नई दिल्ली: सियाचिन की सोनम पोस्ट के ऊपर 3 फरवरी को शाम 5 बजे के आसपास को अवलांच आया। सेना के मुताबिक़ ये सबसे खतरनाक श्रेणी का अवलांच था। अवलांच के वक्त सभी जवान आर्कटिक टैंट के अंदर स्लीपिंग बैग में सो रहे थे। इसी वजह से ये अपना बचाव नहीं कर पाये। रात को आठ बजे के आसपास सियाचिन बेस कमांडर की रात की ब्रीफिंग के दौरान सोनम पोस्ट की इस कम्पनी जिसमें जेसीओ समेत मद्रास रेजिमेंट के 10 जवान शामिल थे रेडियो सेट पर सम्पर्क नहीं हो पाया जिसके बाद शुरू हुआ सेना का सियाचिन में अब तक का सबसे बड़ा बचाव ऑपरेशन।
4 फरवरी की सुबह 5 बजे से अवलांच में फंसे जवानों को ढूंढने का ऑपेरशन शुरू हुआ। बेस कैम्प से चीता हेलीकॉप्टर की मदद से रेस्क्यू टीम को सोनम पोस्ट तक पहुँचाया गया। इसके साथ ही पोर्टर की मदद से सामान और उपकरण पहुंचाया गया। बचाव उपकरण में अवलांच रॉड, स्नो कटर, हीट सीकिंग रडार, स्नाइफर डॉग, सेंसर, रेडियो सिग्नल डिटेक्टर और अर्थ ऑगर जैसे उपकरण शामिल थे। इस पहली टीम में 2 डॉक्टर, एक मेजर समेत 8 लोग शामिल थे। 19 हजार 600 फ़ीट की ऊंचाई पर पहुँचने के बाद चारों तरफ अवलांच से हुई तबाही ही नजर आ रही थी लकिन सोनम पोस्ट का कोई नामोनिशान नहीं था। सोनम पोस्ट के पास हैलीपैड का भी कोई निशान नहीं था। अब ऐसे में चीता हैलिकॉप्टर के पायलट ने सोनम पोस्ट से करीब एक क्लिओमीटर दूर इस हैलिकॉप्टर को उतारा।
सुबह 5 बजे से शुरू हुआ रेस्क्यू ऑपरेशन रात 12 बजे तक चलता रहा। लेकिन कोई कामयाबी हाथ नहीं लगी। इसके बाद सेना के आला अधिकारियों को सूचना दी गयी कि इस ऑपेरशन को और बड़े स्तर पर चलाना होगा। अगले दिन 5 फरवरी को भी कोई कामयाबी हाथ नहीं लगी। रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने सेना प्रमुख जनरल दलबीर सुहाग को निर्देश दिया कि इस ऑपरेशन में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जाय। वहीँ 19 मद्रास रेजिमेंट के कमांडिंग ऑफिसर ने साफ़ कर दिया कि वो अपने जवानों के बिना सोनम पोस्ट से वापस लिये नहीं जाएंगे। इसके साथ ही सियाचिन बैटल स्कूल के कमांडिंग ऑफिसर और उनकी टीम ने भी अपनी पूरी ताकत इस ऑपेरशन में झोंक दी। 10 जवानों को ढूंढने के मिशन में अब 100 से ज्यादा जवान लग चुके थे।