नई दिल्ली: कर्नाटक की सरकार 18वीं सदी में मैसूर के शासक रहे टीपू सुल्तान की जयंती मनाने जा रही है। इसके विरोध में कई संगठन और सियासी नुमाइंदे आगे आ गए हैं। उनका दावा है कि टीपू सुल्तान भारतीय इतिहास का एक कट्टर और हिंदुओं का नरसंहार करने वाला शासक था। इसलिए उसकी जयंती नहीं मनाई जानी चाहिए। टीपू सुल्तान को सम्मान के विरोध में भाजपा ने भी झंडा बुलंद कर लिया है। टीपू सुल्तान यानी इतिहास का एक नायक लेकिन उसी टीपू सुल्तान के क्रूर, सांप्रदायिक और हिंदू विरोधी चेहरे को लेकर विवाद पैदा हो गया है। टीपू सुल्तान, जिसकी पहचान अब तक एक बहादुर शासक के तौर पर होती थी, उसी टीपू सुल्तान का एक और चेहरा भी था जिसे कोई पूरी तरह से नहीं जानता है। कहा जाता है कि टीपू सुल्तान जितना बहादुर था, उतना ही बर्बर भी था। कुछ लोग तो उसे औरंगजेब की तरह ही हिंदु विरोधी और कट्टर मुस्लिम राजा मानते हैं।
उसकी सल्तनत में सभी धर्मों और समुदायों के लोग खुश नहीं थे। खासकर हिंदुओं को टीपू सुल्तान के अत्याचार से उबरने में कई साल लग गए। इस सुल्तान की क्रूरता का आलम ये था कि आज भी लाखों लोग टीपू का नाम सुनते ही कांप जाते हैं और उसे देशभक्त हिंदुस्तानी राजा मानने को कतई तैयार नहीं होते।
टीपू सुल्तान के हिंदू विरोधी राजा होने के प्रमाण और उसकी क्रूरता की कहानियां इतिहास की किताबों में तो कम मिलती हैं लेकिन भारतीय अभिलेखागारों यानी इतिहास के सरकारी रिकॉर्ड्स के मुताबिक टीपू सुल्तान के बारे में ऐसी जानकारियां भी सामने आती हैं जो उसे एक अत्याचारी और कट्टर मुस्लिम राजा बताती हैं।
ब्रिटिश कमीशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि टीपू सुल्तान ने लाखों हिंदुओं को जबरन मुसलमान बनाया और हजारों हिंदुओं को गोमांस खाने पर मजबूर किया। उसने 700 आयंगार ब्राह्मणों को भी फांसी पर चढ़ा दिया था। कालीकट की जीत के बाद औरतों-बच्चों को फांसी पर लटकाया और हजारों हिंदुओं को हाथी के पांव तले कुचलवा दिया।
टीपू सुल्तान भारतीय इतिहास का एक ऐसा किरदार रहा है जिसे लेकर अलग-अलग दस्तावेजों में अलग-अलग बातें कही गई हैं। खुद इतिहासकारों की राय भी टीपू सुल्तान को लेकर चौंका देने वाली है। इतिहास में महान कहे जाने वाले टीपू सुल्तान के बारे में कुछ दस्तावेज़ ऐसे दावे करते हैं कि उन्हें जानने के बाद शायद इतिहास भी टीपू सुल्तान के बारे में फिर से सोचने पर मजबूर हो जाए।
ब्रिटिश लेखक और अंग्रेज सरकार में आला अफसर रहे विलियम लोगान ने अपनी किताब मालाबार मैनुअल में लिखा है कि कैसे टीपू सुल्तान ने अपने सैनिकों के साथ कालीकट में भयंकर तबाही मचाई थी। इस किताब में लिखा है कि
- पुरुषों और महिलाओं को सरेआम फांसी दी गई
- बच्चों को मांओं के गले में बांधकर लटका दिया गया
- शहर के मंदिरों और चर्चों को तोड़ने के आदेश दिए गए
- हिंदू महिलाओं की शादी जबरन मुस्लिमों से कराई गई
- बंदी बनाए गए हिंदुओं से इस्लाम अपनाने को कहा गया
- और, इस्लाम न अपनाने वालों को मार डालने का आदेश दिया गया
टीपू सुल्तान पर हिंदु विरोधी होने का कोई एक आरोप नहीं है। ऐसे ढेर सारे सबूत हैं जो उसे सांप्रदायिक और कट्टर मुस्लिम राजा की तरह पेश करते हैं। आज कई इतिहासकार इस बात को पुख्ता भी करते हैं। टीपू सुल्तान के अत्याचारों की वजह से उसे दक्षिण भारत का औरंगजेब भी कहा जाता है। मैसूर गजट में लिखा है कि टीपू ने दक्षिण भारत के 8 हजार मंदिरों को तोड़ डाला। टीपू सुल्तान ने कर्नाटक के मैसूर और कुर्ग में हजारों हिंदुओं की बर्बर तरीके से हत्या करा दी थी। कुर्ग जिले में तो टीपू सुल्तान ने बड़े पैमाने पर हिंदुओं का धर्मांतरण कराके उन्हें मुसलमान बना दिया था।
