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देहरादून: हिमालय में आपदारोधी आधारभूत संरचना पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आज यहां समापन हो गया जहां देश भर से आए वैज्ञानिकों ने क्षेत्र में एक बडा भूकंप आने की उच्च संभावना जतायी और राज्य सरकार से भूकंपरोधी आधारभूत संरचनाएं बनाने की दिशा में काम करने को कहा।
परिचर्चा में भाग ले रहे वैज्ञानिक उत्तराखंड में विनाशकारी भूकंप आने की प्रबल संभावना की बात पर एकमत थे। इस हिमालयी क्षेत्र में पिछली बार बड़ा भूकंप करीब 600 वर्ष पहले आया था। अपने संबोधन में बेंगलुरू स्थित भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान के प्रोफेसर विनोद के गौड ने सबसे निचले स्तर पर जागरूकता फैलाने की जरूरत पर जोर दिया ताकि लोग भूकंप रोधी निर्माण तकनीक को अपनायें।
उन्होंने कहा कि इस संबंध में हैंडबुक प्रकाशित कर उन्हें जनता को उपलब्ध कराया जा सकता है जिससे एक आम आदमी भी भूकंप रोधी निर्माण की जरूरत की मूल बात को समझ सके। उत्त्तराखंड के एक बडे भूकंप की उच्च संभावना वाले केंद्रीय भूकंपीय दरार में स्थित होने की बात कहते हुए गौड ने कहा कि आपदा न्यूनीकरण एजेंसियों और राज्य सरकार के लिये यह जरूरी है कि वे ऐसी कोई आपदा आने से पहले ही उससे निपटने के लिये एहतियाती कदम उठायें।
इस कार्यशाला का उद्देश्य आपदा रोधी निर्माण विषय पर वैज्ञानिकों, विभिन्न विभागों के शोध अधिकारियों और पेशेवरों को एक मंच उपलब्ध कराना था जिससे इससे संबंधित सूचनाओं, जानकारी और सुझावों को साझा किया जा सके।
आईआईटी रुड़की के प्रोफेसर एमएल शर्मा ने उत्त्तराखंड में लगाये गये भूकंप अर्ली वार्निंग सिस्टम की स्थिति के बारे में अवगत कराया और इस नेटवर्क के विस्तार की जरूरत बतायी। वैज्ञानिकों ने पहाडों की ढलान पर बनने वाली संरचनाओं की डिजायन में अतिरिक्त सावधानी बरते जाने की जरूरत बताते हुए गलत डिजायन या निर्माण के तरीकों के दुष्परिणामों के बारे में भी बताया। उन्होंने पर्वतीय क्षेत्रों में इमारतों के निर्माण के लिए विशेष दिशा निर्देश की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
समापन सत्र में यह भी संकल्प लिया गया कि राज्य आपदा रोधी निर्माण की दिशा में अपनी पूरी क्षमता से काम करेगा। इस संबंध में प्रदेश तथा अन्य स्थानों के वैज्ञानिक और अकादमिक संस्थान राज्य सरकार के इस प्रयास में उसके साथ समन्वय और सहयोग करेंगे।