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निर्मल गंगा के लिए 764 उद्योग और हानिकारक कचरा सबसे बड़ी चुनौती

नई दिल्ली : नरेन्द्र मोदी सरकार की गंगा की अविरल एवं निर्मल धारा सुनिश्चित करने की पहल के समक्ष इस नदी के किनारे स्थित 764 उद्योग और उनसे निकलने वाले हानिकारक अवशिष्ट बहुत बड़ी चुनौती

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Published on: April 20, 2015 9:50 IST
निर्मल गंगा की पहल में...- India TV Hindi
निर्मल गंगा की पहल में हानिकारक कचरा सबसे बड़ी चुनौती

नई दिल्ली : नरेन्द्र मोदी सरकार की गंगा की अविरल एवं निर्मल धारा सुनिश्चित करने की पहल के समक्ष इस नदी के किनारे स्थित 764 उद्योग और उनसे निकलने वाले हानिकारक अवशिष्ट बहुत बड़ी चुनौती हैं।

सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत जल संसाधन एवं नदी विकास मंत्रालय के राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण से प्राप्त जानकारी के अनुसार, गंगा नदी के किनारे कुल 764 उद्योग अवस्थित हैं जिनमें 444 चमड़ा उद्योग, 27 रासायनिक उद्योग, 67 चीनी मिले, 33 शराब उद्योग, 22 खाद्य एवं डेयरी, 63 कपड़ा एवं रंग उद्योग, 67 कागज एवं पल्प उद्योग एवं 41 अन्य उद्योग शामिल हैं।

विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल में गंगा तट पर स्थित इन उद्योगों द्वारा प्रतिदिन 112.3 करोड़ लीटर जल का उपयोग किया जाता है । इनमें रसायन उद्योग 21 करोड़ लीटर, शराब उद्योग 7.8 करोड़ लीटर, कागज एवं पल्प उद्योग 30.6 करोड़ लीटर, चीनी उद्योग 30.4 करोड़ लीटर, चमड़ा उद्योग 2.87 करोड़ लीटर, कपड़ा एवं रंग उद्योग 1.4 करोड लीटर एवं अन्य उद्योग 16.8 करोड़ लीटर गंगा जल का उपयोग प्रतिदिन कर रहे हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि गंगा नदी के तट पर स्थित प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग और गंगा जल के अंधाधुंध दोहन से नदी के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो रहा है। गंगा की सफाई हिमालय क्षेत्र में इसके उद्गम से शुरू करके मंदाकिनी, अलकनंदा, भागीरथी एवं अन्य सहायक नदियों में होनी चाहिए।

साउथ एशियन नेटवर्क ऑन डैम, रिवर एंड पीपुल के संयोजक हिमांशु ठक्कर ने कहा कि उत्तराखंड में बड़े पैमाने पर बनने वाली जलविद्युत परियोजनाएं गंगा की अविरल धारा के मार्ग में बड़ी बाधा है। इसके कारण गंगा नदी समाप्त हो जाएगी क्योंकि नदी पर बांध बनाने की परियोजनाएं इसके उद्गम पर ही अवस्थित है।

आरटीआई के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार, सरकार ने गंगा की सफाई के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तहत कार्य योजना तैयार की है। इसके तहत तीन वर्षों की अवधि के लिए अल्पकालिक योजना, पांच वर्ष की अवधि के लिए मध्यावधि योजना तथा 10 वर्ष या इससे अधिक अवधि के लिए ‘दीर्घावधि योजना’ शामिल है। मंत्रालय ने बताया कि पहले जिन परियोजनाओं को मंजूरी मिल चुकी है, उन्हें भी इस कार्य योजना से जोड़ा गया है।

मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, 2014.15 के केंद्रीय बजट में समन्वित गंगा संरक्षण मिशन ‘नमामि गंगे’ के लिए 2137 करोड़ रूपये आवंटित किये गए थे जो अब 2035 करोड़ रूपये हो गया है। गंगा की सफाई से जुड़ी परियोजनाओं में इसका अध्ययन करना, अनुसंधान एवं शोध आदि गतिविधियां शामिल हैं।

आरटीआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार, राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकार के तहत विदेशी वित्त पोषण के रूप में विश्व बैंक से 7000 करोड़ रूपये मदद को मंजूरी मिली है जिसका उपयोग गंगा नदी में प्रदूषण को समाप्त करने के लिए विभिन्न योजनाओं के लिए 2019 तक किया जायेगा।

इस बीच, ‘नमामि गंगे’ योजना को अमलीजामा पहनाने के तहत सरकार ने प्रतिष्ठित संगठनों एवं एनजीओ को इस कार्य में जोड़ने का निर्णय किया है ताकि त्योहारों के मौसम और सामान्य दिनों में गंगा में फूल, पत्ते, नारियल, प्लास्टिक एवं ऐसे ही अन्य अवशिष्टों को बहाने पर नियंत्रण किया जा सके।

मंत्रालय जिन प्रमुख शहरों एवं धार्मिक स्थलों पर गंगा पर ध्यान केन्द्रित करने विचार कर रही है, उनमें केदारनाथ, बद्रीनाथ, रिषीकेश, हरिद्वार, गंगोत्री, यमुनोत्री, मथुरा, वृंदावन, गढ़मुक्तेश्वर, इलाहाबाद, वाराणसी, वैद्यनाथ धाम, गंगासागर शामिल हैं।

 

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