नयी दिल्ली: आतंकवाद को देशों के लिए ‘‘अस्तित्व का खतरा’’ बताते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा कि कोई भी देश इससे सुरक्षित नहीं है और वक्त की मांग है कि आतंकवाद और उसका इस्तेमाल ‘‘सुविधा के साधन’’ के तौर पर करने वालों को कतई बर्दाशत नहीं किया जाए। स्वराज ने ‘रायसीना डायलॉग’ में विभिन भूराजनीतिक घटनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत की ताकत और सफलता वैश्विक शांति, स्थिरता और समृद्धि के लिए एक शक्ति रही है। उन्होंने कहा कि भारत लोकतांत्रिक और नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का समर्थन करता है, जिसमें सभी देश बराबर हों।
उन्होंने कहा कि भारत का लगातार यही संदेश रहा है कि अनसुलझे सीमा विवादों का समाधान द्विपक्षीय तौर पर हो सकता है, जब प्रयास सही भावना और ऐसे माहौल में किये जाएं जो कि हिंसा और शत्रुता से मुक्त हों। उनकी इस टिप्पणी को परोक्ष तौर पर चीन की तरफ इशारे के तौर पर देखा जा रहा है जिसके साथ भारत का लंबे समय से सीमा विवाद है। स्वराज ने यह भी कहा कि क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता बरकरार रखने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता अटूट है।
उन्होंने विश्व के समक्ष उत्पन्न विभिन्न चुनौतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि बहुपक्षवाद में अटूट आस्था के जरिए भारत ना केवल अपने बल्कि विश्वभर के लोगों के लिए न्याय, अवसरों और समृद्धि की बात करता है। उन्होंने कहा, ‘‘हमारे लिए, परिवर्तन केवल घरेलू एजेंडा नहीं बल्कि वैश्विक दृष्टिकोण है।’’
स्वराज ने विश्व के समक्ष उत्पन्न आतंकवाद की चुनौती की बात करते हुए कहा कि ऐसा समय था जब भारत आतंकवाद पर बात करता था और कई वैश्विक मंचों पर इसे कानून एवं व्यवस्था के मुद्दे के तौर पर देखा जाता था। उन्होंने कहा, ‘‘आज, कोई भी बड़ा या छोटा देश, अस्तित्व के लिए खतरा बने इस आतंकवाद विशेषकर राष्ट्रों द्वारा सक्रिय तौर पर समर्थित एवं प्रायोजित आतंकवाद से सुरक्षित नहीं है। कट्टरपंथ के अधिक खतरे के साथ इस डिजिटल युग में चुनौतियां और बढ़ गई हैं।’’
उन्होंने 1996 में संयुक्त राष्ट्र में अंतररष्ट्रीय आतंकवाद पर एक व्यापक संधि के लिए भारत के प्रस्ताव का उल्लेख किया। उन्होंने कहा, ‘‘यह आज भी केवल मसौदा बना हुआ है क्योंकि हम सभी आतंकवाद की एक साझा परिभाषा पर सहमत नहीं हो पाए। यह सुनिश्चित किया जाना समय की मांग है कि आतंकवाद और उसका इस्तेमाल सुविधा के साधन के तौर पर करने वालों को कतई बर्दाशत नहीं किया जाए।’’ उन्होंने सामूहिक विनाश के हथियारों के प्रसार की विश्व के समक्ष उत्पन्न एक अन्य चुनौती के तौर पर पहचान की।
स्वराज ने कहा, ‘‘हमने अपने पड़ोस में अधिक संसाधन और ध्यान लगाया है, न केवल औपचारिक कूटनीतिक संबंधों में बल्कि अगली पीढ़ी के क्षेत्रीय सम्पर्क और महत्वपूर्ण आधारभूत ढांधे के संबंध में और जरूरत एवं संकट के समय में भी।’’ उन्होंने भारत की ‘क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास’ (एसएजीएआर) पहल की बात की और कहा कि इससे हाल के वर्षों में हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के संबंधों में गुणात्मक परिवर्तन आया है।
उन्होंने कहा कि भारत स्थायी विकास साझेदारी का निर्माण कर रहा है जो कि हिंद महासागर से प्रशांत द्वीप समूह से कैरेबियन और अफ्रीका महाद्वीप से अमेरिका तक फैला हुआ है। स्वराज ने विभिन्न बहुपक्षीय मंचों पर भारत के संबंधों का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत वैश्विक शांति एवं सुरक्षा को बढ़ावा देने और बरकरार रखने में एक सक्रिय एवं रचनात्मक योगदानकर्ता है। उन्होंने रायसीना डायलाग के आयोजकों की प्रशंसा करते हुए कहा कि विदेश नीति पर चर्चा एवं परिचर्चा केवल कुछ लोगों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, चाहे वे राजनीतिक हों, नौकरशाह हो या संभ्रांत शिक्षाविद् हों।