Sunday, December 22, 2024
Advertisement
  1. Hindi News
  2. भारत
  3. राष्ट्रीय
  4. भारत को ‘अतीत के तीन बोझ’ के कारण विदेश नीति में प्रभाव हासिल करने के लिए संघर्ष करना पड़ा: एस जयशंकर

भारत को ‘अतीत के तीन बोझ’ के कारण विदेश नीति में प्रभाव हासिल करने के लिए संघर्ष करना पड़ा: एस जयशंकर

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि भारत को विदेश नीति के क्षेत्र में अपना प्रभाव हासिल करने के लिये पराक्रम के साथ संघर्ष करना पड़ा क्योंकि उसकी विदेश नीति को अतीत के तीन बड़े बोझ- बंटवारा, आर्थिक सुधार में देरी और परमाणु विकल्प संबंधी लंबी कवायद का सामना करना पड़ा।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Updated : July 22, 2020 0:32 IST
S. Jaishankar
Image Source : PTI S. Jaishankar

नयी दिल्ली: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि भारत को विदेश नीति के क्षेत्र में अपना प्रभाव हासिल करने के लिये पराक्रम के साथ संघर्ष करना पड़ा क्योंकि उसकी विदेश नीति को अतीत के तीन बड़े बोझ- बंटवारा, आर्थिक सुधार में देरी और परमाणु विकल्प संबंधी लंबी कवायद का सामना करना पड़ा। पूर्व राजनयिक एवं विदेश मंत्री ने यह टिप्पणी अपनी नई पुस्तक ‘‘ द इंडिया वे : स्ट्रेटजीज फार एन अनसर्टेन वर्ल्ड’’ में की है। इस पुस्तक का विमोचन 7 सितंबर को होना है। 

जयशंकर ने इसमें भारत के समक्ष पेश आने वाली चुनौतियों और संभावित नीतिगत प्रतिक्रिया का उल्लेख करते हुए कहा कि 2008 में वैश्विक आर्थिक संकट से लेकर 2020 की कोरोना वायरस महामारी की अवधि में विश्व व्यवस्था में वास्तविक बदलाव देखने को मिले हैं। उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है कि विश्व व्यवस्था में भारत ऊपर की ओर उठ रहा है, ऐसे में उसे अपने हितों को न सिर्फ स्पष्टता से देखना चाहिए, बल्कि प्रभावी ढंग से संवाद भी करना चाहिए। विदेश मंत्री ने कहा कि भारत की विदेश नीति अतीत के तीन बोझ को ढो रही है। 

उन्होंने कहा, ‘‘ इसमें से एक 1947 का विभाजन है जिसने देश को जनसंख्या और राजनीतिक तौर पर कम करने का काम किया। अनायास ही चीन को एशिया में अधिक सामरिक जगह दी गयी। दूसरा, आर्थिक सुधार में देरी रही जो चीन के डेढ़ दशक बाद शुरू हुआ। यह 15 वर्षो का अंतर भारत को बड़ी प्रतिकूल स्थिति में रखे हुए हैं। ’’ 

जयशंकर ने कहा कि तीसरा, परमाणु विकल्प संबंधी कवायद का लम्बा होना रहा। उन्होंने कहा,‘‘इसके परिणामस्वरूप भारत को इस क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाने के लिये पराक्रम के साथ संघर्ष करना पड़ा, जो पूर्व में आसानी से किया जा सकता था।’’ 

उन्होंने अपनी पुस्तक को भारतीयों के बीच एक ईमानदार संवाद को प्रोत्साहित करने वाली पहल बताया। मंगलवार की शाम को जयशंकर ने अपने ट्वीट में कहा, ‘‘ दो वर्ष की परियोजना अंतत: पूरी हुई। उन सभी को धन्यवाद जिन्होंने इसे संभव बनाया। सितंबर के प्रारंभ में किताब को दुकान पर उपलब्ध होनी चाहिए। ’’ एक बयान में प्रकाशक हार्पर कोलिन्स इंडिया ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों की प्रकृति और नियम बदल रहे हैं और भारत के लिये इसका अर्थ अपने लक्ष्यों की बेहतरी के लिये सभी महत्वपूर्ण ताकतों के साथ अधिकतम संबंध बनाना है। 

इसमें कहा गया है कि, ‘‘जयशंकर ने इन चुनौतियों का विश्लेषण किया है और इसकी संभावित नीतिगत प्रतिक्रिया के बारे में बताया है। ऐसा करते हुए वह अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियों के साथ भारत के राष्ट्रीय हितों का संतुलन बनाने को काफी सचेत रहे।’’ जयशंकर ने अपनी पुस्तक में लिखा कि विभिन्न स्तरों पर वर्षो तक अपने नेतृत्व के साथ संवाद करना महत्वपूर्ण है और जिसे शब्दों में पिरोना कठिन है। 

प्रकाशक कृष्ण चोपड़ा ने कहा कि यह पुस्तक जटिल परदृश्य को स्पष्ट करती है और आगे की राह दिखाती है। उल्लेखनीय है कि जयशंकर 2015-18 तक विदेश सचिव, 2013-15 तक अमेरिका में भारत के राजदूत, 2009-13 तक चीन में राजदूत, 2007-09 के दौरान सिंगापुर में उच्चायुक्त और 2000-04 के दौरान चेक गणराज्य में राजदूत रहे । 

Latest India News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। National News in Hindi के लिए क्लिक करें भारत सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement