मुंबई: बंबई उच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि भारत में हिंदू रीति से हुए विवाह और उसके पंजीकरण के मामले में विदेशी अदालतों में तलाक की प्रक्रिया नहीं चलाई जा सकती है। न्यायमूर्ति आर. डी. धानुका ने मंगलवार को एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला दिया, जिसने अलग रह रहे पति की तरफ से ब्रिटेन के मैनचेस्टर की पारिवारिक अदालत में शुरू की गई तलाक प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग की थी। उसका पति भी भारतीय है जो ब्रिटेन में रहता है।
दंपति की शादी दिसम्बर 2012 में हिंदू रीति-रिवाज से मुंबई में होने के बाद जनवरी 2013 में मीरा भयंदर नगर निगम में दर्ज हुई थी। शादी के तुरंत बाद उसका पति ब्रिटेन लौट गया और महिला वहां जुलाई 2013 में गई। महिला ने अपनी याचिका में दावा किया कि ब्रिटेन पहुंचने पर पति उसका उत्पीड़न करने लगा और पति ने घर छोड़ने तथा वापस भारत लौटने के लिए कहा। महिला नवम्बर 2013 में भारत लौटी और उसके बाद जून 2014 तक महिला और उसके परिवार ने दंपति के बीच सुलह कराने का प्रयास किया।
महिला को जून 2014 में एक कानूनी नोटिस मिला, जिसमें उसे सूचित किया गया कि उसके पति ने ब्रिटेन की पारवारिक अदालत में तलाक प्रक्रिया की शुरुआत की है। इसके बाद महिला ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और ब्रिटेन की अदालत में शुरू प्रक्रिया को इस आधार पर चुनौती दी कि चूंकि शादी हिंदू रीति-रिवाजों से हुई है इसलिए भारत की अदालत में हिंदू विवाह अधिनियम के मुताबिक उनके मामले की सुनवाई होनी चाहिए।
व्यक्ति के वकील ने याचिका का विरोध किया और कहा कि चूंकि वह व्यक्ति ब्रिटेन का निवासी है, इसलिए उस पर हिंदू विवाह कानून के प्रावधान लागू नहीं होते। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि दोनों पक्ष हिंदू हैं और उनकी शादी मीरा भयंदर नगर निगम में पंजीकृत हुई है। न्यायमूर्ति धानुका ने कहा कि इस मामले में शादी मुंबई में हुई और प्रतिवादी (व्यक्ति) जन्म से या किसी भी कारण से ब्रिटेन का निवासी है, इसका कोई महत्व नहीं है और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 19 के तहत अदालत के अधिकार क्षेत्र से वह अलग नहीं है।
अदालत ने कहा कि व्यक्ति ने ब्रिटेन की अदालत से इंग्लिश पर्सनल लॉ के तहत राहत की मांग की है जो व्यक्ति या महिला पर लागू नहीं होती क्योंकि उनकी शादी हिंदू विवाह अधिनियम के तहत हुई है।