कई जगहों पर उस चिट्ठी का भी जिक्र मिलता है, जिसे टीपू सुल्तान ने अपने खास सहयोगी सईद अब्दुल दुलाई और अपने एक अधिकारी जमान खान के नाम लिखा है। उस पत्र में टीपू ने लिखा है कि पैगंबर मोहम्मद और अल्लाह के करम से कालीकट के सभी हिंदुओं को मुसलमान बना दिया है। केवल कोचीन स्टेट के सीमावर्ती इलाकों के कुछ लोगों का धर्म परिवर्तन अभी नहीं कराया जा सका है। मैं जल्द ही इसमें भी कामयाबी हासिल कर लूंगा।
कुरनूल के नवाब को लिखे ख़त में टीपू सुल्तान ने दावा किया था कि उसने कूर्ग के 40 हजार हिंदुओं को बंदी बनाकर उनसे इस्लाम धर्म स्वीकार करवाने के बाद उन्हें अपनी सेना में शामिल कर लिया है। टीपू सुल्तान का इतिहास बताता है कि गद्दी पर बैठते ही उसने मैसूर को मुस्लिम राज्य घोषित कर दिया था। इसके लिए उसने बड़े पैमाने पर धर्मांतरण कराया। जिन लोगों ने इसका विरोध किया, उनका कत्ल कर दिया गया।
जो इतिहास टीपू को शेरे-मैसूर बताते हुए नहीं शरमाता, उसी इतिहास की पोथियों में ही ये बात भी दर्ज है कि टीपू जब मैसूर का सुल्तान बना तो उसने मैसूर पैलेस की लाइब्रेरी में रखे दुर्लभ हिंदु ग्रंथों और पांडुलिपियों को जला डालने का आदेश दिया था। इतना ही नहीं, टीपू सुल्तान की तलवार पर लिखे संदेश से भी पता लगता है कि उसका इस्तेमाल काफिरों को मारने के लिए किया जाता था। टीपू ने अपनी तलवार पर जुमला खुदवाया था - "मेरे मालिक मेरी सहायता कर कि मैं संसार से काफिरों को खत्म कर दूं"
टीपू सुल्तान के दस्तावेजों से पता चलता है कि वो भारत में फिर से इस्लाम का राज कायम करना चाहता था। इसके लिए उसने कुछ विदेशी शासकों को भी पैगाम भेजा था। उसने अफगानिस्तान के बादशाह और तुर्की के ख़लीफ़ा को चिट्ठी लिख कर भारत पर हमले करने और यहां फिर से इस्लाम का शासन लागू करने की गुजारिश की थी। फ्रांसीसियों के साथ उसका दोस्ताना रवैया भी इसी ओर इशारा करता है।
वह फ्रांस के सम्राट के साथ मिलकर अंग्रेजों को खदेड़ना चाहता था और हिंदुस्तान में फ्रांसीसी हुकूमत की मदद लेकर फिर से मुगलिया शासन लागू करना चाहता था। लेकिन उसकी ये हसरत पूरी नहीं हुई। टीपू सुल्तान ने एक जगह कहा था कि अगर सारी दुनिया भी मुझे मिल जाए, तब भी मैं जो काम कर रहा हूं, उसको करता रहूंगा।
ऐतिहासिक दस्तावेज इस बात के गवाह हैं कि टीपू सुल्तान ने कर्नाटक के अलावा केरल और तमिलनाडु में भी काफी अत्याचार किया था। टीपू ने बड़ी संख्या में तमिल हिंदुओं को मुसलमान बनने के लिए मजबूर किया था। टीपू ने केरल के मालाबार इलाके में भी बड़े पैमाने पर हिंदुओं का धर्मांतरण करवाया था। इस बात की पुष्टि खुद टीपू सुल्तान के लिखे पत्रों से होती है। 19 जनवरी, 1790 को जमान खान को एक खत में टीपू ने लिखा है कि क्या आपको मालूम है कि हाल ही में मैंने मालाबार पर एक बड़ी जीत दर्ज की है और 4 लाख से ज्यादा हिंदुओं से इस्लाम धर्म मनवाया है?
टीपू के एक दरबारी और जीवनी लेखक मीर हुसैन किरमानी ने सुल्तान के हमलों के बारे में विस्तार से लिखा है। उससे पता चलता है कि टीपू ने महिलाओं और बच्चों को भी नहीं छोड़ा था। कई औरतों ने अपने धर्म की रक्षा के लिए अपने बच्चों के साथ नदियों में कूद कर जान दे दी थी। टीपू सुल्तान ने हिंदुओं पर ही अत्याचार नहीं किए, बल्कि ईसाइयों पर भी काफी जुल्म ढाया था। टीपू सुल्तान ने 1784 में मंगलोर के मशहूर चर्च को तहस-नहस कर दिया था और अंग्रेजों के लिए जासूसी के शक में 60 हजार ईसाइयों को बंदी बना लिया था।
बेशक, टीपू सुल्तान इतिहास का एक लोकप्रिय किरदार था और बहुत बहादुर भी था। आधुनिक युद्ध कला में उसके योगदान की भी इतिहासकारों ने काफी खुले दिल से तारीफ की है। इसके बावजूद हिंदुस्तान में बहुत सारे लोग टीपू को एक हिंदुविरोधी, मजहबी और कट्टर सुल्तान मानते हैं। ये दाग टीपू सुल्तान के इतिहास और पूरे वजूद पर हमेशा के लिए चस्पा है।