नई दिल्ली: पंडित रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ किसी परिचय के मोहताज नहीं। उनके लिखे ‘सरफ़रोशी की तमन्ना’ जैसे अमर गीत ने हर भारतीय के दिल में जगह बनाई और अंग्रेज़ों से भारत की आज़ादी के लिए वो चिंगारी छेड़ी जिसने ज्वाला का रूप लेकर ब्रिटिश शासन के भवन को लाक्षागृह में परिवर्तित कर दिया। ब्रिटिश साम्राज्य को दहला देने वाले काकोरी काण्ड को रामप्रसाद बिस्मिल ने ही अंजाम दिया था। भारत के स्वाधीनता आंदोलन में काकोरी कांड की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। लेकिन इसके बारे में बहुत ज्यादा जिक्र सुनने को नहीं मिलता। इसकी वजह यह है कि इतिहासकारों ने काकोरी कांड को बहुत ज्यादा अहमियत नहीं दी। लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि काकोरी कांड ही वह घटना थी जिसके बाद देश में क्रांतिकारियों के प्रति लोगों का नजरिया बदलने लगा था और वे पहले से ज्यादा लोकप्रिय होने लगे थे। ये भी पढ़ें: स्वतंत्रता दिवस: ...तो इस तरह चंद्रशेखर तिवारी बन गये थे चंद्रशेखर आजाद
बताया जाता है कि यदि ये गलती न होती तो रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ और काकोरी में ट्रेन डकैती डालने वाले दूसरे क्रांतिकारी पकड़े नहीं जाते। हुआ यूं कि हिंदुस्तान रिपब्लिक आर्मी के संस्थापक-अध्यक्ष रामप्रसाद बिस्मिल ने ग्वालियर से हथियार खरीद कर बमुश्किल शाहजहांपुर तक लेकर आए। इसके बाद फूल प्रूफ प्लानिंग की, तय हुआ कि खजाना हासिल करने तक कोशिश होगी कि किसी पर हमला न किया जाए। लेकिन दल के एक नाबालिग सदस्य की गलती से गोली चली और अफरातफरी मच गई, जिससे क्रांतिकारियों की शिनाख्त हो गई। ये भी पढ़ें: स्वतंत्रता दिवस: 12 साल के भगत सिंह से शहीद-ए-आजम बनने तक का सफर
9 दिसम्बर 1997 को दूरदर्शन काकोरी केस की याद में ‘सरफरोशी की तमन्ना’ नाम से डॉक्युमेंट्री बनाई। उसके लिए काकोरी कांस्पिरेसी टीम के उस समय जीवित सदस्य मन्मथ नाथ गुप्त का इंटरव्यू किया गया। इंटरव्यू में खुद मन्मथ नाथ गुप्त ने पूरी घटना का ब्योरा देते हुए अपनी गलती स्वीकार की थी। घटना के 70 साल बाद उन्होंने माना था कि उनसे गोली नहीं चली होती, तो न रामप्रसाद बिस्मिल पकड़े जाते और न अशफाक उल्लाह या रोशन सिंह।
डाक्यूमेंट्री में मन्मथ नाथ गुप्त ने बताया था कि क्रांति के लिए धन की जरूरत थी, इसे पूरा करने के लिए काकोरी ट्रेन डकैती का प्लानिंग की गई थी। रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्लाह खान के अलावा चंद्रशेखर आजाद, राजेन्द्र लाहिड़ी, केशव चक्रवर्ती, मुरारी गुप्त, रोशन सिंह, बनवारी लाल, राजकुमार सिन्हा आदि कई क्रांतिकारी शामिल थे। डकैती टीम में एक नाबालिग क्रांतिकारी मन्मथ नाथ गुप्त भी शामिल थे।
लखनऊ के पास काकोरी स्टेशन पर ट्रेन रोककर 9 अगस्त 1925 को सरकारी खजाना लूट लिया। 26 सितम्बर 1925 को बिस्मिल के साथ पूरे देश में 40 से भी अधिक लोगों को ‘काकोरी डकैती’ मामले में गिरफ्तार कर लिया गया। रामप्रसाद बिस्मिल को अशफाक उल्ला खाँ, राजेन्द्र लाहिड़ी और रोशन सिंह के साथ मौत की सजा सुनाई गयी। उन्हें 19 दिसम्बर 1927 को गोरखपुर जेल में फांसी दे दी गयी।
जिस समय रामप्रसाद बिस्मिल को फांसी लगी उस समय जेल के बाहर हजारों लोग उनके अंतिम दर्शनों की प्रतीक्षा कर रहे थे। हज़ारों लोग उनकी शवयात्रा में सम्मिलित हुए और उनका अंतिम संस्कार वैदिक मंत्रों के साथ राप्ती के तट पर किया गया।