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रिटायर्ड आर्मी कमांडर ने इंडिया टीवी पर किया खुलासा, 'सेना सर्जिकल स्ट्राइक की PoK से दिल्ली तक कर रही थी LIVE STREAMING'

पाक अधिकृत कश्मीर के टेरर लॉन्च पैड से हो रही इस लाइव स्ट्रीमिंग को उधमपुर और दिल्ली स्थित सेना के मुख्यालय तक देखा जा रहा था। ले. जनरल (रिटा.) हूडा 40 साल की सेवा के बाद पिछले साल 30 नवंबर को रिटायर हुए हैं।

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: September 28, 2017 23:59 IST
DS Hooda- India TV Hindi
DS Hooda

नई दिल्ली: भारतीय सेना के उत्तरी कमांड के पूर्व जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ ले. जनरल (रिटा.) डीएस हूडा ने इंडिया टीवी को दिए एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में यह खुलासा किया है कि पिछले साल हुई सर्जिकल स्ट्राइक की लाइव स्ट्रीमिंग की जा रही थी। पाक अधिकृत कश्मीर के टेरर लॉन्च पैड से हो रही इस लाइव स्ट्रीमिंग को उधमपुर और दिल्ली स्थित सेना के मुख्यालय तक देखा जा रहा था। ले. जनरल (रिटा.) हूडा 40 साल की सेवा के बाद पिछले साल 30 नवंबर को रिटायर हुए हैं।

इंडिया टीवी के एंकर सौरव शर्मा को दिए एक लंबे इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि राजनीतिक नेतृत्व द्वारा पाक अधिकृत कश्मीर में टेरर लॉन्च पैड पर हमला करने का फैसला लिए जाने के बाद किस तरह पिछले साल 28 सितंबर को सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक की प्लानिंग को अंजाम दिया।  'हां, हम लोगों को लाइव इमेज मिल रही थी। मैं उधमपुर स्थित कमांड हेडक्वॉर्टर के ऑपरेशन रूम में बैठा हुआ था। मैंने पूरे ऑपरेशन को लाइव देखा, कैसे हमारी टीम ने टारगेट पर हमला किया और पूरी लाइव फीड दिल्ली स्थित आर्मी हेडक्वॉर्टर भेजी जा रही थी।'

यह पूछे जाने पर कि दिल्ली के आर्मी हेडक्वॉर्टर में कौन लोग लाइव फीड को देख रहे थे, पूर्व आर्मी कमांडर ने कहा, 'मुझे नहीं मालूम कि दिल्ली में कौन इसे देख रहा था लेकिन उधमपुर में हमलोग इसे देख रहे थे।' यह पूछे जाने पर कि यह तस्वीर के रूप में प्राप्त हो रही थी वीडियो, उन्होंने कहा, 'वीडियो'।

यह पूछे जाने पर कि यह वीडियो उन्हें सैटेलाइट के जरिए मिल रहा था या किसी और माध्यम से, उन्होंने कहा, मैं इसका खुलासा नहीं कर सकता कि कौन सी टेक्नोलॉजी हमने यूज की थी, लेकिन भारतीय सेना के पास वह क्षमता है, जहां आप जारी ऑपरेशन की लाइव स्ट्रीमिंग देख सकते हैं। हमारे पास क्षमता है।'' यह पूछे जाने पर कि क्या प्रधानमंत्री या राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दिल्ली में बैठकर लाइव स्ट्रीमिंग देख रहे थे, उन्होंने कहा, मैं नहीं जानता, लेकिन उस दिन फीड दिल्ली भेजी जा रही थी।'

ले. जनरल (रिटा.) हूडा ने यह खुलासा किया कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद स्पेशल फोर्सेज की अंतिम टीम सुबह 6.30 या 7 बजे के आसपास वापस लौटी। 'कुछ टीमें पहले लौट आई थीं। उन्होंने अपने टारगेट को मध्यरात्रि के बाद ध्वस्त कर दिया था और वापस लौट गए थे, जबकि कुछ अन्य टीमें बाद में गईं थी और देर से लौटीं।''

'पाकिस्तान की सेना में गजब की घबराहट थी। कुछ जगहों पर उन्होंने बेतरतीब ढंग से फायरिंग भी की। हमारे पास बैकअप प्लान भी था। अगर कोई टीम ऑपरेशन के दौरान फंस जाए और वापस लौटने में कठिनाई हो तो इसके लिए भी हमारे पास टीम थी, जो उन्हें रेस्क्यू करके वापस ला सके।'

पूर्व आर्मी कमांडर ने यह भी खुलासा किया कि सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक खत्म होने के तुरंत बाद इसकी घोषणा करने का मन बना लिया था। 'यह पहले से तय कर लिया गया था। सरकार ने यह फैसला कर रखा था कि हमलोग सर्जिकल स्ट्राइक के बाद इसकी घोषणा करेंगे। अगर हम यह चुपचाप करते और यदि यह योजना के मुताबिक नहीं होता तो आप यह कह सकते हैं कि कुछ नहीं हुआ, हमने किसी तरह का हमला नहीं किया।' 

'लेकिन इस बार सरकार ने यह फैसला लिया कि अगर यह सफल सर्जिकल स्ट्राइक होती है तो तब हम लोग इसका क्रेडिट लेंगे। अगर यह सफल नहीं होती तो उन्हें आलोचना भी झेलनी पड़ती। इसलिए इस अभियान को सफल बनाने के लिए भारतीय सेना पर बड़ा दबाव था।' 

