नई दिल्ली। देश के कृषि क्षेत्र में बदलाव के लिए सरकार पूराने कृषि कानूनों को बदलने के लिए जो विधेयक संसद में लेकर आई है वह लोकसभा में तो पास हो गया है, विधेयक अब राज्यसभा में पेश होगा और इसे पास कराने के लिए सरकार का असली टेस्ट राज्यसभा में ही होगा। हालांकि अध्यादेश के जरिए इन नियमों को पहले ही लागू किया जा चुका है लेकिन स्थाई तौर पर इसे कानून बनाने के लिए संसद से पास होना जरूरी है। सरकार दावा कर रही है कि नए नियमों से देश के कृषि क्षेत्र की काया पलट जाएगी, किसानों को लाभ होगा और देश का कृषि क्षेत्र तेजी से विकसित होगा। वहीं विपक्ष आरोप लगा रहा है कि इससे देश का कृषि क्षेत्र तबाह हो जाएगा, किसानों को नुकसान होगा और देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की व्यवस्था खत्म हो जाएगी।
बात अगर न्यूनतम समर्थन मूल्य की की जाए तो सरकार साफ कह चुकी है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था समाप्त नहीं होगी बल्कि और मजबूत की जाएगी। सरकार की तरफ से अपने कार्यकाल में बढ़ाए गए समर्थन मूल्य और किसानों से फसल खरीद के बाद किए गए भुगतान के आंकड़े जारी किए हैं और कहा गया है कि उनके कार्यकाल में किसानों से MSP पर ज्यादा मात्रा में उपज की खरीद हुई है और MSP में भी पहले के मुकाबले ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। देशभर में MSP पर पंजाब और हरियाणा के किसान ही सबसे ज्यादा फसल बेचते हैं और विपक्ष ने दावा किया है कि इन दोनो राज्यों के किसान ही ज्यादा विरोध कर रहे हैं। लेकिन सरकार ने जोर देकर कहा है कि नए कृषि विधेयक अगर कानून बने तो MSP की व्यवस्था को खत्म नहीं किया जाएगा बल्कि इसे और मजबूत किया जाएगा।
जिन पुराने नियमों को लेकर विपक्ष सरकार को ज्यादा घेर रहा है उनमें एक है APMC एक्ट। इस एक्ट के तहत देश की कृषि उपज मंडियों में कामकाज होता है और किसानों को अपनी उपज इन्हीं मंडियों में बेचनी पड़ती है। मंडियों में बैठे आढ़तियों की मदद से किसान अपनी उपज बेचते हैं और जिन फसलों का समर्थन मूल्य तय नहीं होता उन्हें बोली लगाकर मंडी में खरीदा जाता है। बेची गई उपज का पूरा हिसाब किताब रखा जाता है और साथ में कई तरह के टैक्स भी जुड़ते हैं। एक तरह से किसान अपनी फसल को अपनी नजदीकी APMC मंडी में बेचने के लिए बाध्य होता है। लेकिन सरकार ने नए नियम में APMC एक्ट से किसान को मुक्त करने का प्रावधान किया है। किसान अपनी फसल को देश के किसी भी कोने में बेच सकेगा। वह चाहे तो मंडी में फसल बेच सकेगा या फिर चाहे तो सीधे रिटेलर को या किसी प्रोसेसिंग इंडस्ट्री को बेच सकेगा। फसल को मंडी में ही बेचने का दबाव नहीं होगा। किसानों को कई बार मंडियों में आढ़तियों की मिलीभगत का शिकार होना पड़ता है और औने-पौने दाम पर फसल बेचनी पड़ती है। हालांकि मंडी की व्यवस्था होने की वजह से किसान को अपनी उपज बेचने के लिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती। लेकिन नई व्यवस्था में क्योंकि मंडी को समाप्त नहीं किया गया है सिर्फ किसान के ऊपर फसल मंडी में बेचेने की वाध्यता को खत्म करने का नियम है।
एक और एक्ट है जिसे जरूरी वस्तु अधिनियम 2010 (Essential Commodity Act 2010) के नाम से जाना जाता है। कृषि विधेयक में इस एक्ट को लेकर भी विपक्ष सरकार को घेर रहा है। जब बाजार में किसी कृषि आधारित उत्पाद जैसे दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, चीनी, आलू और प्याज जैसी वस्तुओं के दाम तेजी से बढ़ते हैं तो इस एक्ट के जरिए केंद्र राज्यों से स्टॉक लिमिट लगाने के लिए कहता है और राज्य अपनी स्थिति को देखते हुए स्टॉक की लिमिट लागू करते हैं, यानि किसानों और कारोबारियों को सरकार की बताई हुई लिमिट से ज्यादा स्टॉक रखने की अनुमति नहीं होती। मान लीजिए की आलू के दाम तेजी से बढ़ गए तो राज्य सरकार अपने राज्य में लिमिट तय कर देगी कि कोई भी व्यापारी या किसान तय लिमिट से ज्यादा स्टॉक नहीं रखेगा, ऐसा करने पर बाजार में आलू की सप्लाई बढ़ेगी और कीमतों में कमी आएगी। नए नियम में किसानों के लिए दलहन, तिलहन आलू और प्याज के लिए स्टॉक लिमिट खत्म करने का प्रावधान है। किसान के पास अगर ज्यादा स्टॉक पड़ा भी होगा तो उसके ऊपर कार्रवाई नहीं होगी। इस कदम से किसान को तो लाभ होगा लेकिन उपभोक्ताओं पर मार पड़ सकती है।
सरकार ने नए कृषि विधेयक में कृषि के अंदर निजी क्षेत्र और विदेशी निवेश की बात भी कही है। किसान इसके जरिए कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग जैसी सुविधाएं उठा सकेंगे। यानि फसल के लगने से पहले ही वह उद्योग के साथ उसे बेचने के लिए करार कर लेगा और फसल के उत्पादन तथा प्रोसेसिंग में उद्योग भी किसान की मदद करेंगे। कुल मिलाकर देखें तो कृषि विधेयक आने वाले दिनों में कृषि और किसानों के लिए लाभदायक हो सकते हैं।