नई दिल्ली: भारत के एक नौजवान ने एक दिया था “मैं आजाद हूँ, आजाद रहूँगा और आजाद ही मरूंगा” और वह नौजवान था देश की आजादी के लिए अपनी जान की कुर्बानी देने वाले महान क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद। मात्र 24 साल की उम्र में चन्द्रशेखर आजाद अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हो गए। चन्द्रशेखर आजाद का आज जन्म 23 जुलाई 1906 को उन्नाव जिले के बदरका कस्बे में हुआ था। उनके पिता का नाम सीताराम तिवारी तथा माता का नाम जगरानी देवी था। चन्द्रशेखर की शुरूआती पढ़ाई मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में हुई। बाद में उन्हें वाराणसी की संस्कृत विद्यापीठ में भेजा गया। आजाद का बचपन आदिवासी इलाकों में बीता था, यहां से उन्होंने भील बालकों के साथ खेलते हुए धनुष बाण चलाना व निशानेबाजी के गुर सीखे थे।
1919 में अमृतसर के जलियांवाला बाग कांड ने उन्हें झकझोर कर रख दिया था। चन्द्रशेखर उस समय पढ़ाई कर रहे थे। तभी से उनके मन में एक आग धधक रही थी। महात्मा गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन खत्म किये जाने पर सैंकड़ों छात्रों के साथ चन्द्रशेखर भी सड़कों पर उतर आये। छात्र आंदोलन के वक्त वो पहली बार गिरफ्तार हुए। इस आंदोलन से जुड़े बहुत सारे लोगों के साथ चन्द्रशेखर को भी गिरफ्तार कर लिया गया था।
गिरफ्तारी के बाद कोड़े खाते हुए बार-बार वे भारत माता की जय का नारा लगाते रहे और जब उनसे उनके पिता नाम पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया था कि मेरा नाम आजाद है, मेरे पिता का नाम स्वतंत्रता और पता जेल है और तभी से उन्हें चंद्रशेखर सीताराम तिवारी की जगह चंद्रशेखर आजाद बोला जाने लगा।
गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन को अचानक बंद कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आ गया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ गये और 1925 में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की। 1925 में काकोरी कांड हुआ जिसके आरोप में अशफाक उल्ला खां, बिस्मिल समेत अन्य मुख्य क्रांतिकारियों को मौत की सजा सुनाई गई। जिसके बाद चंद्रशेखर ने इस संस्था का पुनर्गठन किया। भगवतीचरण वोहरा के संपर्क में आने के बाद चंद्रशेखर आजाद भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु के भी निकट आ गए थे।
1931 में फरवरी के अंतिम सप्ताह में जब आजाद गणेश शंकर विद्यार्थी से मिलने सीतापुर जेल गए तो विद्यार्थी ने उन्हें इलाहाबाद जाकर जवाहर लाल नेहरू से मिलने को कहा। चंद्रशेखर आजाद जब नेहरू से मिलने आनंद भवन गए तो उन्होंने चंद्रशेखर की बात सुनने से भी इंकार कर दिया। गुस्से में वहां से निकलकर चंद्रशेखर आजाद अपने साथी सुखदेव राज के साथ एल्फ्रेड पार्क चले गए।
वे सुखदेव के साथ आगामी योजनाओं के विषय में बात ही कर रहे थे कि पुलिस ने उन्हे घेर लिया। लेकिन उन्होंने बिना सोचे अपने जेब से पिस्तौल निकालकर गोलियां दागनी शुरू कर दी। दोनों ओर से गोलीबारी हुई। लेकिन जब चंद्रशेखर के पास मात्र एक ही गोली शेष रह गई तो उन्हें पुलिस का सामना करना मुश्किल लगा। चंद्रशेखर आजाद ने पहले ही यह प्रण किया था कि वह कभी भी जिंदा पुलिस के हाथ नहीं आएंगे। इसी प्रण को निभाते हुए उन्होंने वह बची हुई गोली खुद को मार ली।
पुलिस के अंदर चंद्रशेखर आजाद का भय इतना था कि किसी को भी उनके मृत शरीर के पास जाने तक की हिम्मत नहीं थी। उनके शरीर पर गोली चला और पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद ही चंद्रशेखर की मृत्यु की पुष्टि हुई। बाद में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात जिस पार्क में उनका निधन हुआ था उसका नाम परिवर्तित कर चंद्रशेखर आजाद पार्क और मध्य प्रदेश के जिस गांव में वह रहे थे उसका धिमारपुरा नाम बदलकर आजादपुरा रखा गया।