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अंधविश्वास का अग्नियुद्ध: दिवाली के अगले दिन यहां बरसते हैं आग के गोले

मध्य प्रदेश के इंदौर के गौतमपुरा क्षेत्र में शुक्रवार को होने वाले हिंगोट युद्ध में दो दलों के बीच आमने-सामने से जमकर आग के गोले बरसेंगे। इस नजारे को हजारों लोग देखेंगे। इस परंपरागत 'युद्ध' के मद्देनजर पुलिस ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं।

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: October 20, 2017 16:20 IST
Hingot War- India TV Hindi
Hingot War

इंदौर: मध्य प्रदेश के इंदौर के गौतमपुरा क्षेत्र में शुक्रवार को होने वाले हिंगोट युद्ध में दो दलों के बीच आमने-सामने से जमकर आग के गोले बरसेंगे। इस नजारे को हजारों लोग देखेंगे। इस परंपरागत 'युद्ध' के मद्देनजर पुलिस ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं। साथ ही चिकित्सा सेवाओं का भी प्रबंध किया गया है। परंपरा के मुताबिक, दीपावली के अगले रोज शाम के समय गौतमपुरा का मैदान रणक्षेत्र में बदल जाता है, और आकाश में आग के गोले नजर आने लगते हैं। इसमें हर साल बड़ी संख्या में लोग घायल होते हैं, मगर परंपरा अब भी जारी है। दिवाली के अगले दिन की शाम सूर्यास्त होते ही हिंगोट युद्ध शुरू हो जाएगा।

इस 'युद्ध' की शुरुआत कैसे और कब हुई, इसका कहीं लेखा-जोखा नहीं मिलता है, मगर यह माना जाता है कि यह ताकत और कौशल को प्रदर्शित करने के लिए होता है। पुलिस के लिए इस युद्ध के दौरान सुरक्षा बड़ी चुनौती होती है क्योंकि यहां हजारों की संख्या में लोग दर्शक के तौर पर पहुंचते हैं, तो दूसरी ओर 'युद्ध' में हिस्सा लेने वाले कई प्रतिभागी शराब के नशे में होते हैं।

इंदौर के पुलिस उप महानिरीक्षक (DIG) हरिनारायण चारी मिश्रा ने IANS को बताया कि गौतमपुरा में होने वाले हिंगोट युद्ध के लिए पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम किए गए हैं। हेलमेट सहित अन्य सुरक्षा सामग्री के साथ 250 जवानों की तैनाती रहेगी, इसके अलावा एम्बुलेंस व स्वास्थ्य सेवा का भी इंतजाम रहेगा। यह परंपरा है, इसे रोका नहीं जा सकता। मगर, हादसा न हो, इसके लिए लोगों को समझाया गया है। 

हिंगोट एक तरह का फल होता है। हिंगोरिया नामक पेड़ पर लगने वाला यह फल ऊपर से नारियल जैसा कठोर होता है, आकार नींबू जैसा और अंदर से खोखला होता है। यह छह से आठ इंच लंबा होता है। इस फल को यहां के लोग लगभग एक माह पहले तोड़कर रख लेते हैं। फल के ऊपरी हिस्से को साफ करने के बाद भीतर के हिस्से को बाहर निकाल लेते हैं। फल के सूख जाने के बाद उस पर बड़ा सा छेद करके बारूद भरते हैं। साथ ही छेद को मिट्टी से बंद कर देते हैं। 

इस 'युद्ध' को वर्षों से देख रहे हीरालाल बताते हैं कि यह रोमांचकारी होता है। इसमें हिंगोट के एक ओर मिट्टी तो दूसरी ओर के छेद में बत्ती लगी होती है। उसके बाद इसे एक बांस की कमानी (पतली लकड़ी) से जोड़ा जाता है, ताकि निशाना सीधा दूसरे दल पर लगे। इस 'युद्ध' में एक ओर तुर्रा तो दूसरी ओर कलंगी नाम का दल होता है। इन दलों के सदस्य पूरी तैयारी से मौके पर पहुंचते हैं। उनकी कोशिश होती है कि वे जीत हासिल करें। इसमें बड़ी संख्या में लोगों का घायल होना आमबात है। 'युद्ध' के समाप्त होने पर दोनों दलों के लोग गले मिलकर अपने घरों को लौट जाते हैं।

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