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क्या दिवाली पर आतिशबाज़ी बहुत ज़रूरी है, कहां से आये पटाखे? जानिए क्या कहते हैं इतिहासकार

इसमें कोई शक नहीं है कि पटाखों के बिना दिवाली का उत्साह अधूरा है लेकिन मुश्किल ये है कि दिल्ली और आसपास के इलाकों में अगर आपने पटाखे चलाए तो जुर्माना और जेल दोनों हो सकती है। यानी इस बार आपको दिवाली बिना पटाखों के साथ मनानी पड़ सकती है।

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Published : October 26, 2019 10:50 IST
क्या दिवाली पर आतिशबाज़ी बहुत ज़रूरी है, कहां से आये पटाखे? जानिए क्या कहते हैं इतिहासकार
क्या दिवाली पर आतिशबाज़ी बहुत ज़रूरी है, कहां से आये पटाखे? जानिए क्या कहते हैं इतिहासकार

नई दिल्ली: इसमें कोई शक नहीं है कि पटाखों के बिना दिवाली का उत्साह अधूरा है लेकिन मुश्किल ये है कि दिल्ली और आसपास के इलाकों में अगर आपने पटाखे चलाए तो जुर्माना और जेल दोनों हो सकती है। यानी इस बार आपको दिवाली बिना पटाखों के साथ मनानी पड़ सकती है।  दिल्ली को प्रदूषण के ज़हर से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों पर पाबंदी लगाई हुई है और सरकार को ये आदेश दिया था कि कम प्रदूषण पैदा करने वाले ग्रीन पटाखे उपलब्ध कराये जाएं लेकिन लोगों की दिक्कत ये है कि उनको इस बारे में बहुत कम जानकारी है। इसके अलावा बाज़ार में ग्रीन पटाखे बहुत मुश्किल से मिल रहे हैं। पटाखे बनाने वाले व्यापारियों के मुताबिक ग्रीन पटाखों को तैयार करने का फॉर्मुला सरकार से इतनी देर से मिला कि बाज़ार में ग्रीन पटाखे की सप्लाई करना बहुत मुश्किल है। यानी एक तरफ सामान्य पटाखों पर पाबंदी और दूसरी तरफ ग्रीन पटाखों की कमी ने लोगों को बहुत मायूस कर दिया है।

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ग्रीन पटाखे सामान्य पटाखों से कैसे अलग होते हैं?

सामान्य पटाखों की तुलना में ग्रीन पटाखों से पीएम 2.5 और पीएम 10, 35 से 40 प्रतिशत कम पैदा होता है। ग्रीन पटाखों को जलाने पर तेज आवाज़ और अच्छी रोशनी तो होगी लेकिन धुआं कम निकलेगा क्योंकि इन  पटाखों में लेड, मरक्यूरी, लीथियम और आर्सेनिक जैसे खतरनाक केमिकल्स का इस्तेमाल नहीं किया गया है। इनमें एल्यूमिनियम, पोटेशियम, बेरिमय नाइट्रेट और सल्फर का इस्तेमाल हुआ है जिसकी वजह से सामान्य पटाखों की तुलना में ग्रीन पटाखों से 35 से 40 प्रतिशत कम हानिकारक धुआं निकलता है।

क्या दिवाली पर पटाखे चलाना बहुत ज़रूरी है?
पटाखों का दूसरा पहलू ये भी है कि हर बार की तरह इस बार भी दिवाली पर आपको अपनी और अपने परिवार की सेहत के साथ बहुत बड़ा समझौता करना होगा क्योंकि पटाखों का प्रदूषण से सीधा रिश्ता है। एक आंकड़े से समझिये कि पिछले कई वर्षों से आपकी दीवाली प्रदूषण वाली हो चुकी है। वर्ष 2016 की दिवाली की रात दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स 426 था जबकि 2017 में एक्यूआई 326 था। पिछले साल 2018 में दिवाली की रात प्रदूषण 576 के ख़तरनाक स्तर पर पहुंच गया था।

इस बार भी दिवाली पर प्रदूषण का स्तर कम होने वाला नहीं है क्योंकि किसान पराली जला रहे हैं और आप पटाखे चलाने की तैयारी में हैं इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को ये निर्देश दिये थे कि इस बार भी दिवाली पर ग्रीन पटाखें उपलब्ध कराये जायें क्योंकि सामान्य पटाखों की तुलना में ग्रीन पटाखों में प्रदूषण कम होता है। 

अनार जलाने से 34 सिगरेट के बराबर पैदा होता है प्रदूषण
सामान्य पटाखों का दूसरा पहलू ये भी है इनसे आपके आसपास प्रदूषण का स्तर इतना बढ़ जाता है कि आप ना चाहते हुए कई सिगरेट के बराबर धुआं पी जाते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि सामान्य पटाखों में सांप की गोली को सिर्फ़ 9 सेकेंड जलाने से 464 सिगरेट के बराबर प्रदूषण होता है। एक हज़ार बम वाली लड़ी को चलाने से 277 सिगरेट के बराबर धुआं निकलता है। इसके अलावा बच्चों की सबसे पंसदीदा फुलझड़ी को जलाने से आप 74 सिगरेट जितना धुआं निगल जाते हैं जबकि एक अनार को जलाने से 34 सिगरेट के बराबर प्रदूषण पैदा होता है। 

