नई दिल्ली: भारत और चीन के बीच डोकलाम सीमा पर विवाद को एक महीने से ज्यादा हो गया है। एक तरफ जहां चीन की तरफ से युद्ध की धमकी दी जा रही है, वहीं भारतीय सेना चीनी सेना के खिलाफ 'नो वॉर, नो पीस' की स्थिति में है। वहीं चीनी सेना ने भारत को इतिहास नहीं भूलने की सलाह दे दिया और ऐसा करते वक्त लगता है कि पीएलए भी कुछ भूल गया है। यह सच है कि 1962 में पीएलए ने भारतीय सेना को बुरी तरह से हरा दिया था। लेकिन 1967 में ठीक इसी इलाके में सीमा की झड़पों में, और 1986-87 में, भारतीय सेना ने शक्ति-प्रदर्शन में पीएलओ को इस तरह हिला दिया था कि उसने तिब्बत मिलिट्री डिस्ट्रिक्ट कमांडर और चेंगदू के मिलिट्री रीजन प्रमुख को बर्खास्त ही कर दिया। ये भी पढ़ें: 12000 करोड़ की रेमंड के मालिक विजयपत सिंघानिया पाई-पाई को मोहताज
गौरतलब है कि 1962 के अलावा भी भारत-चीन की सेनाओं में मुठभेड़ की नौबत कई बार आई है। ऐसे ही 1987 में अरुणाचल प्रदेश के सुमदोरोंग चू इलाके में मुठभेड़ की स्थिति बनी थी। ये आख़िरी मौका था, जब बड़ी तादाद में करीब 200 भारतीय सैनिकों को वहां तैनात किया गया था। चीन की तरफ़ से भी टुकड़ियां आई थीं और आमना-सामना हुआ था। सुमदोरोंग चू विवाद की शुरुआत साल 1980 में हुई थी, जब इंदिरा गांधी सत्ता में वापस आई थी। साल 1982-83 में इंदिरा गांधी ने तत्कालीन जनरल के।वी कृष्णा राव का प्लान अप्रूव किया, जिसमें भारत-चीन बॉर्डर (एलएसी) में ज्यादा से ज्यादा तैनाती की बात थी। दरअसल इंदिरा गांधी चीन से युद्ध की स्थिति में अरुणांचल प्रदेश के तवांग को हर हाल में बचाना चाहती थी।
ऐसे में भारतीय सेना ने ऑपरेशन फाल्कन तैयार किया, जिसका मकसद था सेना को उसकी शांतिकालीन पोजीशन से बहुत तेजी से सरहद पर पहुंचाना। तवांग से आगे कोई सड़क नहीं थी, इसलिए जनरल सुंदरजी ने जेमीथांग नाम की जगह पर एक ब्रिगेड को एयरलैंड कराने के लिए इंडियन एयरफोर्स को रूस से मिले हैवी लिफ्ट MI-26 हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल करने का फैसला किया। यह जगह भारत चीन सीमा के दक्षिण में है, लेकिन तवांग से सड़क मार्ग से 90 किलोमीटर दूर है।
एयरलिफ्ट वर्ष 1986 में 18 और 20 अक्टूबर के दौरान हुआ। यह तारीख इतिहास में इसलिए दर्ज है क्योंकि इसी दिन ठीक इसी सेक्टर में 24 साल पहले भारत-चीन युद्ध की शुरुआत हुई थी। भारतीय सेना ने हाथुंगला पहाड़ी पर पोजीशन संभाल ली, जहां से सुमदोरांग चू के साथ ही तीन अन्य पहाड़ी इलाकों पर नजर रखी जा सकती थी। इसके साथ ही मिलिट्री ने लद्दाख के डेमचॉक और उत्तरी सिक्किम में T-72 टैंक उतारे। इस ऑपरेशन में भारत ने एक जानकारी के अनुसार 7 लाख सैनिकों की तैनाती की थी। फलत: लद्दाख से लेकर सिक्किम तक चीनियों ने घुटने टेक दिए। इस ऑपरेशन फाल्कन ने चीन को उसकी औकात दिखा दी। भारत ने शीघ्र ही इस मौके का लाभ उठाकर अरुणाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया।
यह संकट मई 1987 तक बना रहा, जब विदेश मंत्री नारायण दत्त तिवारी प्योंगयोंग जाते हुए बीजिंग में रुके। चीनी विदेश मंत्री से उनकी वार्ता के बाद अग्रिम मोर्चों पर गर्मागर्मी शांत होना शुरू हुई।