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कुतुब मीनार परिसर में मिले पूजा की अनुमति, हिंदू और जैन समुदाय ने अदालत से की मांग

दिल्ली की प्रसिद्ध कुतुब मीनार परिसर में पूजा पाठ करने के लिए हिंदू और जैन समुदाय ने अदालत से अनुमति मांग है।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: December 09, 2020 14:06 IST
Qutub Minar- India TV Hindi
Image Source : PTI Qutub Minar

दिल्ली की प्रसिद्ध कुतुब मीनार परिसर में पूजा पाठ करने के लिए हिंदू और जैन समुदाय ने अदालत से अनुमति मांग है। इन समुदायों का आरोप है कि कुतुब मीनार परिसर में स्थित कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद हिंदुओं और जैनों के 27 मंदिरों को तोड़कर बनाई गई है। इसके साथ ही कुतुब मीनार परिसर में देवताओं की मूर्ति की स्थापना और पूजा-अर्चना का अधिकार मांगा गया है। 

इस संबंध में दिल्ली के साकेत कोर्ट में भगवान विष्णु और भगवान ऋषभदेव की ओर से मुकदमा दाखिल किया गया है। इस याचिका में भग्नावस्था में पड़ी देवताओं की मूर्तियों की पुनर्स्थापना और पूजा-प्रबंधन का इंतजाम किए जाने की मांग की गई है। इस मुकदमे को स्वीकार करने को लेकर मंगलवार को साकेत कोर्ट में सिविल जज नेहा शर्मा की अदालत में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई हुई। मामले पर अगली सुनवाई 24 दिसंबर को होगी।

प्राप्त जानकारी के अनुसार इस मुकदमे में कुल पांच याची हैं। पहले याचिकाकर्ता तीर्थकर भगवान ऋषभदेव हैं, जिनकी तरफ से हरिशंकर जैन ने निकट मित्र बनकर मुकदमा किया है। दूसरे याचिकाकर्ता भगवान विष्णु हैं, जिनकी ओर से रंजना अग्निहोत्री ने मुकदमा किया है। मामले में भारत सरकार और भारत पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) को प्रतिवादी बनाया गया है। 

याचिका में कहा गया है कि दिल्ली के कुतुब परिसर में स्थित कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद को हिंदू और जैनों के 27 मंदिरों को तोड़कर उनके मलबे से बनाया गया है। आक्रमणकारी मुहम्मद गोरी के कमांडर कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसका निर्माण कराया था। वहां देवी-देवताओं की सैकड़ों खंडित मूर्तियां आज भी हैं। कहा गया है कि यह मुकदमा संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 में मिले धार्मिक आजादी के अधिकारों के तहत तोड़े गए मंदिरों की पुनर्स्थापना के लिए दाखिल किया गया है। 

मंगलवार को याचिकाकर्ता की हैसियत से स्वयं बहस करते हुए हरिशंकर जैन ने कहा कि इस मामले में ऐतिहासिक और एएसआइ के साक्ष्य हैं। इनसे साबित होता है कि इस्लाम की ताकत प्रदर्शित करने के लिए कुतुबुद्दीन ऐबक ने मंदिरों को तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया था। उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम के तहत 1914 में अधिसूचना जारी कर इस पूरे परिसर का मालिकाना हक और प्रबंधन अपने हाथ में ले लिया था। ऐसा करने से पहले सरकार ने हिंदू और जैन समुदाय को सुनवाई का मौका नहीं दिया।

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