता-पिता के भरण-पोषण, वृद्ध आश्रमों की स्थापना, वरिष्ठ नागरिकों के लिए चिकित्सा सुविधा की व्यवस्था और उनके जीवन और संपत्ति की सुरक्षा का प्रावधान किया गया है।
बुजुर्गों में अकेलापन
देश में एकल परिवार व्यवस्था से सबसे ज्यादा बुजुर्ग प्रभावित हुए हैं। कुछ मामलों में बाल-बच्चे दूसरे शहर में रोजी-रोजगार के सिलसिले में चले जाते हैं और घर पर बुजुर्गों को अकेले जीवन यापन करना पड़ता है। ऐसे में उम्र बढ़ने के साथ ही कई तरह की शारीरिक समस्याओं का सामना कर रहे बुजुर्ग अपने आपको बेहद अकेला महसूस करने लगते हैं। इन्हीं समस्याओं के समाधान के लिए वृद्धा आश्रम की व्यवस्था की गई है।
सीनियर सिटिजंस के साथ फ्रॉड
तकनीकी तौर पर सक्षम नहीं होने की वजह से इन बुजुर्गों को समय-समय पर साइबर फ्रॉड का भी शिकार होना पड़ता है। कई बार धोखाधड़ी करके इनके एटीएम से पैसे भी निकाल लिए जाते हैं। इस तरह के कई मामले आए दिन सुनने को मिलते हैं।
बुजुर्गों के प्रति संवेदनशीलता जरूरी
वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण, इलाज आदि से जुड़े कई कानून भी हैं लेकिन सिर्फ कानून से समस्या का पूरा सामाधान नहीं मिलता। देश के हर नागरिक को बुजुर्गों के प्रति संवेदनशील होना पड़ेगा।