पूर्व आर्मी कमांडर ने कहा, सर्जिकल स्ट्राइक के लिए गई स्पेशल फोर्सेज की टीम के लिए यह बेहद नजदीकी मुकाबला था। रात में इस तरह के ऑपरेशन के दौरान आपको अपने टारगेट के करीब जाना पड़ता है और यह बेहद करीबी मुकाबला होता है। उनकी तरफ से भी फायरिंग हुई थी। इस बार वे पूरी तरह सरप्राइज्ड रह गए। जब स्पेशल फोर्सेज टारगेट तक पहुंच गई और हमला किया, तभी उन्हें इस स्ट्राइक का पता चला।'

ले. जनरल (रिटा.) हूडा ने कहा, 'चार से पांच टेरर लॉन्चिंग पैड को टारगेट करके वहां काफी नुकसान पहुंचाया गया। 70-80 या 90 कैजुअल्टी हो सकती है, लेकिन संख्या महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि हमारे सभी सोल्जर सुरक्षित वापस लौट आए।' उन्होंने यह स्वीकार किया कि इस हमले में एक दिन की देर हुई। 'शुरुआती प्लानिंग के मुताबिक स्पेशल फोर्सेज को 27 सितंबर को कूच करना था लेकिन बाद में यह 28 सितंबर को संभव हो पाया।'

यह पूछे जाने पर कि क्या स्पेशल फोर्सेज पाक अधिकृत कश्मीर में एक दिन पहले से रुकी हुई थी, उन्होंने कहा, 'किसी भी टारगेट पर हमला करने से पहले ऑब्जर्वेशन जरूरी होता है। हमारे पास सैटेलाइट की तस्वीरें और अन्य सूचनाएं थीं, लेकिन फाइनल एक्शन लेने से पहले आपको खुद टारगेट का मुआयना करने की भी जरूरत होती है। यह हो सकता है कि आतंकियों की संख्या अनुमान से ज्यादा या कम हो। ऑब्जर्वेशन हमेशा स्पेशल फोर्सेज की काम का एक हिस्सा रहा है।'  ले. जनरल (रिटा.) हूडा ने यह बताने से इनकार कर दिया कि कितनी टीमें भेजी गई थीं, लेकिन उन्होंने कहा, 'जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में पीर पंजाल के दोनों तरफ के टेरर लॉन्च पैड को टारगेट किया गया।' 

यह पूछे जाने पर कि नियंत्रण रेखा से कितनी दूरी तय की गई होगी, उन्होंने कहा, 'एलओसी पर पाक सेना की मुख्य डिफेंसिव लाइन से लेकर कई तरह की दूरियां थीं जो स्पेशल फोर्सेज को तय करनी पड़ीं।'  यह पूछे जाने पर कि यह दूरी 500 मीटर से ज्यादा और एक किलोमीटर तक की थीं, उन्होंने कहा, 'इससे ज्यादा। कुछ ऐसे डिटेल्स हैं जिनका खुलासा सरकार कुछ अच्छी वजहों से नहीं करना चाहती।'

उन्होंने बताया कि कैसे उरी आर्मी कैंप पर हुए हमले में 18 सैनिकों के शहीद होने के बाद सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक करने का फैसला किया। 'यह हमारे लिए एक बड़ा झटका था। हाल के दिनों मेंआतंकियों द्वारा सेना पर किया गया यह सबसे बड़ा हमला था। तब हमने बदला लेने का फैसला किया। सरकार और आर्मी हेडक्वार्टर दोनों ने यह फैसला किया कि इसका बदला लेना जरूरी है। बदले की कार्रवाई छोटी-मोटी नहीं होनी चाहिए बल्कि बड़े स्तर पर कुछ किया जाना चाहिए। दोनों ने यह फैसला किया कि कुछ बड़ा करना चाहिए जिससे पाकिस्तान को एक मैसेज दिया जा सके। सरकार एक तगड़ा जवाब चाहती थी।'

पूर्व कमांडर ने कहा, 'सरकार की तरफ से यह स्पष्ट आदेश था कि मल्टीपल टारगेट पर स्ट्राइक किया जाए। हमलोग टेरर लॉन्च पैड के बारे में सूचनाएं जुटा चुके थे और फोर्सेज को भी ट्रेनिंग दी जा रही थी। मुझे आर्मी चीफ जनरल दलबीर सिंह का आदेश मिला और हमने विशेष टारगेट तय किए। इसके बाद स्पेशल फोर्सेज को बताया कि किन टारगेट पर हमला करना है।'

'उधमपुर में हमारे कमांड हेडक्वॉर्टर में प्लानिंग स्टाफ की एक छोटी सी टुकड़ी है जिसे ऑपरेशन ब्रांच के रूप में जाना जाता है। दिल्ली स्थित डायरेक्टोरेट ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस के कुछ अधिकारी इसके बारे में जानते थे। ये लोग रक्षा मंत्रालय और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से संपर्क करते थे। जैसे ही प्लानिंग पूरी कर ली गई, जम्मू-कश्मीर स्थित 15 और 16 कोर के कमांडरों को इसके बारे में बताया गया।'

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