नई दिल्ली: आपने कई साधु संतों के बारे में सुना होगा, उनके जीवन को करीब से देखा होगा लेकिन आज हम आपको एक ऐसे संन्यासी से मिलवाने जा रहे हैं जो 3 करोड़ की कार में घूमता है, जिसे फरारी में घूमना पंसद है। इस साधु की उम्र महज 12 साल है लेकिन फरारी में घूमने वाला ये नन्हा साधु करोड़ों की संपत्ति की ठाठ बाट और ऐशो आराम को त्यागकर अब दीक्षा लेने जा रहा है। जैन मुनि बनने जा रहा है। महंगी कारों, लग्जरी लाइफ और बाइक्स के शौकीन रहे इस बच्चे ने अब संत बनकर सात्विक जीवन जीने का फैसला किया है। 12 साल की उम्र होती ही क्या है लेकिन 12 साल में ही भव्य वैराग की तरफ मुड़ गया।
कल तक जो बच्चा स्पोर्ट्स कार की बात करता था, बड़े होकर हवा से बात करने का सपना देखता था अब उसे जीवन की भव्यता भौतिकता में नही बल्कि संन्यास में लगने लगी है। 19 अप्रैल को भव्य दीक्षा लेने जा रहा है। उसके बाद वो अपने माता पिता का बेटा नहीं रहेगा, दादा-दादी का पोता नहीं बल्कि जैन मुनि कहलायेगा। लोगों को जिंदगी के बारे में अच्छी बुरी समझ को बतायेगा। भव्य को उमरा स्थित जैन संघ में आचार्य रश्मिरत्नसूरी दीक्षा देंगे।
इम्पोर्टेड कारों से लेकर बाइक, परफ्यूम, गोगल्स के शौकीन भव्य ने संयम और त्याग की राह पर चलने का प्रण लिया है। पिछले साल सोलह अक्टूबर को जब उसने संन्यासी बनने का फैसला किया था तब भी वो मुहूर्त यात्रा में फरारी में बैठकर पहुंचा था, उसके बाद खुली जीप से यात्रा की थी। पूरे रास्ते नाचते-गाते और झूमता नजर आया। उसके साथ सैकड़ों लोग थे। भव्य के पिता सूरत के बहुत बड़े कारोबारी है। बेटी पहले ही दीक्षा ले चुकी है और बहन को देखकर ही भव्य ने उस रास्ते को चुन लिया है, जहां संसारिक सुख की सारी चीजें छूट जाती है।
मां-बाप बहुत खुश है कि बेटा भी अब आधात्यमिक महत्व को समझेगा और कुछ दिनों बाद जैन मुनि के रुप में लोगों के बीच ज्ञान की गंगा बहाएगा। इस फैसले को भव्य भी समझता है। उसे दुख तो है उसकी फरारी कार उससे छूट रही है, दोस्त दूर जा रहे हैं लेकिन खुशी है कि अब वो दीक्षा लेकर लौटेगा तो जैन मुनि कहलाएगा।
छठी कक्षा में 79 फीसदी अंक लाने वाला भव्य छुट्टियों में मुनियों संग विहार करने लगा और फिर पढ़ाई छोड़ दी। फिलहाल वो संस्कृत व्याकरण की तैयारी कर रहा है। दीक्षा लेने से पहले ही भव्य अहमदाबाद, राजकोट, राजस्थान में 1000 किमी से अधिक विहार पैदल यात्रा कर चुका है। शाम होने से पहले ही भोजन को त्याग देने की बदौलत उसे दीक्षा की अनुमति मिली है।
ऐसा नहीं है कि भव्य दीक्षा लेने वाला कोई पहला बच्चा है लेकिन 12 साल की उम्र में दीक्षा लेना एक संघर्ष की तरह है। संसार के सारे सुखों को छोड़ देना, जिंदगी कोरे कागज की तरह हो जाती है। जानने वालों को हैरानी हो रही है लेकिन सब खुश हैं कि उनके बीच का एक बच्चा बड़ा होकर लोगों को जीने का सलीका सीखाएगा।