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खतरनाक दर से सिकुड़ रहे हैं हिमालय के ग्लेशियर: संसदीय समिति

एक संसदीय समिति ने केंद्र को हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र के व्यापक अध्ययन के लिए पर्याप्त वित्तीय आवंटन और आधारभूत ढांचा मुहैया कराने की सिफारिश की है जिससे यह पता लगाया जा सके कि ग्लेशियर किस हद तक सिकुड़ रहे हैं और उसके प्रभावों को कम करने के क्या तरीके हो सकते हैं।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published : December 23, 2018 21:01 IST
Himalayan glaciers retreating at alarming rate
Himalayan glaciers retreating at alarming rate

नई दिल्ली: एक संसदीय समिति ने केंद्र को हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र के व्यापक अध्ययन के लिए पर्याप्त वित्तीय आवंटन और आधारभूत ढांचा मुहैया कराने की सिफारिश की है जिससे यह पता लगाया जा सके कि ग्लेशियर किस हद तक सिकुड़ रहे हैं और उसके प्रभावों को कम करने के क्या तरीके हो सकते हैं। समिति ने इसका उल्लेख किया कि हिमालयी क्षेत्र के ग्लेशियर ‘‘खतरनाक दर’’ से सिकुड़ रहे हैं और पर्यटन गतिविधियों को नियंत्रित करने की जरूरत है। समिति ने ‘हिमालयन इको..टूरीज्म’ के लिए एक रूपरेखा बनाते समय ध्यान में रखने वाले दिशानिर्देश तैयार करने के लिए केंद्र को विशेषज्ञों की एक समिति भी गठित करने का सुझाव दिया।

प्राक्कलन समिति (2018-2019) ने जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी) के प्रदर्शन पर अपनी 30वीं रिपोर्ट में कहा कि ऐसा तंत्र बनाने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है जिसमें वे सभी हितधारक शामिल हों जो हिमालयी तंत्र में परिवर्तनों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हैं ताकि पूरे क्षेत्र में एक एकीकृत दृष्टिकोण बनाया जाए। समिति ने कहा कि ऐसे मंच के लिए उन सभी देशों से अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जरूरत होगी जो हिमालयी क्षेत्र में आते हैं या उससे जुड़े हुए हैं।

भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली समिति ने उल्लेख किया कि पर्यावरणीय क्षरण के लिए हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र में ‘‘लापरवाह और गैर जिम्मेदार’’ पर्यटन मुख्य कारणों में शामिल है। समिति ने इस बात पर जोर दिया कि पर्यटकों के लिए सड़कों और अच्छी सुविधाओं के निर्माण से वहां जाने वाले लोगों की संख्या काफी बढ़ गई है। इससे पारिस्थितिकी तंत्र पर भी दबाव बढ़ रहा है। समिति ने कहा कि अधिक संख्या में आगंतुकों के चलते सड़क, मकान, होटल और रिसॉर्ट का निर्माण पहाड़ काटकर करना पड़ता है। इसके अलावा इन निर्माण में से कई पर्वतों के लिए निर्धारित विनिर्देशों के अनुरूप नहीं होते बल्कि मैदानी क्षेत्रों से प्रेरित होते हैं।

समिति ने लोगों को हिमालयी क्षेत्र की संवेदनशीलता के बारे में अवगत कराने के लिए जागरूकता अभियान चलाने और सरकार द्वारा दीर्घकालिक पर्यटन शुरू करने की जरूरत पर बल दिया। समिति ने मीडिया की खबरों का उल्लेख करते हुए कहा कि ग्लेशियरों के सिकुड़ने के चलते गत चार दशकों में हिमालयी क्षेत्र के 13 ग्लेशियर लुप्त हो गए। इसके परिणामस्वरूप ग्लेशियरों ने 443 अरब टन बर्फ गंवा दी।

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