कर्नाटक हाई कोर्ट ने टीपू सुल्तान जयन्ती कार्यक्रम को रद्द करने के बीजेपी सरकार के फैसले पर रोक तो नहीं लगाई लेकिन सरकार को ये हिदायत दी कि 2 महीने के अंदर सरकार इस फैसले पर पुनर्विचार करे।
चीफ जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका और जस्टिस एस आर कृष्णकुमार की खण्डपीठ ने अपने अंतरिम आदेश में कहा कि मुख्यमंत्री येदियुरप्पा का ये फैसला प्रथम दृष्टया पक्षपातपूर्ण लगता है, कोर्ट ने कहा कि जो लोग 10 नवम्बर को टीपू जंयती का आचरण करेंगे उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार की होगी।
अंतरिम फैसले के अहम बिन्दु
1. 29 जुलाई 2019 को CM पद की शपथ लेने वाले मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने अगले दिन 30 जुलाई को टीपू जयन्ती को रद्द कर दिया, ऐसा प्रतीत होता है कि 2015 और 2016 के इस जयन्ती को मनाने के पुराने आदेश पर गौर किये बिना फैसला किया गया।
2. कोडूगु जिले के एक विधायक की अपील के आधार पर CM ने ये फैसला किया, विधायक ने इस जयन्ती के आचरण पर उस जिले में कानून व्यवस्था के हालात बिगड़ने की आशंका जताई, कोर्ट ये समझ नहीं पाया कि सिर्फ एक जिले में पाबंदी लगाने की अपील पर पूरे राज्य में इस कार्यक्रम को रद्द करने का फैसला क्यों लिया गया।
3. ये फैसला लिए जाते समय मंत्रिमंडल का गठन नहीं हुआ था, बचाव पक्ष का ये तर्क सही है कि CM के पास मंत्रिमंडल का अधिकार है लेकिन कोर्ट ये मानती है कि नीतिगत फैसला करते समय अकेले CM, राज्यपाल को सलाह नहीं दे सकते इसके लिए मंत्रिमंडल की मंजूरी जरूरी है।
4. कोर्ट सरकारी वकील के इस पक्ष को भी खारिज करती है कि नीतिगत फैसले में कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकती, कोर्ट का ये मत है कि अगर फैसला जनहित से जुड़ा हो तो कोर्ट उसमें हस्तक्षेप कर सकती है।
5. जिस जल्दबाजी में सरकार ने फैसला किया उससे ऐसा प्रतीत होता है कि ये फैसला पक्षपात पूर्ण हो सकता है।
कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई जनवरी 2020 के तीसरे सोमवार तक टाल दी और सरकार को कहा कि वो अपने फैसले पर पुनर्विचार करे और इस बात का ध्यान रखे कि बाकी 28 हस्तियों की जयन्ती मनाने वाली सरकार को सिर्फ टीपू सुल्तान की जयन्ती मनाने पर ही क्यों आपत्ति है। बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी सरकार के इस फैसले को टीपू सुल्तान यूनाइटेड फ्रंट नामक संस्था ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।