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किसान आंदोलन: जानिए एमएसपी अनिवार्य करने से पैदा होने वाली मुश्किलें, किसानों की ये है मांग

किसान सरकार द्वारा तय एमएसपी पर फसलों की गारंटी की मांग कर रहे हैं। मगर, एमएसपी की गारंटी देने पर सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि सरकार को बजट का एक बड़ा हिस्सा एमएसपी पर ही खर्च होगा।

Reported by: IANS
Updated on: December 02, 2020 20:35 IST
Farmers Protest, Farmers demands, Minimum Support Price, Farm Bills 2020- India TV Hindi
Image Source : PTI Farmers Protest

नई दिल्ली। मोदी सरकार किसानों को उनकी फसलों की लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी देने का दावा करती है। उधर, किसान सरकार द्वारा तय एमएसपी पर फसलों की गारंटी की मांग कर रहे हैं। मगर, एमएसपी की गारंटी देने पर सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि सरकार को बजट का एक बड़ा हिस्सा एमएसपी पर ही खर्च होगा। विशेषज्ञ बताते हैं कि मौजूदा एमएसपी पर सारी फसलों की खरीद के लिए सरकार को करीब 17 लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी। 

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बता दें कि, केंद्र सरकार कृषि लागत और मूल्य आयोग की सिफारिश पर हर साल 22 फसलों के लिए एमएसपी तय करती है। इनमें से खरीफ सीजन की 14 फसलें हैं और रबी की 6 फसलें। इसके अलावा जूट और कोपरा के लिए भी एमएसपी तय की जाती है। वहीं, गन्ना के लिए फेयर एंड रिम्यूनरेटिव प्राइस यानी एफआरपी तय की जाती है। हालांकि एमएसपी पर सरकार सिर्फ धान और गेहूं की खरीद व्यापक पैमाने पर करती है, क्योंकि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के लिए इन दोनों अनाज की जरूरत होती है। हालांकि दलहनों और तिलहनों की खरीद भी प्रमुख उत्पादक राज्यों में होती है, लेकिन यह खरीद उसी सूरत में होती है, तब संबंधित राज्य फसल का बाजार भाव एमएसपी से कम होने पर इस बावत का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजता है। 

अधिकारी बताते हैं कि एमएसपी के निर्धारण का मतलब है यही है कि किसानों को फसलों का इतना भाव अवश्य मिलना चाहिए, इसलिए जब किसी दलहन व तिलहन फसल बाजार भाव एमएसपी से कम हो जाता है, तो वहां सरकारी एजेंसी किसानों से एमएसपी पर खरीद करती है। मगर, यह संभव नहीं है कि सरकार ही किसानों से सारी फसलें खरीदें इसलिए जब कुल उत्पादन का करीब एक तिहाई तक सरकार खरीदती है, तो स्वाभाविक है कि वहां बाजार भाव उपर आ जाता है, इसका किसानों को वाजिब दाम मिलने लगता है। कुछ राज्यों में सरकार मक्का व अन्य फसलें भी खरीदती है। एमएसपी पर खरीद अनिवार्य करने का मतलब निजी कारोबारियों भी इस पर खरीदने को बाध्य होंगे। 

कृषि अर्थशास्त्री विजय सरदाना कहते हैं कि अगर प्राइवेट सेक्टर के लिए एमएसपी पर खरीद अनिवार्य किया जाएगा, तो अंतर्राष्ट्रीय बाजार फसलों का भाव ज्यादा होने पर निजी कारोबारी आयात करना शुरू कर देगा। ऐसे में सरकार को सारी फसल किसानों से खरीदनी पड़ेगी, तो आज के रेट के हिसाब से इसके लिए सरकार को 17 लाख करोड़ रुपये खर्च करना होगा।

सरदाना ने कहा, एमएसपी पर सारी फसलों की खरीद का कुल खर्च आज के रेट के हिसाब से करीब 17 लाख करोड़ रुपये आएगा, जोकि सरकार के बजट का एक बड़ा हिस्सा होगा। इसके बाद एक लाख करोड़ रुपये फर्टिलाइजर सब्सिडी और एक लाख करोड़ रुपये फूड सब्सिडी यानी खाद्य अनुदान पर खर्च हो जाएगा। भारत सरकार ने वित्त वर्ष 2020-21 में 30,42,230 करोड़ रुपये के व्यय का प्रस्ताव रखा है, जोकि 2019-20 के संशोधित अनुमान से 12.7 फीसदी अधिक है। सरकार को अगर सारी फसलें खरीदनी पड़ेगी तो उसके भंडारण को लेकर भी मुश्किलें पैदा होंगी। 

सरदाना ने कहा कि एमएसपी अनिवार्य करने में एक फसल की क्वालिटी को लेकर भी मुश्किलें आएंगी क्योंकि यह तय करना होगा कि किस क्वालिटी का एमएसपी होगा और उससे कमजोर क्वालिटी का क्या रेट होगा और कौन खरीदेगा। उन्होंने कहा कि एमएसपी पर सारी फसलों की खरीद पर 17 लाख करोड़ रुपये खर्च करने के लिए सरकार को सारे क्षेत्र में तीन गुना कर बढ़ाना पड़ेगा, जिसके बाद न तो निवेश आएगा और न निर्यात होगा और न ही रोजगार पैदा होगा। इसलिए एमएसपी की अनिवार्यता अव्यावहारिक मांग है। 

प्रदर्शनकारी किसानों को नये कृषि कानून के बाद एमएसपी पर खरीद जारी रखने को लेकर आशंका है। इस पर खाद्य सचिव सुधांशु पांडेय का कहना है कि देश में जब तक सार्वजनिक विरतण प्रणाली रहेगी तब तक सरकार को एमएसपी पर अनाज खरीदना ही पड़ेगा, इसलिए यह आशंका निराधार है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा लाए गए नए कृषि कानून से एमएसपी पर खरीद में कोई फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि एमएसपी खाद्य सुरक्षा से जुड़ा है।

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