नई दिल्ली: मकर संक्रांति आते ही आसमान में उड़ती रंग-बिरंगी पतंगे तो नजर आती हैं लेकिन इस दिन खेला जाने वाला परंपरागत खेल गिल्ली-डंडा अब यदा-कदा ही दिखाई पड़ता है, लेकिन मंदसौर के गिल्ली-डंडा की बात अलग है। गिल्ली-डंडा को भारतीय परंपरागत ग्रामीण खेल माना जाता है लेकिन मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में बनने वाले गिल्ली-डंडा में कुछ ऐसी खास बात है कि अब यह भारत की सीमाएं लांघकर दुबई और सऊदी अरब तक जा पहुंचा है। आपको बता दें कि दुबई में रह रहे भारतीय जिन्होंने बचपन में गिल्ली-डंडा खेल का आनंद लिया होगा, वे अब अपनी नई पीढ़ी को इस खेल से परिचित करवाना चाहते हैं। उन्होंने मंदसौर के कलाकार को ऑर्डर देकर 100 जोड़ी गिल्ली-डंडा दुबई मंगवाए हैं। दिलचस्प बात यह है कि दुबई के स्थानीय लोग भी इस खेल को पसंद कर रहे हैं। वहीं, मध्य प्रदेश में आज मकर संक्रांति के पर्व पर बड़े पैमाने पर गिल्ली-डंडा खेला जाएगा।
मंदसौर में गिल्ली-डंडा बनाने वाले कलाकार प्रेमचंद नोगिया ने बताया कि नौकरी या कारोबार के सिलसिले में दुबई और सऊदी अरब में बस गए मंदसौर क्षेत्र के कुछ परिवार बीते वर्ष मंदसौर के 11 जोड़ी गिल्ली-डंडा ले गए थे। वहां उन्होंने खाली समय में इसे खेलना शुरू किया और अपने बचपन की यादें ताजा कीं। इसी दौरान उन्हें लगा कि दुबई और सऊदी अरब के रंग-ढंग में पल रही नई पीढ़ी को भी भारतीय जनजीवन की जड़ों से जोड़ने के लिए गिल्ली-डंडा का खेल सिखाना चाहिए। इस पर उन्होंने 100 जोड़ी गिल्ली-डंडों का ऑर्डर कर दिया। नोगिया कहते हैं, ऑर्डर तो 1000 जोड़ी का मिलने वाला था लेकिन कोरोना के कारण लोग सहम गए हैं।
कलाकार राजेश नोगिया बताते हैं, मंदसौर में बबुल की मजबूत लकड़ी को करीने से तराशकर गिल्ली को ऐसा नुकीला और डंडे को इतना गोल व आकर्षक बनाया जाता है कि इन्हें देशभर में पसंद किया जाता है। कलाकार इन डंडों पर डिजाइन बनाकर इनको और आकर्षक बना देते हैं।
उन्होंने बताया कि इनकी कीमत भी बहुत कम होती है। एक जोड़ी की कीमत 25 रुपये से लेकर 50 रुपये तक होती है। वहीं, आम या सागौन की लकड़ी के गिल्ली-डंडा 400 रुपये जोड़ी तक में भी बिकते हैं। मंदसौर के कालाखेत क्षेत्र में निवासरत नोगिया परिवार सहित लगभग 15 परिवार गिल्ली-डंडा बनाने का कारोबार करते हैं। यहां के गिल्ली-डंडा महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान सहित दिल्ली और छत्तीसगढ़ के कई शहरों में भेजे जाते हैं।