नई दिल्ली। नए कृषि कानूनों को लेकर सरकार और किसानों के बीच जारी गतिरोध थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। पिछली 7 मुलाकातों की तरह शुक्रवार को भी दिल्ली के विज्ञान भवन में 8वें दौर की वार्ता बेनतीजा रही। कृषि कानूनों को लेकर सरकार के साथ 8वें दौर की बैठक के बाद भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि तारीख पर तारीख चल रही है। बैठक में सभी किसान नेताओं ने एक आवाज़ में बिल रद्द करने की मांग की। हम चाहते हैं बिल वापस हो, सरकार चाहती है संशोधन हो। सरकार ने हमारी बात नहीं मानी तो हमने भी सरकार की बात नहीं मानी।
11 जनवरी को होगी किसान संगठनों की बैठक
शुक्रवार (8 जनवरी) की बैठक में सरकार ने किसानों को कमेटी बनाने का प्रस्ताव दिया। बैठक के बाद किसान नेता हन्नान मौला ने कहा कि कृषि कानून किसान विरोधी हैं। अंतिम सांस तक लड़ने को तैयार, अदालत जाना कोई विकल्प नहीं, किसान संगठन 11 जनवरी को आगे की कार्रवाई पर निर्णय करेंगे। हन्नान मौला ने कहा कि हम कानून वापसी के अलावा कुछ और नहीं चाहते। हम कोर्ट नहीं जाएंगे। कानून वापस होने तक हमारी लड़ाई जारी रहेगी। उन्होंने कहा कि 26 जनवरी को तय कार्यक्रम के मुताबिक हमारी परेड होगी।
क्यों हम एक दूसरे का समय बर्बाद करें...
भारतीय किसान यूनियन (एकता-उग्राहां) ने बैठक के बाद कहा कि सरकार हमारी ताकत की परीक्षा ले रही है, हम झुकेंगे नहीं, ऐसा लगता है कि हम लोहड़ी, बैसाखी उत्सव यहीं मानएंगे। यूनियन नेता जोगिन्दर सिंह ने कहा कि बैठक बेनतीजा रही, हम कानूनों को वापस लिए जाने से कम कुछ नहीं चाहते। एक अन्य किसान नेता ने बैठक में कहा, ‘‘आदर्श तरीका तो यही है कि केंद्र को कृषि के विषय पर हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए क्योंकि उच्चतम न्यायालय के विभिन्न आदेशों में कृषि को राज्य का विषय घोषित किया गया है। ऐसा लग रहा है कि आप (सरकार) मामले का समाधान नहीं चाहते हैं क्योंकि वार्ता कई दिनों से चल रही है। ऐसी सूरत में आप हमें स्पष्ट बता दीजिए। हम चले जाएंगे। क्यों हम एक दूसरे का समय बर्बाद करें।’’
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...जब बैठक में किसान नेताओं ने मौन धारण कर लिया
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) की कविता कुरुगंती ने बताया कि सरकार ने किसानों से कहा है कि वह इन कानूनों को वापस नहीं ले सकती और ना लेगी। कविता भी बैठक में शामिल थीं। लगभग एक घंटे की वार्ता के बाद किसान नेताओं ने बैठक के दौरान मौन धारण करना तय किया और इसके साथ ही उन्होंने नारे लिखे बैनर लहराना आरंभ कर दिया। इन बैनरों में लिखा था ‘‘जीतेंगे या मरेंगे’’। लिहाजा, तीनों मंत्री आपसी चर्चा के लिए हॉल से बाहर निकल आए। सरकार और प्रदर्शनकारी किसानों के 41 सदस्यीय प्रतिनिधियों के साथ आठवें दौर की वार्ता में सत्ता पक्ष की ओर से दावा किया गया कि विभिन्न राज्यों के किसानों के एक बड़े समूह ने इन कानूनों का स्वागत किया है। सरकार ने किसान नेताओं से कहा कि उन्हें पूरे देश का हित समझना चाहिए।
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15 जनवरी को फिर होगी वार्ता
हालांकि, सरकार और किसान संगठनों के नेताओं के बीच आगामी 15 जनवरी को दोपहर 12 बजे एक बार फिर बैठक होगी। बता दें कि, 30 दिसंबर को हुई मुलाकात में पराली जलाने और विद्युत सब्सिडी को लेकर दोनों पक्षों में सहमति बनी थी। समाचार एजेंसी पीटीआई के सूत्रों ने बताया कि बैठक में वार्ता ज्यादा नहीं हो सकी और अगली तारीख उच्चतम न्यायालय में इस मामले में 11 जनवरी को होने वाली सुनवाई को ध्यान में रखते हुए तय की गई है। सरकारी सूत्रों ने कहा कि उच्चतम न्यायालय किसान आंदोलन से जुड़े अन्य मुद्दों के अलावा तीनों कानूनों की वैधता पर भी विचार कर सकता है।
हम या तो मरेंगे या जीतेंगे
सरकार से नाराज दिख रहे किसान नेता बलवंत सिंह ने बैठक के दौरान ही एक पर्ची में लिखा 'हम या तो मरेंगे या जीतेंगे।' मीटिंग के दौरान किसानों ने साफ कर दिया है कि कानून वापस लिए जाने तक आंदोलन खत्म नहीं होगा। वहीं, बैठक के दौरान एक किसान नेता ने कहा 'हमारी घर वापसी तब ही होगी, जब आप लॉ वापसी करेंगे।' एक अन्य नेता ने किसानी से जुड़े मुद्दों को लेकर केंद्र सरकार की भूमिका पर सवाल उठाए।