पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेहद करीबी और विश्वासी रहे आर.के. धवन का 81 साल की उम्र में देहांत हो गया, इससे उनके प्रशंसकों और रिश्तेदारों में शोक व्याप्त है। उन्होंने 19 साल तक तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विशेष सहायक के तौर पर काम किया। उन दिनों आर. के. धवन एक बहुत बड़ा पावर सेंटर थे। उन्हें इंदिरा गांधी के बाद भारत का दूसरा सबसे ताकतवर व्यक्ति माना जाता था। लेकिन आरके धवन ने कभी भी अपनी ताकत का बेजा इस्तेमाल नहीं किया। उनकी ताकत इस बात में थी कि वे लोगों की मदद करते थे। यही वजह है कि बड़ी संख्या में लोग उनके प्रशंसक थे।
उनके जीवन में सबसे बड़ी त्रासदी तब हुई जब 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के मामले में उन्हें शक के घेरे में खड़ा कर दिया गया। उस जमाने में मैं ऑन लुकर पत्रिका में संपादक था। आरके धवन को फंसाने के लिए जिस तरह से ठक्कर कमीशन की रिपोर्ट तैयार की गई थी उस पूरे खेल का मैंने पर्दाफाश किया था।
उस समय आर. के. धवन ने मुझे कहा था कि जिन लोगों के खिलाफ आप लिख रहे हैं वो बड़े ताकतवर लोग हैं और आपको नुकसान पहुंचा सकते हैं। लेकिन मैंने बिना डरे अरुण नेहरू के इस पूरे गेम को जगजाहिर किया जो कि राजीव गांधी के शासन के दौरान काफी प्रभावशाली थे। आर.के. धवन उसके बाद एक बार फिर से सत्ता के केंद्र में वापस लौटे। बाद में केंद्रीय मंत्री बने। वो हमेशा इस बात को सार्वजनिक तौर पर कहते थे कि कैसे एक कवर स्टोरी ने उनके जीवन पर लगे सबसे गहरे दाग को धो दिया।
आर. के. धवन पिछले कुछ दिनों से अपनी जीवनी लिख रहे थे। उसके कई चैप्टर पर उन्होंने मेरे साथ चर्चा की और फिर वो बीमार पड़ गए। उनकी यह किताब निकट भविष्य में शायद अब कभी पूरी नहीं होगी। (रजत शर्मा)