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जानिए लद्दाख को कैसे आत्मनिर्भर बनाने में जुटी मोदी सरकार?

लद्दाख की थारू घाटी के 31 गांवों में स्थाई आजीविका को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की पहल शुरू हुई है। यहां पर मटर, खुबानी(एप्रिकॉट) के अलावा कई प्रमुख सब्जियां खूब उगतीं हैं। चार महीनों के लिए ये फसलें होतीं हैं।

Written by: IANS
Published on: September 06, 2020 22:40 IST
How Modi Govt is making Ladakh atamnirbhar? । जानिए लद्दाख को कैसे आत्मनिर्भर बनाने में जुटी मोदी सर- India TV Hindi
Image Source : PTI How Modi Govt is making Ladakh atamnirbhar? । जानिए लद्दाख को कैसे आत्मनिर्भर बनाने में जुटी मोदी सरकार?

नई दिल्ली. केंद्रशासित प्रदेश बनने के बाद से लद्दाख की अर्थव्यवस्था को गति देने में मोदी सरकार जुटी हुई है। लद्दाख के गांवों में स्थाई तौर पर रोजगार की व्यवस्था पर केंद्र सरकार का फोकस है। केंद्र सरकार ने इस कार्य के लिए जनजातीय कार्य मंत्रालय को मोर्चे पर लगाया है। दरअसल, 2011 की जनगणना के अनुसार, लेह और कारगिल में 80 प्रतिशत तो लद्दाख में 90 प्रतिशत आदिवासी रहते हैं।

ऐसे में सरकार ने जनजातीय कार्य मंत्रालय के जरिए यहां कुछ विशेष प्रोजेक्ट शुरू कर बड़ी आबादी को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम तेज किया है। दुनिया भर में जिन पश्मीना शालों की मांग होती है, उनके लिए पश्मीना भेड़ों के पालन और उनके ऊन की गुणवत्ता में सुधार की दिशा में भी परियोजनाएं शुरू हुई हैं।

लद्दाख की थारू घाटी के 31 गांवों में स्थाई आजीविका को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की पहल शुरू हुई है। यहां पर मटर, खुबानी(एप्रिकॉट) के अलावा कई प्रमुख सब्जियां खूब उगतीं हैं। चार महीनों के लिए ये फसलें होतीं हैं। अभी तक बेहतर पैकेजिंग तकनीक और प्रसंस्करण(प्रोसेसिंग) के अभाव में सब्जियों के जल्दी खराब होने से किसानों को बहुत नुकसान उठाना पड़ता था।

लेकिन अब इन गांवों में बेहतर पैकेजिंग तकनीक के जरिए सब्जियों को अधिक समय तक सुरक्षित रखने की व्यवस्था हो रही है। जिससे किसान यहां से सब्जियों को बाहर भेजकर लाभ हासिल कर सकें।

जनजातीय कार्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने IANS को बताया, "केंद्र सरकार की कोशिश है कि लद्दाख के मशहूर उत्पादों की उत्पादकता में खूब इजाफा हो और फिर प्रोसेसिंग और मार्केटिंग के जरिए उन्हें देश और दुनिया के सामने पेश किया जाए। लद्दाख के उत्पादों की बाहर आपूर्ति होने से स्थानीय निवासियों को लाभ पहुंचेगा। ग्रामीण क्षेत्रों में सिंचाई आदि सुविधाओं का भी विकास चल रहा है।"

चीन से सटी छंगथांग घाटी में भी एक विशेष परियोजना चल रही है। समुद्र तल से 16 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित इस एरिया में नर्म, मुलायम और गर्म ऊन के लिए मशहूर पश्मीना भेड़ों के पालन करने, और उनके ऊन के उत्पादों की क्वालिटी में सुधार लाने की कोशिशें चल रहीं हैं।

बताया जाता है कि लेह के गड़ेरिए पश्मीना भेड़ों को पालते हैं और ठंड में चीन से सटे छंगथांग इलाके में भेड़ों के साथ चले जाते हैं। पश्मीना भेड़ों के ऊन से पश्मीना शालें बनतीं हैं। पश्मीना शालों की दुनिया में मांग होती है। लाखों रुपये में शालें बिकतीं हैं। एक शॉल को बनाने में तीन भेड़ों के ऊन का इस्तेमाल होता है।

इस परियोजना को देख रहे जनजातीय कार्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने आईएएनएस से कहा, "केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने बीते तीन और चार सितंबर को राष्ट्रीय जनजातीय शोध सम्मेलन के दौरान केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख में विकास के लिए नई-नई योजनाओं के संचालन पर जोर दिया है। केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा का मानना है कि लद्दाख का विकास कर उसे देश के सामने एक उदाहरण के रूप में पेश किया जा सकता है। ग्रामीण स्तर पर आजीविका के ढांचे को लद्दाख में मजबूत कर वहां के लोगों की जिंदगी को आसान और सुविधाओं से युक्त बनाने का लक्ष्य है।

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