डेरा बाबा नानक (पंजाब): किसी सिख के लिए पाकिस्तान स्थित करतारपुर साहिब गुरुद्वारा में मत्था टेकना जिंदगीभर की एक बड़ी इच्छा पूरी होने जैसी है। यह कुछ वैसा ही है, जैसे किसी मुस्लिम के लिए पवित्र मक्का का दौरा करना। नरोवाल जिले में भारतीय सीमा से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित करतारपुर साहिब गुरुद्वारा का दौरा करने की दुनियाभर में बसे लगभग हर सिख की ख्वाहिश रही है।
करतारपुर साहिब, जिसे मूल रूप से गुरुद्वारा दरबार साहिब के नाम से जाना जाता है, पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है और माना जाता है कि सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव ने यहां अपने जीवन के अंतिम दिन बिताए थे। उनकी 550वीं जयंती 12 नवंबर को पड़ रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन किया, जबकि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में 550 भारतीय सिख श्रद्धालुओं का पहला जत्था सीमा पार गुरुद्वारा दरबार साहिब पहुंचा। चंडीगढ़ स्थित भारत-पाक शांति कार्यकर्ता और पत्रकार चंचल मनोहर सिंह ने लाहौर से फोन पर बताया, "करतारपुर कॉरिडोर दो देशों के बीच एक अच्छा लिंक है।" उन्होंने कहा कि 1947 में दोनों राष्ट्रों के अलग होने के बाद से दुनिया भर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए पाकिस्तान द्वारा भारत की ओर से सीमा को खोलना एक बड़ी उपलब्धि है।
सिंह ने कहा, "दोनों तरफ के निहित स्वार्थ वाले लोगों द्वारा नफरत फैलाए जाने के बाद हम सौभाग्य से दो महत्वपूर्ण सिख धर्मस्थलों- गुरुद्वारा डेरा बाबा नानक और करतारपुर साहिब गुरुद्वारा के बीच सीधा संपर्क बनता देख रहे हैं।"
करतारपुर साहिब गुरुद्वारा उस ऐतिहासिक स्थल पर बनाया गया है, जहां गुरु नानक देव ने अपने जीवन का अंतिम वर्ष बिताया था। यह गुरुद्वारा सन् 1947 में विभाजन के बाद भारत से आने वाले लोगों के लिए इसे बंद कर दिया गया था। सन् 1999 में मरम्मत के बाद इस गुरुद्वारे को तीर्थयात्रियों के लिए खोला गया था, और सिख जत्थे तब से नियमित रूप से वहां जाते रहे हैं।
भारत से सिख 'जत्थे' हर साल चार मौकों पर पाकिस्तान जाते हैं- बैसाखी, गुरु अर्जन देव की शहादत दिवस, महाराजा रणजीत सिंह की पुण्यतिथि और गुरु नानक देव का जन्मदिन। करतारपुर कॉरिडोर के खुलने से पहले, पाकिस्तानी अधिकारी आमतौर पर समय-समय पर लंबी घासों को उखाड़ते रहते हैं, ताकि भारत के श्रद्धालु टेलीस्कोप की मदद से इस गुरुद्वारे को देख सकें।
भारतीय श्रद्धालु, विशेष रूप से सिख, भारत और विदेशों से, पंजाब के गुरदासपुर जिले के डेरा बाबा नानक से अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार करने के लिए, सप्ताह में सभी सात दिन, सभी धर्मों के लिए वीजा-मुक्त 'खुले दर्शन' की मांग कर रहे हैं।
पंजाब के लोगों की इस भावना को ध्यान में रखते हुए, भारत ने पहली बार साल 1999 में करतारपुर साहिब गलियारे का प्रस्ताव रखा, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बस से लाहौर पहुंचे थे। हालांकि, इस दिशा में तब जाकर प्रगति हुई, जब पिछले साल यह प्रस्ताव नवीनीकृत किया गया था और भारत द्वारा इस पर जोर दिया गया। पाकिस्तान ने प्रस्ताव पर सहमति व्यक्त की और पिछले साल नवंबर में सीमा के दोनों ओर के गलियारे के लिए आधारशिला रखी गई।
भारत और पाकिस्तान ने पिछले महीने भारतीय तीर्थयात्रियों को पवित्र दरबार साहिब की पैदल यात्रा करने की अनुमति देने के लिए 4.2 किलोमीटर लंबे करतारपुर कॉरिडोर के संचालन के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। हालांकि, इस्लामाबाद द्वारा लगाए गए 20 डॉलर सेवा शुल्क वाला मुद्दा अनसुलझा रहा।