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देश के पिछड़े जिलों में 25 फीसदी उत्तर प्रदेश के हैं: नीति आयोग

देश के 201 जिले शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण के मामले में पिछड़े और बदहाल हैं। इन जिलों में 25 फीसदी जिले अकेले उत्तर प्रदेश के हैं। उसके बाद बिहार और मध्य प्रदेश का नंबर है

Reported by: IANS
Updated : October 31, 2017 21:03 IST
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नई दिल्ली: देश के 201 जिले शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण के मामले में पिछड़े और बदहाल हैं। इन जिलों में 25 फीसदी जिले अकेले उत्तर प्रदेश के हैं। उसके बाद बिहार और मध्य प्रदेश का नंबर है। नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत ने मंगलवार को यह जानकारी दी। कांत ने पोषण, गरीबी से पीड़ित बचपन, शिक्षा और युवा व रोजगार पर भारत के 'यंग लाइव्स लांजीट्यूडिनल सर्वे' के प्रारंभिक निष्कर्ष को जारी करते हुए कहा, "अगर आप देश के 201 जिलों को देखें, जहां हम असफल हैं..तो उनमें से 53 उत्तर प्रदेश में, 36 बिहार में और 18 मध्य प्रदेश में है।"

कांत ने कहा, "मेरा विचार है कि जब तक आप इन इलाकों का नाम लेकर उन्हें शर्म नहीं दिलाएंगे, तब तक भारत के लिए विकास करना काफी मुश्किल होगा। सुशासन को अच्छी राजनीति बनाना चाहिए।" कांत ने पहले कहा था कि पूर्वी भारत के 7 से 8 राज्य हैं जो देश के पीछे खींच रहे हैं, इसलिए इन राज्यों को 'नाम लेकर शर्म दिलाने की जरूरत' है।

नीति आयोग के सीईओ ने यहां कहा, "दक्षिण भारत के साथ कोई समस्या नहीं है। पश्चिम भारत के साथ कोई समस्या नहीं है। यह केवल पूर्वी भारत के साथ है, वहां के सात राज्यों और 201 जिलों की समस्या है। जब तक आप इन्हें नहीं बदलते, भारत में कभी बदलाव नहीं आ सकता।" कांत ने कहा कि वास्तविक समय के डेटा की उपलब्धता, सार्वजनिक डोमेन में बहुत नजदीकी से निगरानी और राज्यों की रैंकिंग से ही यह समस्या दूर होगी।

कांत ने कहा, "उनका नाम जाहिर कर उन्हें शर्म दिलाना चाहिए..क्योंकि नेता और सरकारी अधिकारी को यह महसूस होना चाहिए कि उन्हें दंडित किया जाएगा। अगर आप स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण के क्षेत्र में अपना प्रदर्शन नहीं सुधारते हैं तो मतदाता आपको खारिज कर देंगे।" उन्होंने कहा, "जिस क्षण यह भारत में होना शुरू हो जाएगा, उसी क्षण चीजें सुधरने लगेंगी।"

कांत ने कहा कि नीति आयोग वास्तविक समय का डेटा इकट्ठा करने और उन्हें सार्वजनिक क्षेत्र में डालने की दिशा में काम कर रहा है। उन्होंने कहा, "आधे समय तो प्रशासक बिना वर्तमान आंकड़ों के ही चीजें करते रहते हैं। इसलिए बिना स्पष्ट आंकड़ों के ही नीतिगत निर्णय लिए जाते हैं।"

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