नई दिल्ली: रेप के मामले में आसाराम को जोधपुर की विशेष अदालत ने दोषी करार दिया है। सजा पर फैसला कुछ ही देर में आने वाला है। आसाराम जैसे ढोंगी को हिरासत में लेना इतना आसान नहीं था क्योकि जनता आसाराम की अंध भक्त थी। ऐसे में राजस्थान की जोधपुर पुलिस ने यौन उत्पीड़न के आरोपी आसाराम को आज से साढ़े चार साल पहले 31 अगस्त, 2013 को मध्य प्रदेश के इंदौर से गिरफ्तार करने में सफलता प्राप्त की। यह पुलिस की बहुत बड़ी उपलब्धि थी। चार दिन तक पुलिस रिमांड पर रखने के बाद आसाराम को जोधपुर सेंट्रल जेल में बंद कर दिया गया था।
आसाराम की गिरफ्तार के पीछे की एक अहम कड़ी हैं आईपीएस अधिकारी अजय पाल लांबा। आज के दिन यह जानना काफी दिलचस्प है कि आखिर पुलिस के शिकंजे में आसाराम कैसे आए और उसमें लांबा की क्या भूमिका थी। लांबा ही वो पुलिस अधिकारी हैं, जिन्होंने बेहद सावधानीपूर्वक यौन उत्पीड़न के आरोपी आसाराम को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाया। लांबा के अनुसार यह काफी कठिन टास्क था लेकिन अनुसंधान में आरोप साबित होने के बाद सटीक रणनीति बनाकर आसाराम को मध्य प्रदेश के इंदौर से गिरफ्तार किया गया।
लांबा कहते हैं चुनौतिया अनेक थी। जिस तरह आसाराम का उस समय कद था। देशभर में उसके लाखों अंधभक्त थे। उस स्थिति में दूसरे प्रदेश में जाकर उसे गिरफ्तार करना राजस्थान पुलिस के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य था लेकिन इस केस का सबसे मजबूत पहलू था नाबालिग पीड़िता का बयान। पीड़िता के बयान को साबित करने वाले सभी तथ्यों व सबूतों को सतर्कता के साथ जुटाया गया। बाद में उसे विधिवत रूप से कानूनी दायरे में पिरोया गया। यही आसाराम की गिरफ्तारी का आधार और पुलिस की सबसे बड़ी सफलता थी।
वो इस समय जोधपुर में एसपी (एंटी करप्शन ब्यूरो) हैं। वो बतातें हैं कि एक वक्त इस केस को हैंडल करते हुए ऐसा भी था, जब वो अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर इतने परेशान थे कि कुछ दिनों के लिए बेटी को स्कूल भेजना बंद कर दिया था। वो बतातें हैं कि उनकी पत्नी घर के बाहर कई-कई दिन तक नहीं निकलता थीं। वो बताते हैं कि जांच के बाद 10 हफ्ते में उन्होंने पहली चार्जशीट दाखिल की थी। हालांकि लांबा कहते हैं कि उन्होंने किसी तरह का राजनीतिक दबाव जांच में महसूस नहीं किया।