नई दिल्ली। स्वतंत्र भारत में देश के एकमात्र आपातकाल के आज 44 साल पूरे हो गए हैं। 25 जून 1975 को देश की राजधानी दिल्ली की रायसीना हिल्स से रात के करीब साढे आठ बज रहे थे राजपथ से इंदिरा गांधी का काफिला गुजरा और सीधा राष्ट्रपति भवन पहुंचा। इंदिरा गांधी ने ने तब के राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली से देश में आपातकाल लगाने की बात की और कहा कि अगले दो घंटे में मसौदा आप तक पहुंच जाएगा, आपको बस उस पर हस्ताक्षर करने हैं। बस इतना बोल कर वो इसी रास्ते से वापस लौट गईं। लेकिन राष्ट्रपति के दस्तखत के बाद देश उस दौर में पहुंच गया जिसे आजाद हिंदुस्तान का सबसे काला काल यानी आपातकाल कहा गया।
राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली के हस्ताक्षर के बाद 25-26 जून 1975 की रात को देश में आपातकाल लागू कर दिया गया, यह आपातकाल लगभग 21 महीने यानि 21 मार्च 1977 तक लागू रहा। संविधान की धारा 352 के तहत आपातकाल की घोषणा की गई थी और खुद इंदिरा गांधी ने रेडियो पर इसका ऐलान किया था।
कहते हैं कि इंदिरा गांधी देश को सॉक ट्रीटमेंट देना चाहती थीं। और इसका अंदाजा इंदिरा के करीबियों को छोड़िए, उन्हें भी नहीं था जिन्होंने इस पूरे घटनाक्रम की पटकथा लिखी थी। सिद्धार्थ शंकर रॉय वह व्यक्ति थे जिनपर इंदिरा आंख मूंदकर भरोसा करती थीं और सिद्धार्थ संवैधानिक मामलों के जानकार भी थे। वो सिद्धार्थ शंकर रॉय ही थे जिन्होंने इंदिरा को सुझाया कि वो सीधे राष्ट्रपति फखरुद्दीन से धारा 352 पर बात करें और देश में इमरजेंसी की एलान कर दें।
आपातकाल में क्या हुआ ?
- चुनाव स्थगित हुए, नागरिकों के अधिकार खत्म
- विरोधी भाषण, प्रदर्शन, नारेबाजी पर प्रतिबंध
- अखबार में छपने वाली खबर पर सरकार का सेंसर
- सभी विरोधी नेता गिरफ्तार, अज्ञात जगह रखा गया
- 25 जून 1975 को दिल्ली में जय प्रकाश नारायण की रैली
- पुलिस और सेना के जवानों से आदेश मानने की अपील की
- जय प्रकाश नारायण को सरकार ने तुरंत गिरफ्तार कर लिया
- जेपी के नेतृत्व में बड़ी संख्या में यूपी, बिहार में छात्र जेल में
- अटल, आडवाणी, चंद्रशेखर, मोरारजी देसाई सभी जेल गए
- RSS के मुखपत्र 'आर्गनाइजर' ने 'पारिभाषिक दाग' का नाम दिया
इमरजेंसी के दौरान संजय गांधी के इशारे पर देश में हजारों गिरफ्तारियां हुईं। पत्रकारों को परेशान किया गया। फिल्मों पर जी भर कर सेंसर की कैंची चलाई गई। लेकिन आपातकाल का दौर कांग्रेस पार्टी के लिए घातक साबित हुआ और कांग्रेस पार्टी 350 से 153 सीटों पर सिमट गई।
कांग्रेस के लिए 'घातक' इमरजेंसी
- 21 महीने देश में लगी इमरजेंसी
- विरोध तेज होने पर इमरजेंसी खत्म
- 1977 में लोकसभा चुनाव कराया गया
- 350 से 153 सीट पर सिमटी कांग्रेस
- यूपी, बिहार में एक भी सीट कांग्रेस को नहीं
- पंजाब, हरियाणा, दिल्ली में एक भी सीट नहीं
- इंदिरा गांधी अपने गढ़ रायबरेली से भी हारीं
- 30 साल के बाद गैर-कांग्रेसी सरकार बनी
- जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आई
- मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने
इमरजेंसी लगाते वक्त इंदिरा गांधी ने सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश का हवाला दिया था। लेकिन आज तक ऐसी किसी साजिश का पूख्ता प्रमाण नहीं मिल सका है। लेकिन इमरजेंसी के दौरान हुए जुल्म-ओ-सितम के ना जाने कितने गवाह आज भी मौजूद हैं। इसीलिए हर साल 25 जून की तारीख आते ही इमरजेंसी की यादें ताजा हो जाती हैं
क्यों लगी देश में इमरजेंसी?
- 1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी की जीत
- राजनारायण हारे लेकिन चुनाव परिणाम को चुनौती दी
- 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला
- इंदिरा का चुनाव परिणाम निरस्त किया, 6 साल तक पाबंदी
- हाईकोर्ट ने राजनारायण को चुनाव में विजयी घोषित किया
- राजनारायण की दलील, सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया
- इंदिरा गांधी पर तय सीमा से ज्यादा पैसा खर्च करने का आरोप
- इंदिरा ने हाईकोर्ट का फैसला नहीं माना, इस्तीफा से इनकार
- इंदिरा ने सुप्रीम कोर्ट में फैसले को चुनौती देने की बात कही
- 25 जून की रात में इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की