इंडिया टीवी के एडिटर इन चीफ रजत शर्मा ने दिल्ली सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमेटी (DSGMC) के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि जो बात दुनिया में कोई सोच भी नहीं सकता, गुरु गोविन्द सिंह ने उसे करके दिखाया। 42 योद्धा दस लाख सैनिकों का मुकाबला करे, ऐसा उदाहरण अकेला है। एक पिता अपने दो जवान बेटों को देश के लिए कुर्बान कर दे, ऐसा उदाहरण इतिहास में अकेला है।
रजत शर्मा के भाषण की पूरी स्क्रिप्ट
इस सभागार में उपस्थित बहनों और भाइयों -
स्मृति ईरानी जी, एक ऐसी वक्ता, जिनकी जिह्वा पर साक्षात् सरस्वती विराजमान हैं, सुखबीर जी, आपको देश हमेशा याद रखेगा आपने स्वर्ण मंदिर के परिसर को इतना सुन्दर बनवाया, हरसिमरत जी, जिनकी वाणी विरोधियों को खामोश कर देती है - अन्य महानुभाव - सबसे पहले तो मैं मनजीत सिंह जीके और मनजीत सिंह सिरसा का शुक्रिया अदा करता हूं कि चार साहिबज़ादों की शहादत पर आपने ये कार्यक्रम रखा.. मुझे यहां आमंत्रित किया।
मैं आभारी इसलिए हूं कि बचपन में मैने गुरु गोविन्द सिंह की वीरता के किस्से सुने। चार साहिबज़ादों की शहादत की कहानी सुनी। हमेशा उनसे प्रेरणा ली, लेकिन कभी सोचा नहीं था कि उनकी कुर्बानी को याद करने के, उनकी बाहादुरी के समारोह में मुझे शामिल होने का अवसर मिलेगा।
जीवन में बहुत सारे युद्धों के बारे में पढ़ा है। अपने वतन के लिए बलिदान देने वाले बहुत से वीरों के बारे में सुना है लेकिन पूरी दुनिया में - पूरे इतिहास में साहबज़ादा अजीत सिंह, जूझार सिंह के 42 योद्धा दस लाख सैनिकों का मुकाबला करे, ऐसा उदाहरण अकेला है। एक पिता अपने दो जवान बेटों को देश के लिए कुर्बान कर दे, ऐसा उदाहरण इतिहास में अकेला है।
फिर नौ साल के ज़ोरावर और सात साल के फतेह सिंह ने सिर नहीं झुकाया... ऐसा उदाहरण दूसरा नहीं है। मुगलों ने दो बच्चों को दीवार में चिनवा दिया.... ऐसी शहादत का उदाहरण दुनिया में दूसरा नहीं है... ऐसे वीर पैदा हों... ऐसे बहादुर शहादत दें, जिसके लिए पिता भी श्री गुरु गोविन्द सिंह जैसा होना चाहिए। मुझे तो आश्चर्य होता है... रोंगटे खड़े हो जाते हैं... आपके सामने 10 लाख की सेना हो, गुरु के साथ 40 लडाके हों... दो अपने सपूत हों... 42 के सामने 10 लाख.. कोई लड़ने की बात सोच भी कैसे सकता है ? लेकिन श्री गुरु गोविन्द सिंह ने तो सोचा। अपनी छोटी सी फौज पर भरोसा किया और जीत हासिल की।
एक नौजवान से मैने पूछा , सामने शेर आ जाए तो क्या करोगे? उसने कहा, मुझे क्या करना है, जो करेगा, शेर करेगा, लेकिन गुरु गोविन्द सिंह जी की सोच अलग थी> जो बात दुनिया में कोई सोच भी नहीं सकता, गुरु गोविन्द सिंह ने करके दिखाया।
आज बस यही सीखने की जरूरत है। जरा सोचिए, उन्होंने हिम्मत कैसे की। चिंडियो दे वाल बाज लड़ाका। देश के नौजवानों में ये विश्वास पैदा हो जाए कि हम लड़ सकते हैं... जीत सकते हैं... जो असंभव है उसे करके दिखाना है। अपने बच्चों को सजा कर मौत के मुंह में भेजा। चार साहबज़ादों की वीरता...यही तो जज़्बा है।
मैं तो हैरान हो जाता हूं... 7 साल और नौ साल के बच्चे मुगल सेनापति से कहते हैं...हम अपने गुरु पिताजी के अलावा और किसी के सामने सिर नहीं झुकाते। हमें सिर कलम कराना मंज़ूर है , सिर झुकाना मंज़ूर नहीं. लेकिन इतिहास में नाम सोने के अक्षरों में लिखाना है तो ऐसे ही साहस की जरूरत होती है।
मोदीजी बार-बार याद दिलाते हैं...दो साल बाद भारत दुनिया का सबसे ज्यादा युवाओं वाला देश बन जाएगा। एक ऐसा मुल्क जहां 50 परसेंट से ज्यादा आबादी की उम्र 25 साल से कम होगी.।
हमारे नौजवानों में जोश है, लगन है, ताकत है, तो फिर हमें दुनिया में सबसे बडी ताकत बनने से कौन रोक सकता है? इसलिए चार साहबज़ादों के बलिदान को, उनकी शहादत को, उनकी हिम्मत को, हर रोज़ याद करने की जरूरत है। Delhi Sikh Gurudwara Management Committee ने इस काम की शुरुआत की है, इसके लिए मैं उनका बहुत बहुत अभिनन्दन करता हूं।