श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला ने कभी नहीं सोचा होगा कि 1978 में उनके द्वारा लाए गए जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत एक दिन उनके बेटे फारूक अब्दुल्ला को ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा। इस कानून को राज्य में लकड़ी की तस्करी से निपटने के लिये लागू किया गया था।
लकड़ी की तस्करी को रोकने के लिये लागू किया गया था कानून
अधिकारियों ने सोमवार को कहा कि कठोर जन सुरक्षा कानून जम्मू-कश्मीर में लकड़ी की तस्करी को रोकने के लिये लागू किया गया था क्योंकि उस समय ऐसे अपराध में शामिल लोग मामूली हिरासत के बाद आसानी से छूट जाते थे। शेख अब्दुल्ला लकड़ी तस्करों के खिलाफ अधिनियम को एक निवारक के रूप में लाए थे जिसके तहत बिना किसी मुकदमे के दो साल तक जेल की सजा देने का प्रावधान किया गया।
1990 में लागू किया गया सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम
अधिकारियों ने कहा कि 1990 के दशक की शुरुआत में जब राज्य में उग्रवाद भड़का तो यह अधिनियम पुलिस और सुरक्षा बलों के काम आया। 1990 में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने राज्य में विवादास्पद सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम को लागू किया तो बड़े पैमाने पर पीएसए का इस्तेमाल पर लोगों को पकड़ने के लिये किया गया। पुलिस ने तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके और पांच बार के सांसद फारूक अब्दुल्ला को चार दशक पुराने इस कानून के तहत हिरासत में ले लिया।
2012 में किया गया कानून में संशोधन
पीएसए के तहत हिरासत की एक आधिकारिक समिति द्वारा समय-समय पर समीक्षा की जाती है और इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। 2012 में कानून में संशोधन कर कुछ कड़े प्रावधानों में छूट दी गई। संशोधन के बाद, बिना किसी मुकदमे के पहली बार अपराधी या व्यक्ति को हिरासत में रखने की अवधि दो साल से घटाकर छह महीने कर दी गई। उन्होंने कहा कि हालांकि, यदि आवश्यक हो, तो हिरासत को दो वर्ष तक बढ़ाने के लिए अधिनियम में प्रावधान रखा गया है।