Friday, November 22, 2024
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‘सरकार पुलवामा हमले का बदला ले, एक महीने तक किसी सवारी से पैसे नहीं लूंगा’

गुरुवार को पुलवामा में सीआरपीएफ़ के काफिले पर हुए आतंकी हमले में शहीद जवानों को देश के कोने-कोने में श्रद्धांजलि दी गई।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: February 15, 2019 23:43 IST
‘सरकार पुलवामा हमले का बदला ले, एक महीने तक किसी सवारी से पैसे नहीं लूंगा’- India TV Hindi
Image Source : ANI ‘सरकार पुलवामा हमले का बदला ले, एक महीने तक किसी सवारी से पैसे नहीं लूंगा’

नई दिल्ली: गुरुवार को पुलवामा में सीआरपीएफ़ के काफिले पर हुए आतंकी हमले में शहीद जवानों को देश के कोने-कोने में श्रद्धांजलि दी गई। बात देश के वीर सपूतों के शहादत की थी इसलिए आज जो जहां था, जिस स्थिति में भी था, उसने अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। श्रद्धांजलि अर्पित करने के अलग-अलग तरीके़ की अलग-अलग जगह से तस्वीरें आईं। 

जम्मू के डोडा में बारिश हो रही थी,फिर भी लोग श्रद्धांजलि देने के लिए घर से बाहर निकले। भीगते हुए,नारे लगाते हुए उस स्थान पर पहुंचे जो श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए तय की गई थी। वहीं सवाई माधोपुर में आरक्षण की मांग को लेकर रेल की पटरियों पर दिन-रात बिता रहे गुर्जर समाज के लोगों ने पटरियों के किनारे ही मोमबत्ती जलाकर श्रद्धांजलि दी। 

इन सब से इतर अनिल कुमार जो पेशे से ऑटो ड्राइवर हैं, उन्होंने श्रद्धांजलि अर्पित करने का एक अनोखा तरीक़ा अपनाया। सेना के जवानों को फ़्री में उनकी मंज़िल तक पहुंचाने की शुरुआत की। अनिल ने न्यूज़ एजेंसी एएनआई से बातचीत में कहा कि अगर जिस दिन हमारी सरकार इस शहादत का बदला लेती है, उस दिन से एक महीने तक किसी भी सवारी से पैसे नहीं लूंगा। मैं सारी सवारियों को फ़्री में उनके गंतव्य तक छोडू़ंगा। आगे रिपोर्टर ने उनसे पूछा कि आप एक मैसेज दे रहे हैं,क्या आप चाहेंगे कि और भी लोग सामने आएं? तब अनिल ने कहा, ‘जी हां, मैं चाहता हूँ कि जैसे मैंने शुरुआत की है। वैसे ही लोग भी आगे आए। वैसे तो काफ़ी लोग सामने आ रहे हैं, लेकिन खुल कर नहीं आ पा रहे हैं। अपना देश है, अगर अपने देश में खुलकर आगे नहीं आएंगे, तो कौन से देश में आगे आएंगे।‘

बकौल अनिल सात साल से चण्डीगढ़ में ऑटो चला रहे हैं। सात साल में 460 से ज़्यादा सड़क दुर्घटनओं में घायल लोगों को अस्पताल ले जाते हैं। क्योंकि उनका मानना है कि अगर उनके 10 मिनट देने से किसी की जान बच जाती है तो इससे अच्छा और ज़रूरी कोई काम नहीं है। क्योंकि ज़िन्दगी मिलनी बहुत मुश्किल है। सवारी तो और मिल जाएगी। पैसा तो मैं और कमा लूंगा। मगर घायलों की सेवा का मौक़ा नहीं मिलता है। (इंडिया टीवी डॉट कॉम के लिए आदित्य शुभम की रिपोर्ट)

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