जम्मू: छत्तीसगढ़ से आए मजदूर मिंटू सिंह हाथों में क्रिकेट का एक बल्ला थामे हुए हैं। वह निराश भाव से कहते हैं कि यह बल्ला कश्मीर से उनके लिए अंतिम उपहार है और वहां आजीविका के लिए वह फिर नहीं लौटेंगे। उनकी तरह कई अन्य मजदूर एवं उनके परिवार घाटी से भागकर अपने घरों को लौट रहे हैं। उनका कहना है कि पिछले कुछ दिनों में आतंकवादियों द्वारा दूसरे प्रदेशों से काम करने आए 11 मजदूरों और कामगारों की हत्या के बाद वे यहां ‘नरक’ की तरह महसूस कर रहे हैं। कई ने कहा कि इस कटु अनुभव के बाद वे फिर कभी कश्मीर नहीं आएंगे।
‘घाटी छोड़कर मैं काफी दुखी हूं’
बिहार के बेसनगांव के रहने वाले अजय कुमार दक्षिण कश्मीर के पुलवामा में एक ईंट-भट्ठा पर काम करते थे और वह अपनी पत्नी सरिता तथा 2 बच्चों के साथ वहां से भागकर जम्मू रेलवे स्टेशन पहुंचे हैं। उन्होंने रोते हुए कहा कि उनके नियोक्ता ने 27 हजार रुपये मजदूरी का बकाया भुगतान नहीं किया। कई अन्य की भी इसी तरह की शिकायत है और उन्होंने अधिकारियों से हस्तक्षेप करने की अपील की। पिछले एक दशक से घाटी में प्रति वर्ष 4-5 महीने काम करने वाले चिंटू सिंह ने कहा, ‘घाटी छोड़कर मैं काफी दुखी हूं। यह नरक हो गया है। हम यहां अपने परिवार के लिए कमाने आते हैं न कि सड़कों पर मारे जाने के लिए।’
‘यह कश्मीर से अंतिम उपहार है’
पुलवामा जिले में ईंट-भट्ठे पर काम करने वाले 20 मजदूरों के समूह के साथ भागे सिंह ने कहा, ‘मैं यह उपहार (क्रिकेट का बल्ला) कश्मीर से अपने दोस्त के बच्चे के लिए लाया। यह कश्मीर से अंतिम उपहार है। मैं फिर आजीविका के लिए कश्मीर नहीं आऊंगा। वहां आतंकवाद के भय से स्थिति काफी खराब है।’’ घाटी छोड़ने के बाद जम्मू और उधमपुर के रेलवे स्टेशन एवं बस स्टैंड पर हजारों की संख्या में हिंदू और कुछ मुस्लिम मजदूर पहुंचे हैं। कुछ मजदूरों ने बताया कि उनकी मजदूरी का भुगतान हो गया है वहीं कुछ ने कहा कि उनके नियोक्ताओं ने बिना बकाया मजदूरी का भुगतान किए उन्हें घाटी से जबरन भगा दिया।
‘हमारे मालिक ने हमें भगा दिया’
अजय कुमार ने बताया, ‘हमारे पास रुपये नहीं हैं। मैं दूसरे लोगों से पैसे लेकर अपनी पत्नी और बच्चों के साथ घाटी से भाग आया। हमारे मालिक ने बकाया मजदूरी का भुगतान किए बगैर हमें भगा दिया।’ उन्होंने मजदूरी के बिल की अपनी डायरी भी दिखाई। झारखंड की रहने वाली चुन्नी देवी अपने पति एवं बच्चों के साथ टाटा सूमो वाहन से कश्मीर से जम्मू रेलवे स्टेशन पहुंची। उन्होंने बताया, ‘हम धरती का स्वर्ग समझकर कश्मीर आए थे। लेकिन यह स्वर्ग नहीं है, यह नरक है। उन्होंने हमें नरक की तस्वीर दिखाई। उन्होंने निर्दोष हिंदू मजदूरों की हत्या कर दी। हम काम करने फिर कश्मीर नहीं आएंगे।’
‘प्रशासन से कोई सहयोग नहीं मिला’
मजदूरों ने शिकायत की कि उन्हें पुलिस और प्रशासन से कोई सहयोग नहीं मिला। बिहार के मोहम्मद जब्बार ने कहा, ‘हमारे नियोक्ता ने कहा कि हम (30 मजदूर) अपने घरों को लौट जाएं। उसने हमें पुलिस के पास जाने के लिए कहा। इतने दिनों तक हमें मारे जाने का भय सताता रहा। किसी ने हमारी सहायता नहीं की।’