सागर (मप्र): मध्यप्रदेश में सागर के डॉ हरिसिंह गौर केन्द्रीय विश्व विश्वविद्यालय के जीवाश्म विज्ञान के प्रोफेसर ने नर्मदा घाटी में मंडला के पास क्रिटेशियस काल (65 हजार वर्ष पहले) से संबंधित शाकाहारी डायनासोर के सात जीवाश्म अंडे पाये जाने का दावा किया है। विश्वविद्यालय के भूगर्भशास्त्र विभाग के उच्च शिक्षा केन्द्र के जीवाश्म विज्ञानी प्रोफेसर पी के कठल ने बृहस्पतिवार को अपने हालिया अध्ययन के आधार पर दावा किया है कि उन्हें और उनके सहयोगी शिक्षक प्रशांत श्रीवास्तव को जबलपुर से करीब 90 किमी दूर नर्मदा घाटी में मंडला के पास मोहनटोला गांव में सात अंडों के रूप मे मिले जो जीवाश्म मिले हैं, वो क्रिटेशियस काल के हैं।
कठल के मुताबिक मंडला के पास एक खेत में पानी की टंकी की खुदाई के दौरान ये अंडे रूपी जीवाश्म एक बालक को मिले। बालक के पास अजीब से गोलाकार वस्तु होने की खबर जब शिक्षक प्रशांत को लगी। उन्होंने बालक के साथ जाकर मौके का निरीक्षण किया जहां उन्हें डायनोसोर का घोंसला नजर आया। वहां छह और जीवाश्म मिले।
इन जीवाश्मों के अध्ययन के लिए सागर से प्रोफेसर प्रदीप कठल को बुलाया गया। कठल ने बताया कि 30 अक्टूबर को वह मंडला गए । इसके बाद उन्होंने उन अंडाकार जीवाश्म अवशेषों का अध्ययन कर उनके डायनासोर के अंडे होने की पुष्टि की। उन्होंने बताया कि इस महत्वपूर्ण खोज से समाप्त हो चुकी डायनासोर प्रजाति के अध्ययन मे काफी मदद मिलने की उम्मीद है।
उन्होंने बताया कि अंडों की परिधि 40 सेमी है जबकि वजन 2.6 किलो है। यह अंडे डायनासोर की किसी नई प्रजाति के प्रतीत हो रहे हैं। जिसके बारे में भारत में अभी कोई जानकारी नहीं है। प्रोफेसर ने पीटीआई भाषा को बताया कि स्केन इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोप से अंडाकार जीवाश्म के अध्ययन से पता चला है कि ये जीवाश्म अपर क्रिटेशियस काल के हैं जब डायनासोर इस क्षेत्र मे विचरण करते थे व यहां अपने घर बनाते थे।
डायनासोर इस क्षेत्र मे कहां से व कैसे आए से जुड़े सवाल पर प्रोफेसर कठल ने बताया कि ऐसा लगता है ये डायनासोर किसी दूर क्षेत्र से विचरण करते हुए यहां आए और नर्मदा नदी के किनारे वैज्ञानिक भाषा में “लेमेटा बैड” के रूप मे जाने जाने वाले रेतीली क्षेत्र मे उन्होंने अंडे देना शुरू किए। उन्होंने बताया कि नए डायनासोर के नए जीवाश्म के अध्ययन से यह पता करने मे मदद मिलेगी की वो कैसे और किन क्षेत्र मे गए साथ ही उनका अंत होने के बारे में भी जानकारी मिलेगी।
उन्होंने बताया मिले जीवाश्म डायनासोर की “बीकड” या “सरापोड प्रजाति” के हो सकते हैं। भारत मे डायनासोर की खोज के सिलसिले में कठल ने बताया कि यह जानना उल्लेखनीय है कि भारत मे सबसे पहले डायनासोर के जीवाश्म सन 1828 में अंग्रेज अफसर कर्नल स्लीमन ने जबलपुर के छावनी क्षेत्र मे ही खोजे थे। बाद मे इसी क्षेत्र में कुछ और जीवाश्म अवशेष भी मिले। इसके अलावा धार के कुक्षी क्षेत्र से भी अंडा रूपी जीवश्म मिले थे।
कठल ने इस खोज को वैश्विक महत्व का बताते हुए कहा कि इस दिशा में अध्ययन से केवल मध्यप्रदेश के भूगर्भीय इतिहास के बारे नई जानकारी तो सामने आएंगी ही साथ ही दुनिया भर के जीवश्म वैज्ञानिकों का ध्यान भी भारत की इस खोज के बारे में जाएगा। उन्होंने बताया कि दुनिया के अन्य विषय विशेषज्ञ भी इस अवधारणा को मानते हैं कि कई जीवों का, जिनमें डायनासोर भी शामिल हैं, का जन्म भारतीय क्षेत्र मे हुआ और यहीं से वो दुनिया के अन्य क्षेत्रों में गए।