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जम्मू-कश्मीर: चीन के हस्तक्षेप की मांग और तिरंगा नहीं उठाने की बात करने वाले आखिर क्यों हुए बातचीत को राजी?

370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर की राजनीति में बदलाव हुआ है और वहां पर विकास तेज गति से आगे बढ़ा है। खासकर पिछले एक साल में जम्मू-कश्मीर में कई ऐसे सकारात्मक बदलाव हुए हैं जिस वजह से वहां अलग सुर में बात करने वाले नेताओं को भी केंद्र के साथ बातचीत के लिए बाध्य होना पड़ा है

Written by: Devendra Parashar @DParashar17
Published on: June 24, 2021 11:21 IST
पिछले एक साल के अंदर...- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV पिछले एक साल के अंदर जम्मू-कश्मीर में कई बदलाव हुए हैं जिस वजह से वहां के क्षेत्रीय दलों की राय बदली है

नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर से 370 हटने के बाद आज पहली बार वहां के प्रमुख राजनीतिक दलों और केंद्र सरकार के बीच बैठक होने जा रही है। केंद्र सरकार की तरफ से बैठक के लिए जम्मू-कश्मीर के 8 राजनीतिक दलों के 14 नेताओं को न्यौता दिया गया है। इसमें ऐसे नेता भी शामिल हैं जो पहले जम्मू-कश्मीर को लेकर चीन की मध्यस्थता की बात करते थे, ऐसे नेताओं में पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला भी शामिल थे। कुछ तो ऐसे नेता भी थे जो यहां तक कहते थे कि जम्मू-कश्मीर में कोई तिरंगा नहीं उठाएगा, पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी ऐसा बयान दिया था। लेकिन आज केंद्र सरकार के साथ बैठक के लिए सभी राजी हो गए हैं, खुद फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती भी बैठक में शामिल होंगे। आखिर ऐसा क्या हो गया कि चीन के हस्तक्षेप और तिरंगा नहीं उठाने की बात करने वाले भी अब बातचीत के लिए तैयार हैं। 

दरअसल 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर की राजनीति में बदलाव हुआ है और वहां पर विकास तेज गति से आगे बढ़ा है। खासकर पिछले एक साल में जम्मू-कश्मीर में कई ऐसे सकारात्मक बदलाव हुए हैं जिस वजह से वहां अलग सुर में बात करने वाले नेताओं को भी केंद्र के साथ बातचीत के लिए बाध्य होना पड़ा है। प्रधानमंत्री मोदी ने पॉलिटिकल व्यक्ति यानि मनोज सिन्हा को जम्मू-कश्मीर का उप राज्यपाल (LG) और गृह मंत्री अमित तथा LG की जोड़ी ने ऐसा काम किया जिससे सूबे में नकारात्मक बातें करने वाले दबाव में आ गए।

जम्मू-कश्मीर में 370 हटने के बाद हुए मुख्य काम

  1. डीडीसी चुनाव की सफलता से पूरी दुनिया को संदेश कि जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र काम कर रहा है।
  2. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सधी हुई कूटनीतिक चाल चलते हुए पंचायत चुनाव का संदेश पूरी दुनिया तक पहुंचाया जिससे पाकिस्तान के कश्मीर प्रोपेगैंडा की हवा निकली ।
  3. पंचायत ,ब्लॉक और डिस्ट्रिक्ट लेवल के प्लान बजट को मंजूरी देकर सीधे विकास कार्यों से जोड़ना, इससे अलगाववादी ताकतों का प्रोपैगैंडा कमजोर हुआ।
  4. इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट प्रोजेक्ट में तेजी लाकर लोगों को ये बताना कि जो काम बहुत पहले हो जाना चाहिए था ,वो.अब हो रहा। इससे पहले क्षेत्रीय दलों ने सिर्फ़ अपनी चिंता की ,सूबे की नहीं।
  5. केंद्रीय योजनाओं को लागू.करना
  6. सिक्योरिटी और डेवलपमेंट के मुद्दे में कोई घालमेल नहीं हुआ। सुरक्षा बलों को अपना काम करने की खुली छूट मिली और प्रशासन ने विकास कार्यों पर फोकस रखा।
  7. युवाओं को रोजगार मिला, उन्हें विकास कार्यों से जोड़ा गया। इससे क्षेत्रीय नेताओं को अलग थलग पड़ने का डर सताने लगा।
  8. भ्रष्टाचार के मामले हो या देशद्रोह के, भ्रष्ट नेताओं पर सख्त कार्रवाई हुई जिससे वो दबाव में आ गए हैं।
  9. कोरोना महामारी से तैयारी में भी जम्मू कश्मीर देश के कई अन्य राज्यों की तुलना में आगे दिखा, एक भी दिन ऑक्सीजन बेड की कमी नहीं रही, डोर टू डोर वैक्सीनेशन की सफलता को महाराष्ट्र हाईकोर्ट ने भी जिक्र किया, सकारात्मक खबरों के लिए जम्मू कश्मीर का सुर्खियों में रहना सूबे के लोगों के लिए अच्छा और नेताओं के लिए दबाव में लानेवाला रहा ।
  10. प्रशासनिक फेरबदल के मार्फत स्वच्छ छवि वाले अधिकारियों के हाथ में कमान दिया गया, सूबे के लोग प्रशासनिक भ्रष्टाचार और कामचोरी से बहुत त्रस्त थे, इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ा। सभी जिलों में DC और पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति CID द्वारा तैयार उनके CR के आधार पर की ग ई ना कि किसी प्रशासनिक या राजनीतिक सिफारिश। इससे भी वो नेता दबाव में आए जो अपने द्वारा बैठाए गए अधिकारियों के द्वारा मनमाफिक कार्य कराते थे।

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