पणजी: गोवा और दमन के आर्चबिशप फादर फिलिप नेरी फेरारो द्वारा संविधान खतरे में होने की बात कहते हुए पत्र लिखना अब ईसाई संगठनों के लिए विरोध का कारण बनता जा रहा है। मंगलवार को दिन भर इस विषय़ में विभिन्न टीवी चैनलों पर ये मुद्दा गर्माया रहा। विवाद बढ़ता देख बिशप कार्यालय ने इस पर सफाई पेश की है। कार्यालय की तरफ से कहा गया है कि वह अपने लोगों के समक्ष अपनी चिंता जाहिर कर रहे थे और उनका बयान किसी राजनैतिक दल या सरकार के खिलाफ नहीं है।
फेरारो के सचिव फ्रांसिस जोकिम लोइला परेरा ने कहा कि लोगों को समूचे 15 पन्ने का पत्र पढ़ना चाहिये और ‘‘ इस बयान या उस बयान को संदर्भ से परे नहीं लिया जाना चाहिये और ऐसे नहीं पेश करना चाहिये कि जैसे यह पत्र राजनैतिक दलों के खिलाफ हो। ’’ गोवा और दमन क्षेत्र के ईसाइयों को संबोधित एक पत्र में आर्चबिशप ने कहा , ‘‘ आज , हमारा संविधान खतरे में है और उसी वजह से हममें से ज्यादातर लोग असुरक्षा में रह रहे हैं। ’’ यह पत्र रविवार को जारी किया गया था। पत्र में उन्होंने कहा कि संविधान को बेहतर तरीके से समझा जाना चाहिये क्योंकि आम चुनाव करीब आ रहे हैं। चुनाव को देखते हुए जानकार इस पत्र को बीजेपी के खिलाफ मान रहे हैं।
आर्चबिशप के सचिव ने मंगलवार को कहा , ‘‘ सबसे पहले किसी राजनैतिक दल या किसी सरकार का नाम नहीं लिया गया है। यह भारत और गोवा में जो हो रहा है उसपर टिप्पणी है। ’’ उन्होंने कहा कि गोवा के आर्चबिशप का पत्र देश में जो कुछ भी हो रहा है उसपर राजनैतिक टिप्पणी नहीं है। परेरा ने कहा , ‘‘ तथ्य यह है कि उन्होंने (आर्चबिशप) कहा है कि संविधान को खतरा है , लेकिन अगर आप पढ़ें जिसके बारे में उन्होंने सविस्तार कहा है तो आप पाते हैं कि यह सभी तरह का खतरा नहीं है। ’’ उन्होंने कहा , ‘‘ खतरा शब्द का उल्लेख है , लेकिन आप पत्र को पढ़ेंगे तो यह बड़ा खतरा नहीं है , जिसका उसमें उल्लेख किया गया है। ’’
उन्होंने कहा , ‘‘ भले ही यह छोटा खतरा हो , मैं आपसे पूछता हूं कि क्या बिशप को उस तरीके से सोचने और अपनी चिंता को अपने लोगों के बीच अभिव्यक्त करने का अधिकार नहीं है? ’’आर्चबिशप ने यह भी कहा था कि मानवाधिकार पर हमला हो रहा है और लोकतंत्र खतरे में लगता है। गौरतलब है कि फेरारो का पत्र दिल्ली के आर्चबिशप अनिल काउटो के इसी तरह के पत्र के कुछ दिनों बाद आया है। काउटो ने अपने पत्र में कहा था कि , ‘‘ अस्थिर राजनैतिक माहौल से भारत के लोकतांत्रिक सिद्धांतों और धर्मनिरपेक्ष ताने - बाने को खतरा है। ’’ परेरा ने कहा कि फेरारो ओर काउटो के पत्र के बीच कोई संबंध नहीं है।
उन्होंने कहा , ‘‘ दिल्ली के आर्चबिशप या (पिछले साल) गांधीनगर के आर्चबिशप ने जो कहा था इसका उससे कोई लेना - देना नहीं है। लोगों का मानना है कि यह रुझान है।कोई रुझान नहीं है। इस तरह से नहीं देखा जाना चाहिये कि चर्च भारत सरकार के खिलाफ है। यह पत्र हमेशा जून में आता है। ऐसा हुआ कि यह दिल्ली के बिशप के परिपत्र के एक महीने बाद आया है। प्रेस ने 15 पन्नों के पत्र से कुछ गैर महत्वपूर्ण बयानों को बढ़ा - चढ़ाकर पेश किया। हमें पादरी के पत्र को पेस्टर द्वारा अपने लोगों को लिखे गए पत्र के तौर पर लेना चाहिये। पत्र में मुख्य रूप से गरीबी पर ध्यान केंद्रित किया गया है। कुछ गैर महत्वपूर्ण बयानों को प्रेस ने गंभीरता से लिया है और अब हर कोई उन बयानों पर चर्चा कर रहा है जैसे पादरी का पत्र राजनीति के बारे में है और वह सत्ता के खिलाफ हैं। ’’
उन्होंने कहा कि पादरी का पत्र चर्च के मुखिया इसके सदस्यों को लिखते हैं। उन्होंने कहा , ‘ आर्चबिशप ने गोवा में अपने चर्च के सदस्यों को यह पत्र लिखा है। यह पादरी की ओर से लिखा गया 15 वां पत्र है। ’’ पत्र में आर्चबिशप ने पूरे साल के लिये दिशा - निर्देश दिया है। उन्होंने कहा , ‘‘ पादरी का वर्ष जून में शुरू होता है और मई में समाप्त होता है। इसलिये हमेशा जून के महीने में वह विभिन्न विषयों पर पत्र जारी करते हैं। ’’