GST को आज आधी रात संसद के केंद्रीय सभागार में एक समारोह में लागू कर दिया जाएगा। ये देश का अब तक का सबसे बड़ा कर सुधार है। GST किसी एक व्यक्ति या एक सरकार की मेहनत का नतीजा नहीं है। इसे बनाने में 17 साल लगे हैं। GST से वो सब बदल जाएगा जिसका संबंध लेनदेन से है यानी जिसमें धन शामिल हो। वैसे 1986-87 में राजीव गांधी सरकार के कार्यकाल में वित्त मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने MODVAT (Modified Value Added Tax) लाकर कर सुधार को कुछ गति दी थी। हम यहां आपको बताने जा रहे हैं उन लोगों के बारे में जिनकी मेहनत का नतीजा है GST।
अटल बिहारी वाजपेयी
GST की अवधारणा 1999 में बनी था जब अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में केंद्र में NDA सरकार थी। वाजपेयी ने आरबीआई के पूर्व गवर्नर आईजी पटेल, बिमल जालान और सी. रंगराजन सहित अपने सलाहकारों के साथ बैठक की और उसी बैठक में GST का प्रस्ताव रखा गया था। बैठक में पूरे देश के लिए समान कर प्रणाली बनाने के आइडिये पर विचार किया गया और इस पर सहमति भी हो गई। वाजपेयी सरकार ने 2000 में कम्युनिस्ट नेता और पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री असीम दासगुप्ता के नेतृत्व में एक समिति बनाई जिसका काम था GST का मॉडल बनाना। वाजपेयी जी ने दासगुप्ता की सेवाएं लेने के लिए पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु को ख़ुद फ़ोन किया था।
असीम दासगुप्ता
असीम दासगुप्ता का शुमार देश के बेहतरीन अर्थशास्त्रियों में होता है। वित्तीय आंकड़ों के मामले में उन्हें विशेषज्ञ माना जाता है। वह MIT doctorate हैं। उनकी क़ाबिलियत को दो प्रधानमंत्रियों ने माना था-अटलबिहरी वाजपेयी और मनमोहन सिंह।
जब यूपीए-1 सरकार सत्ता में आई और वाजपेयी की जगह मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने, तब मनमोहन सिंह ने GST समिति से दासगुप्ता को हटाने से मना कर दिया था। उनका मानना था कि दासगुप्ता देश के अब तक के सबसे अच्छे कर सुधार की अगुवाई कर रहे हैं। मनमोहन सिंह ख़ुद भी अर्थशास्त्री हैं।
दासगुप्ता ने GST मॉडल पर सात साल काम किया। मनमोहन सिंह ने GST विधेयकों की रुपरेखा बनाने के लिए एक समिति बनाई और इसका भी ज़िम्मा दासगुप्ता को सौंपा। इस दौरान दासगुप्ता उद्योगपतियों, राज्य सरकारों और वित्तीय संस्थानों से विस्तार से बात की।
2011 में पश्चिम बंगाल में लगभग 40 साल के वामपंथी शासनकाल के ख़त्म होने और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद दासगुप्ता ने GST समिति से इस्तीफ़ा दे दिया लेकिन तब तक GST का 80 फ़ीसद काम हो चुका था।
के.एम.मणि
दासगुप्ता के इस्तीफ़े के बाद केरल के वित्त मंत्री के.एम.मणी ने समिति का कार्यभार संभाला। उन्होंने GST विधेयकों को अंतिम रुप देने का काम किया। मणि ने बाक़ी रह गए काम को पूरा करने के लिए तमाम संबंधित लोगों से विचार विमर्श किया। मणि ने राज्यों के इस डर को दूर किया कि GST से उनकी वित्तीय स्वायत्तता
ख़त्म हो जाएगी और कर वसूली में अड़चनें आएंगी। उन्होंने व्यापारिक संगठनों से मिलकर उन्हें समझाया कि GST से देश में व्यापार करना आसान हो जाएगा।
2015 में मणि भ्रष्टाचार में फंस गए और उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा लेकिन इसके पहले वह कई व्यापारिक संगठनों से मिलकर आमसहमति बना चुके थे।
अमित मित्रा
मणि के जाने के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने फिर पश्चिम बंगाल का रुख़ किया। उन्होंने राज्य के वित्त मंत्री अमित मित्रा को समिति का अध्यक्ष बनाया। मित्रा अर्थशास्त्री हैं और राज्य के वित्त मंत्री बनने के पहले फिक्की के महासचिव रह चुके थे। सभी राज्यों द्वारा GST को स्वीकार करने का श्रेय मित्रा को ही जाता है।
लेकिन ये भी विडंबना है कि अब जबकि केंद्र सरकार GST लागू करने जा रही है, मित्रा इसका बहिष्कार कर रहे होंगे। उनका मानना है कि लागू करने के पहले इसकी और जांच परख होनी चाहिए। उनका तर्क है कि उन्हें GST का मौजूदा रुप स्वीकार नहीं है।
पी. चिदंबरम
12वें वित्त आयोग की सिफ़ारिशों पर आधारित निवर्तमान वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने 2005 में GST लागू करने का वादा किया। उन्होंने फरवरी 2006 में GST लागू करने के लिए एक अप्रैल 2010 डेडलाइन घोषित कर दी। चिदंबरम अपने अगले बजट भाषणों में भी इस डेडलाइन का ज़िक्र करते रहे। बाद में चिदंबरम की जगह प्रणव मुखर्जी वित्त मंत्री बन गए इसके बाद GST पर राजनीति होने लगी और मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
अरुण जेटली
केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद फ़रवरी 2015 में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने घोषणा की कि GST अप्रैल 2016 से लागू किया जाएगा जिसे बाद में बदलकर एक जुलाई 2017 कर दिया गया। जेटली ने अगस्त 2016 तक चारों GST विधेयकों को पारित करवाया। इसके अलावा उन्होंने राज्यों से मिलकर विधानसभा में राज्य GST विधेयक पारित करवाने के लिए राज़ी किया।