आसानी से कर सकते हैं ग्रीन पटाखों की पहचान
दिवाली पर बढ़ते प्रदूषण को ध्यान में रखकर सुप्रीम कोर्ट ने ये निर्देश दिये थे कि पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाने वाले ग्रीन पटाखें तैयार किये जाएं। इसके बाद सीएसआईआर यानी द काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रिअल रिसर्च और नेशनल एनवायरमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट ने ग्रीन पटाखे तैयार किये। सबसे खास बात ये है कि आप बड़ी आसानी से ग्रीन पटाखों की पहचान कर सकते हैं। इसके लिए पटाखों के पैकेट पर लोगो और क्यूआर कोड लगाये हैं जिन्हें स्कैन करने से ये पता लगाया जा सकता है कि ग्रीन पटाखों में किस करह के केमिकल्स का इस्तेमाल किया गया है। 

ग्रीन पटाखों की कीमत
हालांकि लोगों कि ये शिकायत है कि दिल्ली और एनसीआर के बाजारों में ग्रीन पटाखें बहुत मुश्किल से मिल रहे हैं। दिवाली के सीजन को देखते हुए बाज़ार में ग्रीन पटाखें बहुत कम है। इसके अलावा इन पटाखों की वैराइटी बहुत कम हैं। इतना ही नहीं ग्रीन पटाखों के साथ दूसरी समस्या ये भी है कि आम पटाखों के मुकाबले ग्रीन पटाखे महंगे हैं। यानी सामान्य पटाखों की तुलना में ग्रीन पटाखों की रेट दोगुनी है। आमतौर पर 10 पीस वाले फुलझड़ी के एक पैकेट की कीमत 200 रुपये होती है लेकिन ग्रीन पटाखों वाली फुलझड़ी की कीमत 350 से 400 रुपये है।

इसके अलावा  ग्रीन पटाखों की 10 पीस वाली चकरी की कीमत 400 से 500 रुपये है जबकि सामान्य पटाखों में चकरी की कीमत 200 से 250 रुपये होती है लेकिन प्रदूषण के ख़तरनाक स्तर को देखकर ये कीमत बहुत कम है। ग्रीन पटाखों का इस्तेमाल करके आप पर्यावरण के साथ-साथ अपनी सेहत को प्रदूषण के ज़हर से बचा सकते हैं। हो सकता है इन पटाखों को पाने में आपको थोड़ी मुश्किल का सामना करना पड़े लेकिन अपने आसपास के वातावरण को प्रदूषण के संकट से बचाने के लिए थोड़ी बहुत मुश्किलों का सामना किया जा सकता है। 

कहां से आये पटाखे? ऐतिहासिक तथ्य
वैसे आपको ये जानकर हैरानी हो सकती है कि दिवाली के त्योहार का पटाखों से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं है। ये रोशनी और अंधकार पर प्रकाश की जीत का त्योहार है। ये बात तो सब जानते हैं कि भगवान राम के लंका विजय के बाद अयोध्यावासियों ने दीपक जलाकर उनका स्वागत किया था। उस समय श्रीराम के स्वागत में पटाखे या आतिशवाज़ी नहीं हुई थी क्योंकि त्रेतायुग में पटाखों का अविष्कार नहीं हुआ था। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि पहली बार आतिशबाज़ी का इस्तेमाल आज से करीब 2 हज़ार साल पहले चीन में हुआ था। आश्चर्य की बात ये है कि उस समय आतिशबाज़ी के लिए बारूद का नहीं बांस का इस्तेमाल किया जाता था। बांस की लकड़ी में कुछ ऐसे हिस्से होते हैं जिनमें आग लगाने पर धमाका होता है।

मुग़लों के दौर में आतिशबाज़ी और पटाखों का ख़ूब इस्तेमाल होता था
चीन में ये प्रयोग सफल हुआ और आतिशबाज़ी चलन बढ़ने लगा। ऐसा माना जाता है कि 8वीं शताब्दी के आस-पास चीन के रसायन वैज्ञानिकों ने बारूद की खोज की। चीन में मोम, शोरा, आर्सेनिक, तेल और सल्फर की मदद से बारूद बनाया गया था। कुछ इतिहासकारों के इस बात पर मतभेद है कि भारत में पटाखें पहली बार मुगल लेकर आये थे हालांकि इसमें कोई शक नहीं है कि मुग़लों के दौर में आतिशबाज़ी और पटाखों का ख़ूब इस्तेमाल होता था। मुगल काल में शादी और जश्न के दौरान पटाखे चलाने का चलन रहा है लेकिन उस समय किसी ने ये नहीं सोचा था कि आने वाले समय में आतिशबाज़ी और पटाखें प्रदूषण की बहुत बड़ी वजह बन जायेंगे।

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