नई दिल्ली। निर्भया के चारों हत्यारों को शुक्रवार सुबह 5:30 बजे तिहाड़ जेल में फांसी के फंदे पर लटका दिया गया। करीब ढाई घंटे बाद यानी आठ बजे चारों के शव अलग-अलग एंबुलेंस से दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल में पहुंचाए गए। यहीं चारों का पोस्टमार्टम किया जा रहा है।
पोस्टमॉर्टम के लिए बने फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट्स पैनल के चेयरमैन डॉ. बीएन मिश्रा ने बताया कि चारों शव का पोस्टमार्टम करने में करीब तीन से चार घंटे का वक्त लगेगा। अमूमन इस तरह फांसी पर लटकाए गए एक मुजरिम के शव के पोस्टमार्टम में एक घंटे का वक्त तो लगता ही है। पोस्टमॉर्टम प्रक्रिया की वीडियो और फोटोग्राफी भी कराई जाती है।
डॉ. बीएन मिश्रा ने कहा कि वह पोस्टमार्टम के दौरान देखेंगे कि गर्दन की नली (हड्डी) किस तरह से टूटी है? गर्दन में रस्सी का फंदा कहां पर फंसा पाया गया है? कानून और ट्रेंड जल्लाद द्वारा फांसी का फंदा लगाने से टूटी गले की हड्डी के टूटने का स्टाइल एकदम अलग होता है। अमूमन जब इंसान खुद गले में फंदा डालकर आत्महत्या करता है, तो उसके गले की स्थिति एकदम अलग होती है। कानूनन फांसी पर चढ़ाए गए मुजरिम (इंसान) के शव का पोस्टमार्टम करने के दौरान ब्रेन स्टेम विद इंस्टेंट भी गहराई से जांचा-परखा जाता है।
डॉ. बीएन मिश्रा ने बताया कि दरअसल जब किसी इंसान को जल्लाद फंदे पर टांगकर फांसी लगाता है, तो ऐसी स्थिति में गर्दन की हड्डी एक झटके से टूटती है। जिससे सांस आने में अचानक आई दिक्कत के चलते लटकाए गए शख्स को मौत के पहले चरण में मुर्छा आती है। चंद सेकेंड बाद ही वो मर जाता है।
फांसी जेल मैनुअल और कानून के हिसाब से ही दी गई यह कैसे साबित होगा इस सवाल पर डा. मिश्रा ने कहा कि यह साबित करने के लिए पोस्टमार्टम के दौरान मृत शरीर के भीतर मौजूद दिल को गहराई से परखा जाता है। अगर मौत के पंद्रह मिनट या फिर उससे भी 4-5 मिनट ज्यादा देर तक शरीर के अंदर अगर दिल धड़कता हुआ साबित होगा, तभी फॉरेंसिक साइंस की नजर में यह मौत कानून की नजर में सही साबित होगी।
पोस्टमार्टम पैनल में डॉ. बीएन मिश्रा के साथ चार अन्य डॉक्टर भी शामिल किए गए हैं। यह सभी डॉक्टर डीडीयू अस्पताल फॉरेंसिक साइंस विभाग में ही तैनात हैं। पैनल में शामिल किए जाने वाले अन्य चार डॉक्टर्स में डॉ. वीके रंगा, डॉ. जतिन वोडवाल, डॉ. आरके चौबे और डॉ. अजित शामिल हैं।