नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में अब दिन के हिसाब से तय होगा कि आप किस दिन गाड़ी चला सकते हैं और किस दिन नहीं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गाड़ियों की नंबर प्लेट पर ‘C’ ‘S’ और ‘R’ जैसे जो डिजिट दर्ज होते हैं उनका मतलब क्या होता है। देश की सड़कों पर चलने वाली हर गाड़ी का एक निश्चित रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस नंबर होता है। इस लाइसेंस प्लेट को आम भाषा में नंबर प्लेट कहा जाता है। इस नंबर प्लेट को हर राज्य में जिला स्तरीय क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय द्वारा जारी किया जाता है। यह सड़क मामलों की सर्वोच्च अथॉरिटी होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गाड़ियों की नंबर प्लेट पर दर्द गणितीय अंक और अंग्रेजी भाषा के एल्फाबेट ही गाड़ी की पूरी जन्मकुंडली बताने के लिए काफी होते हैं। आज हम आपको अपनी खबर के जरिए गाड़ियों के नंबर प्लेट की इसी ABCD को समझाने की कोशिश करेंगे।
समझिए कैसे एक दूसरे से अलग होती हैं नंबर प्लेट-
- प्राइवेट कार और दोपहिया वाहनों की नंबर प्लेट में सफेट ब्रैकग्राउंड (सफेद नंबर प्लेट) में काले अक्षरों से गाड़ी का नंबर लिखा होता है। मसलन TN-86-AF-1199।
- टैक्सी और ट्रक जैसे कमर्शियल वाहनों में नंबर प्लेट पीले रंग की होती है और उसमें काले रंग के अक्षरों से नंबर लिखा होता है। मसलन TN-86-AF-1199।
- अगर कार विदेशी दूतावास की है तो हल्के नीले रंग की नंबर प्लेट पर सफेद रंग से गाड़ी का नंबर लिखा होता है।
- भारत के राष्ट्रपति और राज्यों के गवर्नर आधिकारिक गाड़ियों में घूमते हैं और इनमें लाइसेंसी नंबर प्लेट नहीं होती है। हां इसकी जगह ऐसी गाड़ियों पर लाल रंग की प्लेट पर अशोक की लाट का चिन्ह होता है।
नंबर प्लेट के रजिस्ट्रेशन का मौजूदा फॉर्मेट-
- नंबर प्लेट रजिस्ट्रेशन का मौजूदा फॉर्मेट 4 भागों में बंटा होता है जो कि हैं...
- पहले दो लेटर यह बताते हैं कि गाड़ी किस राज्य की है और इसका रजिस्ट्रेशन कहां का है।
- अगले दो डिजिट यह बताते हैं कि गाड़ी किस जिले की है।
- तीसरा हिस्सा होता है 4 डिजिट के नंबर का जो नंबर प्लेट पर दर्ज होता है।
- चार डिजिट के नंबर से पहले एक प्रिफिक्स जुड़ा होता है जो दो नंबर का होता है।
- इसका चौथा हिस्सा गाड़ी की अंतर्राष्ट्रीय पहचान को बताता है।
नंबर प्लेट पर गाड़ियों की नंबरिंग के कुछ फायदे भी हैं..
- हर गाड़ी का रजिस्ट्रेशन हो जाता है जिससे उसके राज्य और जिले की स्थिति साफ हो जाती है।
- सड़क दुर्घटना में पुलिस जांच के दौरान, गवाहों को आम तौर पर गाड़ियों के शुरुआती नंबर याद रहते हैं। ऐसी स्थिति में भी डेटाबेस के जरिए संदिग्ध गाड़ी का पता लगाना थोड़ा आसान होता है।
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