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बाली में हिंदुत्व की कहानी India TV रिपोर्टर की जुबानी!

नई दिल्ली: बुरी तरह खाली हूँ। सो बुरी तरह लिख रहा हूँ। इंडोनेशिया के बाली में हिंदुत्व। दंग हूँ। बुरी तरह दंग हूँ। बाली में हिंदुत्व का ये उभार देखकर। "ॐ स्वस्ति अस्तु।" ये बाली

Abhishek Upadhyay
Updated : November 10, 2015 12:38 IST
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बाली में हिंदुत्व की कहानी India TV रिपोर्टर की जुबानी!

नई दिल्ली: बुरी तरह खाली हूँ। सो बुरी तरह लिख रहा हूँ। इंडोनेशिया के बाली में हिंदुत्व। दंग हूँ। बुरी तरह दंग हूँ। बाली में हिंदुत्व का ये उभार देखकर। "ॐ स्वस्ति अस्तु।" ये बाली के हिंदुत्व से हमारा पहला परिचय था। बाली के नूरह राय (Ngurah rai) एअरपोर्ट पर उतरकर हम जैसे ही टैक्सी काउंटर पर पहुंचे। 'ॐ स्वस्ति अस्तु' कहकर अभिवादन करती एक आवाज़ हमारे कानो में पड़ी। ये टैक्सी काउंटर पर बैठे ड्राइवर थे। बाली के हिन्दू आज भी ऐसे ही अभिवादन करते हैं। ज़िंदगी के थपेड़ों में बुरी तरह असामान्य हो चुकी अपनी 'सामान्य समझ' का इस्तेमाल करते हुए मैंने भी कहा- ॐ स्वस्ति अस्तु और अभिवादन में सिर झुका दिया।

अब तक उनमें से एक की निगाह मेरी और मेरे कैमरामैन महेश कांडपाल की कलाइयों पर चली गयी थी। दोनों ही पर तीन चक्रों में कलावा बंधा हुआ था। 'Are you hindus?" इससे पहले मैं कोई जवाब देता, महेश लगभग चीखते हुए बोला-' Yes yes yes, we are hindu." महेश की आवाज़ सुनकर ऐसा लगा मानो प्लेन की इमरजेंसी लैंडिंग हो गयी हो। मैंने तुरन्त समझाया, 'अबे आराम से। मजहब पूछ रहा है। कोई concession ऑफर नही कर रहा है।'

एअरपोर्ट से निकलते ही हम भौचक से थे। जिधर नज़र जाए। ब्रह्मा, विष्णु, शिव की मूर्तियां। घरों का वास्तु भी प्राचीन कालीन काष्ठ यानि लकड़ी के बने मन्दिरों जैसा। जगह जगह मन्दिरों के छत्र और पताकायें लहराती हुई। एअरपोर्ट से हम सीधे 'पोल्डा बाली'(बाली पुलिस स्टेशन) के लिए रवाना हो चुके थे। छोटा राजन यहीं बंद था। रास्ते में लगभग एक दर्जन बार हमारा ड्राइवर हमसे 'ॐ नमः शिवाय' बोल चुका था। लगभग दो दर्जन बार वो हमसे 'गोंगा रिवर' (गंगा नदी) के बारे में पूछ चुका था। लगभग तीन दर्जन बार वो हमे अपनी कलाई पर बंधा पवित्र धागा दिखा चुका था। बाली में इस कलावे को 'बनांग' कहते हैं। तीन रंगों को समाए हुए। सफेद। लाल। और काला। रास्ते भर वो अपनी टूटी-फूटी अंग्रेजी में हमे बाली के हिन्दू धर्म के बारे में बताता रहा।

हमारी कार कई बार बाली की छोटी, संकरी गलियों से होकर गुज़री। अदभुत दृश्य था। समूची गलियाँ बांस, पत्र, पुष्प, लताओं और वल्लरियों से बने धार्मिक प्रतिमानों से गुंथी हुई। मुझे किताबों में पढ़े हुए कोसल, मिथिला, वैशाली, तक्षशिला,  नालन्दा जैसे प्राचीन महाजनपद याद आ रहे थे। अब तक जो सिर्फ किताबों में पढ़ा था। वो इतिहास मेरी आँखों के आगे खुला हुआ था।

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