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बुलेट तो चलाएंगे, ट्रेनों की दुर्घटनाएं कब रुकेंगी?

लंबी दूरी की गाड़ियों में हालांकि आधुनिक टक्कररोधी लिंक हाफमेन बुश (एलएचबी) कोच लगाने के निर्देश हैं, ताकि दुर्घटना के दौरान सीबीसी कपलिंग से पलटने और एक-दूसरे पर चढ़ने की गुंजाइश न रहे। लेकिन इस निर्देश का पालन हो नहीं रहा है। यह विडंबना नहीं तो क्य

Reported by: IANS
Updated : August 22, 2017 11:14 IST
train-accident
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नई दिल्ली: अगले महीने हमारे प्रधानमंत्री और जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे मिलकर मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन की आधारशिला रखेंगे, जिसकी रफ्तार 350 किलोमीटर प्रतिघंटा होगी। रेलमंत्री सुरेश प्रभु कह चुके हैं कि वर्ष 2023 तक अहमदाबाद-मुंबई के बीच यह दौड़ने लगेगी। लेकिन सामान्य ट्रेनों की दुर्घटनाएं कब रुकेंगी, इस पर कोई कुछ नहीं बोलता। विपक्ष है कि 27 रेल हादसे, 259 यात्रियों की मौत, 899 घायलों का आंकड़ा गिनाकर, मोदी सरकार को आईना दिखाना चाहता है। लेकिन सच्चाई यही है कि तेज रफ्तार वाले दौर में आज भी लंबी दूरी की महत्वपूर्ण एक्सप्रेस ट्रेनों में पुरानी तकनीक वाले कन्वेंशनल कोच लगे हैं। ये भी पढ़ें: ट्रिपल तलाक़ पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फ़ैसला, ट्रिपल तलाक़ असंवैधानिक

लंबी दूरी की गाड़ियों में हालांकि आधुनिक टक्कररोधी लिंक हाफमेन बुश (एलएचबी) कोच लगाने के निर्देश हैं, ताकि दुर्घटना के दौरान सीबीसी कपलिंग से पलटने और एक-दूसरे पर चढ़ने की गुंजाइश न रहे। लेकिन इस निर्देश का पालन हो नहीं रहा है। यह विडंबना नहीं तो क्या है कि दौड़ रही ट्रेनों में पुराने परंपरागत कोच बदलने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं है और बुलेट ट्रेन का सपना देख रहे हैं!

उत्कल एक्सप्रेस हादसे में बेइंतहा लापरवाही हुई है। मुजफ्फरनगर के खतौली में जहां से ट्रेन गुजरी, वहां ट्रैक पर काम चल रहा था। पटरी को दुरुस्त करने के लिए आधे घंटे यातायात रोकने ब्लॉक भी मांगा गया था। साथ ही मरम्मत बजाय ट्रेंड कर्मचारियों के सहायकों से कराने का एक वायरल ऑडियो से सामने आया, जिसने सच्चाई की कलई खोल दी, वरना इसे भी आतंकी गतिविधि से जोड़ने की कोशिशें हुई थीं, ताकि लापरवाही की बात दब जाए।

इधर, चार अधिकारियों के निलंबन तथा एक के तबादले सहित रेलवे बोर्ड के सचिव स्तर के एक अधिकारी और तीन वरिष्ठ अधिकारियों को अवकाश पर भेजना ही लापरवाही के सच को बयां करता है। यकीनन तेज रफ्तार ट्रेन नासाज ट्रैक से गुजरी और 14 बोगियां खिलौने जैसे उछलकर यहां-वहां जा गिरीं। एक बोगी तो एक मकान में जा घुसी।

गनीमत थी कि हादसा आबादी वाले इलाके में हुआ और प्रशासन का इंतजार किए बगैर फरिश्ते बने स्थानीयों ने बिना समय गंवाए राहत का काम शुरू कर दिया, वरना जान गंवाने वालों का आंकड़ा 25 से कहीं ज्यादा पहुंच सकता था। टेढ़ी-मेढ़ी बोगियों में फंसे लोगों की जान बचाने वाले स्थानीय लोगों में ज्यादातर मुस्लिम थे, जिन्होंने इंसानों को बचाया। इंसान तो महज इंसान होते हैं, जिन्हें आपस में लड़ाकर, दंगों की आग में झोंककर राजनेता अपनी सियासी रोटियां सेंकते हैं।

