नई दिल्ली: पेट्रोल-डीजल की कीमतों में लगी आग के खिलाफ कल भारत बंद था जिसका असर हमारी आपकी ज़िंदगी पर दिखा लेकिन पेट्रोल-डीज़ल के दाम पर इसका कोई असर नहीं हुआ। आज भी पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़े, कम नहीं हुए। पेट्रोल डीजल के बढ़ते दाम और आसमान छूती महंगाई के विरुद्ध बंद के दौरान हंगामा, आगजनी और तोड़फोड़ की अनगिनत तस्वीरें दिखीं लेकिन सबसे दर्दनाक खबर बिहार के जहानाबाद से आई जहां दो साल की बच्ची की मौत हो गई। वो भी सिर्फ इसलिए क्योकि बंद की वजह से जाम था और वो वक्त पर अस्पताल नहीं पहुंच पाई।
मोदी सरकार की नीतियों पर पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने भी गंभीर सवाल उठाए। उसे देश हित के खिलाफ बताया और सरकार बदलने का बिगुल फूंक दिया। वहीं मोदी सरकार कहती है कि भारत बंद से क्या हासिल होगा जब तेल की कीमत बढ़ने की वजह इंटरनेशनल है। यानी विदेश में जो कुछ हो रहा है उससे कीमत बढ़ रही है और इस पर सरकार का कंट्रोल ही नहीं है।
विपक्ष कहता है सरकार तेल के दाम जान-बूझकर कम नहीं कर रही, सरकार कहती है अंतर्राष्ट्रीय हालात महंगे होते तेल के लिए जिम्मेदार हैं। वजह जो भी हो एक बात तो साफ है कि तेल को लेकर हो रही इस नूरा कुश्ती में आम लोग परेशान हैं। ये सच है कि हम अपनी जरूरत का 80 फीसदी तेल इंपोर्ट करते हैं जिसमें ईरान और वेनेजुएला तेल खरीद की सबसे बड़ी हिस्सेदारी है लेकिन अमेरिका ने 6 अगस्त से ईरान पर प्रतिबंध लगा दिए हैं। इसकी वजह से भारत को ईरान से तेल इंपोर्ट घटाना पड़ा है।
सरकार कहती है कि तेल की कीमतें उसके हाथ से बाहर हैं लेकिन विरोधी कहते हैं कि अगर मोदी सरकार एक्साइज़ ड्यूटी घटा दे और राज्य सरकारें अपना वैट कम कर दें तो पेट्रोल डीज़ल सस्ता हो सकता है। बता दें कि एक लीटर पेट्रोल पर करीब 55 फीसदी टैक्स लगता है। वहीं एक लीटर डीज़ल पर करीब 47 फीसदी टैक्स चुकाना पड़ता है। केंद्र की एक्साइड ड्यूटी के साथ ही राज्यों के वैट और डीलर के कमीशन समेत तमाम टैक्स के बाद पेट्रोल पंप तक पहुंचने वाले पेट्रोल और डीज़ल के दाम आपकी गाड़ी तक आते आते दोगुने हो जाते हैं।
दिल्ली में पेट्रोल का बेस प्राइस यानी पंप तक वो 40.45 पैसे प्रति लीटर में पहुंचता है। इसमें 19 रुपए 48 पैसे केंद्र सरकार की एक्साइज़ ड्यूटी के तौर पर जुड़ते हैं। इसके बाद 3 रूपये 64 पैसे पंप डीलर का कमीशन होता है, जो इसमें ऐड होता है। इसके साथ ही 17 रुपये 16 पैसे राज्य सरकार वैट के तौर पर वसूलती है। मतलब दिल्ली में जो पेट्रोल 40.45 पैसे में पंप तक आता है वो आपकी गाड़ी में 80 रुपए 73 पैसे में भरा जाता है। यही खेल डीज़ल के साथ भी होता है।
अब सवाल ये उठता है कि तेल के इस खेल से कौन मालामाल हो रहा है और हमें सस्ता तेल कैसे मिल सकता है? अर्थशास्त्र के जानकार बताते हैं कि पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों को कम करना है तो फौरन इसे जीएसटी के दायरे में लाना होगा। केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान भी दो दिन पहले कहा था कि अब ये जरूरी हो गया है कि पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के तहत लाया जाए। दोनों अभी जीएसटी में नहीं हैं जिससे देश को करीब 15,000 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है। यदि पेट्रोल, डीजल को जीएसटी के तहत लाया जाता है तो यह उपभोक्ताओं सहित सभी के हित में होगा।
जानकार मानते हैं कि जीएसटी के दायरे में लाने पर तेल के दाम में 50 से 55 रुपये प्रति लीटर तक कम हो सकते हैं। जीएसटी में मैक्सिमम 28 फीसदी तक टैक्स वसूला जाता है जबकि देश के कई राज्यों में वैट की दरें 35 फीसदी से ज्यादा हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर पेट्रोल-डीजल पर 28 फीसदी जीएसटी भी लगायी जाती है तो पेट्रोल की कीमत 20 से 25 रुपये प्रति लीटर कम हो सकती हैं। साफ है कि सरकार अगर खज़ाने का मोह थोड़ा कम कर दे तो पेट्रोल और डीजल के दाम भी कम हो सकते हैं। आपको सस्ता तेल मिल सकता है लेकिन एक्सपर्ट्स के मुताबिक पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स को जीएसटी के दायरे में लाने पर टैक्स कलेक्शन में लगभग 2 लाख करोड़ रुपए की कमी आ सकती है। यानी साफ है कि तेल में लगी आग के फिलहाल बुझने के आसार कम ही हैं।