नई दिल्ली: प्रथम विश्व युद्ध की शताब्दी के अवसर पर भारतीय सैनिकों की वीरता को चिन्हित करने के लिए भारतीय सेना ने प्रदर्शनी लगाई है। इस प्रदर्शनी में प्रथम विश्व युद्ध के दौर के हथियार, परिधानों, संचार उपकरणों और दृश्यों का प्रदर्शित किया जा रहा है। इस प्रदर्शनी में विश्वास, विरासत और युद्ध में भाग लेने वाले 15 लाख भारतीय सैनिकों के बलिदान को विशिष्ट रूप से दर्शाया जाएगा।
दो सैन्य दलों के प्रमुख सेनाध्यक्ष और प्रदर्शनी के मुख्य संयोजक जनरल एन.पी. सिंह ने आईएएनएस से कहा कि प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय सैनिकों के योगदान को ठीक तरह से अभिलिखित नहीं किया गया है।
मानेकशॉ सम्मेलन केंद्र में सिंह ने कहा, "निर्दोष भारतीय सैनिकों ने सच्ची वीरता का प्रदर्शन किया था। वे सभी चुने हुए लोग थे।"
उन्होंने कहा, "इय युद्ध में 73,000 से अधिक भारतीय सैनिक मारे गए थे, जबकि 62,000 सैनिक अपंग और घायल हो गए थे। साथ ही यह कोई नहीं जानता कि कितने सैनिक वापस ही नहीं लौटे।"
इस युद्ध में भाग लेने वाले ज्यादातर सैनिक अशिक्षित, अप्रशिक्षित और अर्ध प्रशिक्षित थे।
10 मार्च को शुरू हुई यह प्रदर्शनी 25 मार्च तक चलेगी। इसमें युद्ध क्षेत्र का अभिन्यास और उन शहरों को दिखाया गया है जहां पर भारतीय सेना ने युद्ध लड़ा था।
इसमें फ्रांस, बेल्जियम, मैसिडोनिया, गैलीपोली (तुर्की), फिलिस्तीन, मिस्र, मेसोपोटामिया (इराक), पूर्वी अफ्रीका, चीन और सिंगापुर के युद्धक्षेत्र के मानचित्रों को स्थापित किया गया है।
इसमें विक्टोरिया क्रॉस जीतने वाले भारतीय उपमहाद्वीप के सभी 11 विजेताओं के बारे में विवरण है।
भारत के पहले विक्टोरिया क्रॉस विजेता एन.के. दरवान नेगीे बेटे बी.एस. नेगी ने कहा, "मेरे पिता को पांच दिसंबर 1914 को किंग जार्ज पांच ने युद्धक्षेत्र में ही सम्मानित किया था।"
अपने दादा कैप्टन सरदार शेख यासीन बहादुर की कहानी साझा करने के लिए इरफान शेख लंदन से भारत आए।
उन्होंने कहा, "मेरे दादाजी सेना से एक नौजवान के तौर पर जुड़े थे और वह जिंदा घर लौटे थे। हमारे पास घर में उनके पदक हैं। हमें उनकी उपलब्धियों पर गर्व है।"
सिंह ने कहा कि भारतीय सेना की विरासत से नई पीढ़ी को अवगत होना चाहिए और प्रेरित भी होना चाहिए।