नई दिल्ली. एक वक्त ऐसा था जब ज्यादातर ट्रेनें लेट चलती थी और भारतीय रेलवे को लेट लतीफी का परिचायक माना जाना लगा था। लेकिन हाल के वर्षों में रेलवे ने नई तकनीक और इंफ्रास्ट्रक्चर में बदलाव करके अपने टाइम टेबल को काफी हद तर सुधार कर लिया है। इसी क्रम में रेलवे को ट्रैवल टाइम कम करने वाली पुश-पुल टेक्नोलॉजी (push-pull technology) से काफी फायदा हुआ है। सबसे पहले इस टेक्नोलॉजी को राजधानी एक्सप्रेस में इस्तेमाल किया गया और यह पाया कि इस तकनीक की वजह से ट्रैवल टाइम 90 मिनट तक कम हो गया है। राजधानी एक्सप्रेस में इस प्रयोग के सफल होने के बाद अब रेलवे इस तकनीक को दूसरी ट्रेनों में भी इस्तेमाल करने की योजना बना रहा है।
आपको बता दें कि रेलवे ने हाल ही में पुश-पुल टेक्नोलॉजी पर चलने वाली पहली राजधानी एक्सप्रेस मुंबई से नई दिल्ली के लिए शुरू की थी। इस टेक्नोलॉजी से ट्रैवल टाइम में 90 मिनट तक का अंतर देखने को मिला। अब रेलवे 12 राजधानी एक्सप्रेस को इस टेक्नोलॉजी से लैस करने जा रही है जिससे यात्री बेहद कम समय में अपने गंतव्य तक पहुंच सकेंगे। आने वाले दिनों में सभी राजधानी और शताब्दी को 'पुश-पुल मोड' से लैस करने की योजना है।
पुश-पुल तकनीक
पुश-पुल तकनीक में एक इंजन आगे और एक इंजन पीछे होता है। आपने ज्यादातर पहाड़ी या ढलान वाले इलाकों में रेलवे ट्रैक पर ट्रेन के आगे और सबसे आखिरी में, दोनों तरफ इंजन लगे देखे होंगे। वैसे ही अब सामान्य ट्रेनों में भी इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाने लगा है। इस तकीनीक में एक इंजन जहां ट्रेन को आगे की ओर खींचेगा वहीं दूसरा इंजन ट्रेन को पीछे से ढकेलेगा। अभी पश्चिम की कई रेल प्रणालियों में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है।
160 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार
पुश-पुल तकनीक से राजधानी ट्रेनों की स्पीड बढ़ जाएगी और यह अपने गंतव्य स्टेशन तक जल्दी पहुंचेगी। इस तकनीक की वजह से राजधानी एक्सप्रेस अब आने वाले दिनों में अपना पूरा सफर 160 किलोमीटर की रफ्तार से पूरा करेगी। रेलगाड़ियों को मौजूदा रोलिंग स्टॉक (इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव और एलएचबी कोच) के साथ चलाया जा सकता है। सबसे पहले रेलवे ने वर्ष 2016 में जयपुर से जोधपुर तक पुश-पुल लोकोमोटिव का ट्रायल किया था। ट्रायल के बाद यह निष्कर्ष सामने आया कि अगर इस तकनीक का इस्तेमाल राजधानी के अलावा दूरंतो, एसी एक्सप्रेस और गरीब रथ में भी इस्तेमाल किया जाता है तो फिर रेलवे को हर साल करीब छह करोड़ रुपये की बचत होगी।