लेकिन रेल हादसों पर एक बड़ा सच यह भी है कि जनवरी, 2016 से जुलाई, 2017 के बीच रेल पटरियों से छेड़छाड़ के 28 मामले उप्र में ही हुए। इनमें 25 की प्राथमिकी दर्ज है, लेकिन हैरानी है कि अलीगढ़ की घटना के अलावा पुलिस और जांच एजेंसियों के हाथ अब तक खाली हैं। जबकि इसी वर्ष 7 मार्च को मध्यप्रदेश में भोपाल-उज्जैन पैसेंजर में जबरी के पास बम फटा था, जिसमें जिसमें 10 लोग घायल हुए थे।

तेलंगाना पुलिस के अहम इनपुट से मध्यप्रदेश पुलिस ने पिपरिया में तीन युवकों को गिरफ्तार किया था। इसी इनपुट से लखनऊ में एटीएस ने 11 घण्टे के ऑपरेशन के बाद सैफुल्ला को मारा था, जबकि कानपुर से फैसल खां, इमरान और इटावा से फकरे आलम नामक संदिग्धों को पकड़ा। इसी तरह 20 नवंबर, 2016 को कानपुर के पुखरायां में इंदौर-राजेंद्र नगर एक्सप्रेस के पटरी से उतर जाने से 150 लोगों की मौत और लगभग 250 से ज्यादा घायलों की घटना को भी बतौर साजिश देखी गई।

साजिश, लापरवाही या दुर्घटना..जो भी हो, इसी वर्ष 21 जनवरी को आंध्रप्रदेश में कुनेरू के पास जगदलपुर-भुवनेश्वर हीराखंड एक्सप्रेस भी पटरी से उतर गई थी, जिसमें 40 लोगों की मौत तथा 70 लोग घायल हुए थे। वहीं 28 दिसंबर को दूसरी बार कानपुर के पास अजमेर-सियालदाह एक्सप्रेस के 15 डिब्बे पटरी से उतर गए, जिसमें 40 लोग घायल हुए थे। 6 मई, 2016 को चेन्नई सेंट्रल-तिरुवनंतपुरम सेंट्रल सुपरफास्ट दूसरी ट्रेन से टकरा गई थी, जिसमें 7 लोग जख्मी हो गए थे। जबकि मई 2014 से अब तक के बड़े हादसों में गोरखधाम एक्सप्रेस 26 मई 2014 को उप्र में संत कबीरनगर जिले के चुरेन स्टेशन के पास एक मालगाड़ी से जा टकराई थी, जिसमें 22 लोगों की मौत हुई थी।

20 मार्च, 2015 को देहरादून से वाराणसी जा रही जनता एक्सप्रेस रायबरेली के बछवारावां स्टेशन के पास पटरी से उतर गई थी, जिसमें 34 लोगों की दर्दनाक मौत हुई थी। जबकि 25 मई 2015 को उप्र में ही कौशांबी के सिराथू रेलवे स्टेशन के करीब मूरी एक्सप्रेस दुर्घटनाग्रस्त हुई थी, जिसमें 25 लोगों की मृत्यु हुई थी। 5 मई 2016 को महाराष्ट्र के रायगढ़ में कोंकण रेल खंड पर दिवा-सावंतवाडी ट्रेन के इंजन और 4 डिब्बों के पटरी से उतर जाने से कम से कम 19 यात्रियों की मौत हुई और 100 ज्यादा लोग घायल हुए।

देश में एक ही जगह पर 10 मिनट के भीतर दो ट्रेनों के दुर्घटनाग्रस्त होने का पहला मामला 5 अगस्त, 2015 को मप्र के हरदा में हुआ, जहां कामायनी और जनता एक्सप्रेस माचक नदी पर रेल पटरी धंस गई, जिससे फिसल कर दोनों ट्रेन दुर्घटना ग्रस्त हुईं और 31 लोगों की जान चली गई। बेशक हम बेहतर तकनीकी दौर में हैं, मंगल तक पहुंच है। फिर मानवीय चूक या सिस्टम का खामियाजा बेगुनाह यात्री क्यों भुगते?

क्या सेंसर, लेजर, इंफ्रारेड, नाइट विजन कैमरे, 4जी, रेल टेल बेहतर कनेक्टिवटी संयोजन से रेल ट्रैक की रक्षा-सुरक्षा संभव नहीं? क्या यात्रियों से रोजाना करोड़ों रुपये कैंसिलेशन के जरिए सॉफ्टवेयर से कमाने वाला रेलवे, ट्रैक की ट्रैकिंग के लिए ऐसी तकनीकी नहीं ईजाद करा सकता? क्या जरूरी नहीं कि इंजन और ट्रैक के बीच सुरक्षित, संवेदनशील मजबूत सामंजस्य प्रणाली विकसित हो? काश! बुलेट से पहले मौजूदा ट्रेनें सुरक्षित हो पातीं।

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