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सोशल मीडिया से शुरू हुआ किसान आंदोलन इसी कारण हुआ नेतृत्वहीन

"हमने किसानों से अपील की थी कि वे सोशल मीडिया को अपना प्लेटफॉर्म बनाकर सरकार के साथ दुनिया भर के असंख्य लोगों तक अपनी बात पहुंचाएं। वे एक हाथ से ट्रैक्टर का स्टियरिंग पकड़ें और दूसरे हाथ में मोबाइल फोन थाम कर अपनी समस्याओं को लेकर ट्वीट करें।"

Bhasha
Published : June 10, 2017 13:45 IST
Farmers-Social-Media
Image Source : PTI Farmers-Social-Media

मंदसौर: मध्य प्रदेश के इतिहास में पहली बार सोशल मीडिया पर आह्वान के जरिए एक जून से शुरू हुआ किसानों का आंदोलन इसी माध्यम के कारण नेतृत्वहीन भी हो गया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े भारतीय किसान संघ :बीकेएस: समेत दो किसान संगठनों के छह दिन पहले आंदोलन वापस लेने की घोषणा के बावजूद सूबे में किसानों का विरोध प्रदर्शन अब तक जारी हैं। प्रदेश के किसान संगठन, आम किसान यूनियन के अध्यक्ष केदार सिरोही ने आज पीटीआई भाषा को बताया कि सूबे में किसानों का आंदोलन सोशल मीडिया पर प्रसारित संदेशों के जरिए एक जून से शुरू हुआ था। यह राज्य के इतिहास में पहली बार हुआ है जब किसान सोशल मीडिया के जरिए लामबंद होकर अपनी उपज का सही मूल्य दिए जाने, कर्ज माफी और अन्य मांगों को मनवाने के लिए खेत खलियान छोड़कर सड़कों पर उतरे। ये भी पढ़ें: कैसे होता है भारत में राष्ट्रपति चुनाव, किसका है पलड़ा भारी, पढ़िए...

उन्होंने कहा, हमने किसानों से अपील की थी कि वे सोशल मीडिया को अपना प्लेटफॉर्म बनाकर सरकार के साथ दुनिया भर के असंख्य लोगों तक अपनी बात पहुंचाएं। वे एक हाथ से ट्रैक्टर का स्टियरिंग पकड़ें और दूसरे हाथ में मोबाइल फोन थाम कर अपनी समस्याओं को लेकर ट्वीट करें। सिरोही ने बताया कि किसानों ने शुरूआत में अपने आंदोलन के तहत एक से 10 जून तक शहरी क्षेत्रों को अनाज, दूध और फल सब्जियों की आपूर्ति रोकने की घोषणा की थी लेकिन मंदसौर जिले में पुलिस कार्रवाई से अलग अलग घटनाओं में कम से कम छह किसानों की मौत को लेकर पैदा आक्रोश के कारण फिलहाल यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि यह आंदोलन कब तक खत्म होगा।

किसानों की मांगों को लेकर उज्जैन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात के बाद मिले आश्वासन के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े बीकेएस और एक अन्य संगठन, किसान सेना ने चार जून की रात आंदोलन वापस लेने की घोषणा की थी, लेकिन किसान संगठनों में फूट पड़ जाने के कारण इस घोषणा का आंशिक असर हुआ और सूबे के अलग अलग हिस्सों में किसान अब तक आंदोलन पर कायम हैं। सिरोही ने कहा, किसान आंदोलन का कोई नेता नहीं है। सैकड़ों गांवों के हजारों अनजान किसान ही इस आंदोलन की अगुवाई कर रहे हैं।

पुलिस अधिकारियों के मोटे अनुमान के मुताबिक, किसान आंदोलन के तहत प्रदेश भर में विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों में करीब 80 प्रतिशत युवक शामिल हैं। आम जनमानस में किसानों की इसी घिसीपिटी छवि से एकदम उलट जींस और टी शर्ट पहनने वाले नौजवानों के ये समूह आधिनुक मोबाइल फोनों से लैस हैं और अपने प्रदर्शनों के दौरान सेल्फी लेते, फोटो खींचते और वीडियो बनाते देखे जा सकते हैं। बहरहाल, पुलिस अधिकारियों का कहना है कि किसान आंदोलन में शामिल कुछ असामाजिक तत्वों ने सोशल मीडिया का आपराधिक दुरूपयोग करते हुए भड़काउ पोस्ट वायरल किए जिससे कानून एवं व्यवस्था की स्थिति बिगड़ी। किसानों के आंदोलन के दौरान अलग अलग हिंसक वारदातों के फोटो, वीडियो और टैक्स्ट संदेश सोशल मीडिया पर इस कदर वायरल हुए कि विरोध प्रदर्शनों की आग तेजी से फैल गई। नतीजतन प्रदेश सरकार ने पांच जून से मंदसौर, उज्जैन, रतलाम, नीमच और धार जिलों में आगामी आदेश तक इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगा दी है। यह अस्थायी रोक अब तक कायम है।

प्रदेश के पुलिस महानिरीक्षक :कानून एवं व्यवस्था: मकरंद दउस्कर ने कहा, किसान आंदोलन के शुरूआती दिनों में सोशल मीडिया पर भड़काउ पोस्ट, अफवाहों और अपुष्ट सूचनाओं की बाढ़ आ गई। यह सामग्री हिंसा की आग को हवा दे सकती थी। नतीजतन कानून एवं व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने के लिए हमने संबंधित जिलों में इंटरनेट सेवाओं पर अस्थायी रोक लगा दी है। उन्होंने कहा, हम संबंधित जिलों के प्रशासन से चर्चा कर हालात की समीक्षा करेंगे। उसके बाद ही इन स्थानों में इंटरनेट सेवाओं को बहाल करने पर उचित फैसला किया जाएगा। दउस्कर ने बताया कि किसान आंदोलन को लेकर सोशल मीडिया पर फैलाए गए भड़काउ संदेशों की जांच की जा रही है और इस सिलसिले में संबद्ध धाराओं के तहत आपराधिक मामले दर्ज किए जाएंगे।

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