नई दिल्ली: साधु और संतों की परंपरा में देहावसान के बाद समाधि की परंपरा रही है। समाधि बहुत ही पवित्र और अध्यात्मिक शब्द है। इसका संबंध मोक्ष, कैवल्य, निर्वाण प्राप्त व्यक्ति से है। भगवान शिव के बारे में यह कहा जाता है कि वे हमेशा समाधि में लीन रहते हैं। इसलिए इस शब्द का संबंध किसी मरनेवाले के क्रिया कर्म के तरीके से नहीं है। किसी का दाह संस्कार किया जाता है तो उसे अग्निदाह कहते हैं, इसी तरह से जलदाग होता है जिसमें पार्थिव शरीर को जल में बहा दिया जाता है। और इसी तरह से भू-समाधि होती है जिसमें पार्थिव शरीर मिट्टी में दफना दिया जाता है।
क्यों दी जाती है भू-समाधि
सनातन धर्म में देहांत के बाद दाह संस्कार किया जाता है जबकि बच्चे को दफनाया जाता है और साधुओं को समाधि दी जाती है। इसके पीछे भी कई तर्क हैं। माना जाता है कि साधु और बच्चों का तन और मन निर्मल रहता है। साधु और बच्चों में आसक्ति नहीं होती है। शास्त्रों के अनुसार पांच वर्ष के लड़के और सात वर्ष की लड़की का दाह संस्कार नहीं होता है। उन्हें जमीन के अंदर शवासन की अवस्था में दफनाया जाता है।
कैसे देते हैं भू-समाधि
भू-समाधि में पद्मासन या सिद्धिसन की मुद्रा में बिठाकर जमीन में दफना दिया जाता है। महंत नरेंद्र गिरि को भी इसी तरह से भू-समाधि दी जा रही है। शैव, नाथ, दशनामी, अघोर और शाक्त परंपरा के साधु-संतों को भू-समाधि देते हैं। गिरि शैव पंथ के दसनामी संप्रदाय से संबंध रखते हैं। अक्सर गुरु की समाधि के बगल में ही शिष्य को भू-समाधि दी जाती है। नरेंद्र गिरि को भी प्रयागराज में उनके मठ के अंदर अपने गुरु की समाधि के बगल में भू-समाधि दी जा रही है। समाधि मठ में या किसी खास जगह पर दी जाती है।