नई दिल्ली: आंदोलन कर रहे किसान संगठनों ने गुरुवार को आरोप लगाया कि वार्ता के लिए सरकार का नया पत्र कुछ और नहीं, बल्कि किसानों के बारे में एक दुष्प्रचार है ताकि यह प्रदर्शित किया जा सके कि वे बातचीत को इच्छुक नहीं हैं। साथ ही, किसान संगठनों ने सरकार से वार्ता बहाल करने के लिए एजेंडे में 3 नए कृषि कानूनों को रद्द किए जाने को भी शामिल करने को कहा। किसान संगठनों ने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को विवादास्पद कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग से अलग नहीं किया जा सकता है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि MSP के लिए कानूनी गारंटी का मुद्दा उनके आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
दिल्ली के बॉर्डर पर डटे हैं 40 किसान संगठन
केंद्र के पत्र पर चर्चा करने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा के शुक्रवार को बैठक करने और इसका औपचारिक जवाब देने की संभावना है। दिल्ली के 3 प्रवेश स्थानों, सिंघू, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर पिछले 27 दिनों से इस मोर्चे के बैनर तले 40 किसान संगठन प्रदर्शन कर रहे हैं। इससे पहले गुरुवार को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय में संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल ने प्रदर्शनकारी किसान संगठनों के नेताओं को पत्र लिखकर उन्हें वार्ता के लिए फिर से आमंत्रित किया, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित किसी भी नई मांग को एजेंडे में शामिल करना ‘तार्किक’ नहीं होगा क्योंकि नए कृषि कानूनों से इसका कोई संबंध नहीं है।
‘सरकार हमारी मांगों को लेकर गंभीर नहीं’
सरकार का पत्र संयुक्त किसान मोर्चे के 23 दिसंबर के उस पत्र के जवाब में आया है, जिसमें कहा गया है कि यदि सरकार संशोधन संबंधी खारिज किए जा चुके बेकार के प्रस्तावों को दोहराने की जगह लिखित में कोई ठोस प्रस्ताव लाती है, तो किसान संगठन वार्ता के लिए तैयार हैं। मोर्चे के वरिष्ठ नेता शिवकुमार कक्का ने कहा, ‘सरकार हमारी मांगों को लेकर गंभीर नहीं है और वह रोज पत्र लिख रही है। नया पत्र कुछ और नहीं, बल्कि सरकार द्वारा हमारे खिलाफ किया जा रहा एक दुष्प्रचार है, ताकि यह प्रदर्शित किया जा सके कि हम बातचीत के इच्छुक नहीं हैं। सरकार को नए सिरे से वार्ता के लिए 3 कृषि कानूनों को रद्द किए जाने (की मांग) को एजेंडे में शामिल करना चाहिए।’
‘तो MSP पर हमारी फसल कौन खरीदेगा?’
कक्का ने कहा कि MSP की कानूनी गारंटी किसानों की मांग का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे सरकार द्वारा नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अग्रवाल ने 40 किसान संगठनों को लिखे 3 पन्नों के पत्र में कहा, ‘मैं आपसे फिर आग्रह करता हूं कि प्रदर्शन को समाप्त कराने के लिए सरकार सभी मुद्दों पर खुले मन से और अच्छे इरादे से चर्चा करती रही है तथा ऐसा करती रहेगी। कृपया (अगले दौर की वार्ता के लिए) तारीख और समय बताएं।’ सरकार और किसान संगठनों के बीच पिछले 5 दौर की वार्ता का अब तक कोई नतीजा नहीं निकला है। एक अन्य किसान नेता लखवीर सिंह ने कहा कि किसान संगठनों को सरकार द्वारा लिखे गए पत्र में कोई नया प्रस्ताव नहीं है। उन्होंने कहा, ‘वे (सरकार) कह सकते हैं कि ये कानून एमएसपी को प्रभावित नहीं करेंगे, लेकिन सच्चाई यह है कि यदि FCI (भारतीय खाद्य निगम) बाजार में नहीं होगा, तो MSP पर हमारी फसल कौन खरीदेगा?’
‘शुक्रवार को बैठक के बाद देंगे जवाब’
ऑल इंडिया किसान सभा (पंजाब) के उपाध्यक्ष सिंह ने दावा किया, ‘यहां तक कि आज की तारीख में, MSP के दायरे में जो 23 फसलें आती हैं और उनमें सिर्फ गेहूं, चावल तथा कभी-कभी कपास की खरीद MSP पर की जाती है।’ क्रांतिकारी किसान यूनियन के प्रेस सचिव अवतार सिंह मेहमा ने कहा कि केंद्र यह दावा जारी रख सकता है कि नए कानून MSP प्रणाली को प्रभावित नहीं करेंगे, लेकिन किसान MSP गारंटी अधिनियम चाहते हैं जो यह सुनिश्चित करेगा कि उनकी फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बिके। उन्होंने कहा, ‘संयुक्त किसान मोर्चा सरकार के पत्र पर चर्चा करने के लिए शुक्रवार को बैठक करेगा और फिर इसका जवाब देगा।’
‘MSP का कृषि कानूनों से लेना-देना नहीं’
अग्रवाल ने किसान यूनियनों के नेताओं से कहा कि वे उन अन्य मुद्दों का भी ब्योरा दें जिनपर वे चर्चा करना चाहते हैं। वार्ता मंत्री स्तर पर नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में होगी। अग्रवाल ने आग्रह किया कि किसान संगठन अपनी सुविधा के हिसाब से अगले दौर की वार्ता के लिए तारीख और समय बताएं। MSP के मुद्दे पर अग्रवाल ने कहा कि कृषि कानूनों का इससे कोई लेना-देना नहीं है और न ही इसका कृषि उत्पादों को तय दर पर खरीदने पर कोई असर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि यूनियनों को प्रत्येक चर्चा में यह बात कही जाती रही है और यह भी स्पष्ट किया गया है कि सरकार MSP पर लिखित आश्वासन देने को तैयार है। सितंबर में लागू किए गए नए कृषि कानूनों के खिलाफ हजारों किसान लगभग एक महीने से दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं। इनमें ज्यादातर किसान पंजाब से हैं। (भाषा)