Friday, November 22, 2024
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उत्सुकता या भय? ‘येति’ और ‘बिगफुट’ जैसे मिथकीय जीव हमेशा से खींचते रहे हैं दुनिया का ध्यान

किसी अज्ञात चीज को लेकर मानव जाति की कल्पनाशीलता से प्रेरित होकर हिमालयी हिममानव ‘येति’ या उत्तरी अमेरिका में पाए जाने वाले ‘बिगफुट’ सहित जीवों के विभिन्न रूप दुनिया को अपनी ओर खींचते रहे हैं।

Written by: Bhasha
Updated on: May 14, 2019 19:55 IST
How mythical creatures like Yeti and Bigfoot caught the...- India TV Hindi
How mythical creatures like Yeti and Bigfoot caught the world's imagination (Representational Image)

नई दिल्ली: किसी अज्ञात चीज को लेकर मानव जाति की कल्पनाशीलता से प्रेरित होकर हिमालयी हिममानव ‘येति’ या उत्तरी अमेरिका में पाए जाने वाले ‘बिगफुट’ सहित जीवों के विभिन्न रूप दुनिया को अपनी ओर खींचते रहे हैं। इन जीवों की खास बात यह है कि इनके वास्तविक रूप में होने या फिर इनके मिथक होने को लेकर विवाद है। उनके अस्तित्व को लेकर साक्ष्य भी बहुत कम हैं। करीब दो सप्ताह पहले भारतीय थलसेना ने ‘येति’ को लेकर कायम रहस्य पर एक बार फिर चर्चा छेड़ दी, जब उसने हिमालय के बहुत ऊंचाई वाले इलाकों में विशाल पदचिह्नों की तस्वीरें ट्वीट करते हुए दावा किया कि ये पैर हिममानव ‘येति’ के हैं। 

विशेषज्ञों का मानना है कि किंवदंतियों और लोक कथाओं की कल्पित दुनिया में रहने वाले प्राणियों के प्रति प्रबल आकर्षण और प्राय: उनके दिन प्रतिदिन के जीवन में प्रवेश करने के पीछे के कई संभावित कारण हैं - इनमें मानवीय उत्सुकता और अतीत से जुड़ाव की आवश्यकता से लेकर, खतरों की पहचान और मानव जाति के अस्तित्व जैसे तथ्यों के बारे में जिज्ञासा शामिल हैं। क्षेत्रों और संस्कृतियों के परे ऐसे मिथकीय जीवों की फेहरिस्त बहुत लंबी है और इनमें एक सींग वाला घोड़ा (यूनीकॉर्न), ‘लोच नेस’ और एल्मास शामिल हैं। 

भारतीय थलसेना द्वारा जारी तस्वीरों और वीडियो से एक बार फिर कल्पना और कल्पित वास्तविकता में संबंध उभर आया है। यह तस्वीरें मार्च महीने में नेपाल में मकालू आधार शिविर के पास ली गई थीं। नेपाली लोककथाओं में ‘येति’ दो पैरों वाला एक जीव है जो एक औसत मनुष्य से अधिक लंबा है और माना जाता है कि वह हिमालय, साइबेरिया, मध्य और पूर्वी एशिया में रहता है। नेपाल के अधिकारियों ने बाद में स्पष्ट किया ये पदचिह्न इलाके में सक्रिय हिमालयी ‘ब्लैक बीयर’ (काले भालू) के हैं।

पर्यावरण संरक्षण के काम से जुड़े और नेपाल की बरूण घाटी में ‘येति’ नाम के मिथक की तलाश में 35 साल बिता चुके अमेरिकी डेनियल सी टेलर ने बताया, ‘‘साल 1956 में जब मैं 11 साल का था तो उसी वक्त से मैंने शोध किया और इन पदचिन्हों की पहली तस्वीर देखी...मुझे पता चला कि यह वास्तव में कोई पशु है...फिर 1983 में मैंने वैज्ञानिक तौर पर बताया कि ये पैरों के निशान हिमालयन ब्लैक बीयर के हैं।’’ 

टेलर ने 2017 में ‘येति’ को लेकर एक किताब भी लिखी है, जिसका नाम ‘येति: दि इकोलॉजी ऑफ ए मिस्ट्री’ है। ‘येति’ के अस्तित्व का कोई साक्ष्य न होने से वैज्ञानिक समुदाय सामान्य तौर पर इसे एक किंवदंती मानता है। ऐसे जीव दुनिया के अन्य इलाकों में भी पाए जाने की बातें होती रही हैं। कोलम्बिया एशिया अस्पताल में क्लीनिकल मनोवैज्ञानिक सलाहकार श्वेता शर्मा कहती हैं, ‘‘कपोल कल्पनाएं मानवीय मस्तिष्क को हमेशा सुख देती हैं और इसकी मुख्य वजह है कि लोग ऐसे मिथकीय चरित्रों की कहानियों से आनंदित होते हैं।’’

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के स्वास्थ्य केंद्र में परामर्शदाता के तौर पर भी सेवाएं दे रहीं शर्मा ने बताया, ‘‘एक वजह तो यह है कि लोग डरे हुए हैं और वे अज्ञात को देखना जानना चाहते हैं, क्योंकि वे खुद को सुरक्षित रखना चाहते हैं और अपने वजूद के लिए ऐसे खतरों की पहचान कर लेना चाहते हैं।’’ उन्होंने कहा कि इसका दूसरा कारण जिज्ञासा वाले मानव का मूल स्वभाव हो सकता है जिसे मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से तत्काल संतुष्टि की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि ऐसा कुछ फिल्मों में भी परिलक्षित होता है। 

गौरतलब है कि ‘येति’ की कहानियां पहली बार 19वीं सदी में पश्चिमी लोकप्रिय संस्कृति के एक हिस्से के रूप में सामने आईं थीं। भारत और पाकिस्तान में फैली सिंधु घाटी सभ्यता की मुहरों में कुछ ऐसी मिथकीय पशु दर्शाए गए हैं और प्राचीन यूनानी संस्कृति में भी ऐसे मिथकीय पशुओं का उल्लेख मिलता है। एकश्रृंगी अश्व यानी एक सींग वाले घोड़े का अंकन इन मुहरों पर मिला है। यहां तक कि 21वीं सदी में भी ऐसे घोड़े को लोकप्रिय संस्कृति में स्थान मिला है और इसे कल्पना लोक में विचरण के प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।

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