नई दिल्ली: अदृश्य लुटेरों का अंडरवर्ल्ड झारखंड के जामताड़ा में है जहां से आप और हम डिजिटल डकैतों के टारगेट पर बने हुए हैं। यह जगह देश में साइबर क्राइम का हेडक्वार्टर बन चुका है.क्योंकि हिंदुस्तान में होने वाली साइबर ठगी की करीब 80 फीसदी घटनाएं यहीं से अंजाम दी जाती हैं। इंडिया टीवी इन साइबर ठगों के ठकाने तक पहुंची। दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों से हजारों किलोमीटर दूर एक छोटे से शहर में है जिसका ज्यादातर लोगों ने नाम भी नहीं सुना होगा। लेकिन उस शहर के गांवों में जो गुनाह हो रहा है...उससे कश्मीर से कन्याकुमारी तक लोग कंगाल हो रहे हैं।
यहां सक्रिय गिरोह के लोग फोन नंबरों पर कॉल कर लोगों को अपने ठगी का शिकार बनाते हैं। फोन करके कहा जाता है कि उनका अकाउंट नंबर आधार से लिंक नहीं होने की वजह से बंद कर दिया गया है। इसपर लोग अकाउंट चालू करने का उपाय पूछकर इस गिरोह के जाल में फंसने लगते हैं। फिर कार्ड का नंबर और ओटीपी मांगकर अकाउंट से पैसे निकाल लिए जाते हैं।
दिल्ली के रहने वाले जितेंद्र कुमार के पास भी अप्रैल 2016 में ऐसी एक कॉल आई। फ़ोन करने वाले ने खुद को उसी बैंक से बताया जहां जितेंद्र का सैलरी अकाउंट था। उसने एटीएम पिन जेनरेट करने के बहाने वन टाइम पासवर्ड यानी ओर्टीपी मांगी। जितेंद्र झांसे में आ गए। जिसके बाद उनके अकाउंट से चार ट्रांज़ैक्शन में 60 हजार रुपये निकाल लिए गए।
जामताड़ा के दर्जनों गांवों में खतरनाक साइबर क्रिमिनल्स का डेरा है। खासतौर पर करमाटांड़ और नारायणपुर को साइबर क्राइम का हेडक्वार्टर माना जाता है। इंडिया टीवी की टीम सबसे पहले करमाटांड पहुंची। कटरामाटांड़ थाना क्षेत्र में कुल 150 गांव हैं। पुलिस के मुताबिक करमाटांड के दर्जनों गांवों के तार साइबर क्राइम से जुड़े हैं। इलाके के 80 फीसदी युवा इस तरह के अपराध में लिप्त हैं। कई गावों में परिवार के परिवार इस तरह के अपराधों को अंजाम दे रहे हैं।
बताया जाता है कि सीताराम मंडल और विक्की मंडल बाहर से ठगी का धंधा सीखकर यहां आए। इन दोनों ने ही जामताड़ा में साइबर क्राइम का जाल फैलाया। घर बैठे ठगी के इस धंधे में खूब पैसा कमाया। लिहाजा बाकी लोग भी इस धंधे मे आते गए। हर घर में सिर्फ एक ही धंधा है- कहीं बाप-बेटे एक साथ लगे हैं तो कहीं भाई- भाई। अब तो घर की महिलाएं भी इस हुनर में एक्सपर्ट हो गयी हैं।
इस इलाके में काफी मोबाइल टॉवर हैं। जिससे फोन और लैपटॉप पर बेहतर सिगनल मिलते हैं। ये गिरोह बड़े शातिराना अंदाज में लोगों से बातचीत करते हैं। उनका भरोसा जीतते हैं और जैसे ही सामने वाला भरोसे में आता है, फौरन उसका अकाउंट खाली कर देते हैं। जामताड़ा के जंगलों से दूसरे की मेहनत की कमाई पर डाका डालने वाले ये लुटेरे ठगी की कमाई से ऐशो आराम की जिंदगी जी रहे हैं। ठगी की इस कमाई से चार साल के दौरान जामताड़ा के आसपास के कई गांवों की तस्वीर बदल गई।