'दिल ही तो है' पत्रकार और लेखक शकील अख्तर का पहला काव्य संग्रह है जिसे स्टोरी मिरर डॉट कॉम ने प्रकाशित किया है। इस संग्रह में 100 से ज़्यादा भावपूर्ण कविताएं और गीत हैं। प्रेरक मशहूर शायर डॉ.राहत इंदौरी हैं। गीत चतुर्वेदी और डॉ.प्रकाश दीक्षित जैसे बड़े चर्चित साहित्यकारों और डॉ.आभा मिश्रा जैसे समीक्षकों ने उनकी रचनाओं की प्रशंसा की है। उनकी भाषा,शिल्प और विषय वस्तु को बेहद प्रासंगिक और देश और समाज के लिए बेहद ज़रूरी करार दिया है। इस कविता संग्रह में प्रेम, अध्यात्म, देशभक्ति समेत प्रासंगिक रचनाओं के विविध रंग हैं। इस संग्रह की रचनाएं विषय वस्तु के मुताबिक आठ खंड में विभाजित हैं जहां हरेक खंड का विषयवस्तु भिन्न है। यह जीवन के विभिन्न रंगों को अभिव्यक्त करता है। जीवन के उतार-चढ़ाव और संघर्ष की असहनीय पीड़ा की अनुभूति को प्रत्यक्ष तौर पर, तो कहीं बिम्बों के माध्यम से अभिव्यक्त कर पाने में शकील सफल रहे हैं। असाधारण बातों को भी साधारण ढंग से कहने का शकील का अंदाज निराला है। इसकी बानगी ये चार पंक्तियां हैं।
जिंदा हूं मैं ये सुबूत रखना
दिल की किताब में महफूज रखना
फिजां में तेरी हूं मैं यहां वहां
मेरे निशां के बाकी वजूद रखना
शकील ने अपनी कविताओं में जहां प्रेम, अध्यात्म, देशभक्ति, आतंकवाद, बेरोजगारी और राजनीतिक मुद्दों को बेहद संवेदनशीलता के साथ अभिव्यक्त किया है वहीं आम आदमी की पीड़ा को बड़ी सहजता के साथ शब्द देने में वे सफल रहे हैं। वहीं कविता उनके रूह के कितने निकट है, इसे भी उन्होंने व्यक्त किया है।
शमा फिर रूह की जलाता हूं मैं
गले लगा मुझको ऐ कविता
आ तेरे पास आता हूं मैं।
ये पंक्तियां जहां कविता के प्रति उनके समर्पण को व्यक्त करती हैं वहीं रूह और कविता के संबंध को स्थापित करने का प्रयास भी करती है। कवि जीवन के संघर्ष में अपने अस्तित्व को बचाए और बनाए रखने की पूरी कोशिश करता है। इस संघर्ष के सफर में जब तन्हाईयों से वह घिर जाता है तो हृदय से स्वत: ये उद्गार फूट पड़ते हैं।
हजार नग्में साथ लिए
जिंदगी हजार जीता हूं
बिखरा हूं यहां-वहां
खंडहर-खंडहर बीता हूं
प्रेम के अहसास को गहरे अर्थों में उतार पाना सहज और सरल नहीं है। शकील के पास गहरी अनुभूतियां है और शब्दों का सरल प्रवाह जिससे वे अपनी कविता को व्यापक अर्थ तक ले जाते हैं।
जिंदगी भर को संवर जाएं
ये लम्हें यहीं पर ठहर जाएं
कोई ना हो दरमियां
प्यार ही प्यार से भर जाएं
पुस्तक के तीसरे खंड 'दिल की ब्रेकिंग न्यूज' की पहली कविता 'बड़ी बेहिस बड़ी बेदिल दिल्ली' में देश की राजधानी के मौजूदा हालात को बयान करने की कोशिश की है। वहीं एक अन्य कविता 'जिहाद से इस्लाम जिंदा नहीं होता' में एक बड़ा संदेश उन्होंने दिया है। वे कहते हैं..
दीन को पाना है तो दुखियों की सुनो
बिगाड़ के फिजां रब का पता नहीं मिलता
जिहाद से इस्लाम जिंदा नहीं होता
'है क्या ये मुसलमान!', 'अकेला कहां है आयलान'?, 'मैं शब्द नहीं दिमाग पढ़ता हूं', 'युद्ध का मैदान' ऐसी कविताएं हैं जो हृदय के स्पंदन को उस मोड़ तक ले जाती हैं जहां मानवता एक नए युगधर्म के लिए संघर्षरत है। इनकी कविताएं दुनिया की सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं के बीच एक जवाब तलाशती हैं। कविता 'मोदी की आंधी' में एक राजनीतिक बदलाव का समेकित स्वर ध्वनित होता है जो जनमानस की तत्कालीन भावना को प्रतिबिम्बित करती है।
इस काव्य संग्रह की कविताओं में उनकी लंबी संघर्ष यात्रा का अहम योगदान है। मध्यप्रदेश के इंदौर,ग्वालियर,भोपाल के समाचार पत्रों में सेवाएं देने वाले शकील 2006 से इंडिया टीवी में सेवारत हैं। ख़बरों की श्रमसाध्य,जटिल और नीरस दुनिया के बीच रहते हुए भी अपनी संवेदनाओं को बचाकर उन्हें गीत और कविताओं में ढालने का काम कर रहे हैं। उनकी रंगमंच में ख़ासी दिलचस्पी है, अभिनय से जुड़े हैं। इंडियाटीवी की फिल्म- '13 दिसंबर' (https://www.youtube.com/watch?v=xgcv3iNLimo) में भी काम कर चुके है। तीन नाटक लिख चुके हैं। 'ब्लू व्हेल: एक खतरनाक खेल'नाटक का दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में मंचन हो चुका है।
शकील जीवन के हर पहलू को अपनी कविता में ढालते चले गए, इसी का नतीजा है कि 'इंडिया टीवी' के लोकप्रिय कार्यक्रम 'आप की अदालत' पर भी इन्होंने कविता लिखी। रजत शर्मा के इस शो की खासी लोकप्रियता है और इसके 21 साल पूरे होने पर लिखी गई कविता बेहद प्रासंगिक है।
पढ़ें:-आप की अदालत के 21 वर्ष पूरे होने पर लिखी शकील अख्तर की कविता
गज़ल गायक जगजीत सिंह को भी अपनी कविता के जरिए उन्होंने श्रद्धांजलि दी है। भोपाल, मुंबई जैसे शहरी जीवन के संघर्ष की झलक भी इनकी कविताओं में है।
किताब के पांचवें खंड 'फिर भी दिल है हिंदुस्तानी' में 'आजादी का इतिहास गीत' अपने आप में बेमिसाल है। वर्षों पहले रचित देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत इस गीत का गायन देश के विभिन्न शहरों के साथ ही विदेशों में भी हुआ है। 'करगिल के शहीदों के नाम' कविता देश पर प्राण न्यौछावर करनेवाले सैनिकों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि है।
देश पर ये ज़िदंगी निसार कर चले
लहू से अपनी माँ का सिंगार कर चले
अपनी ये जवानी बहार कर चले
लहू से अपनी माँ का सिंगार कर चले
उनका लिखा आज़ादी का इतिहास गीत- 'वंदे मातरम्' गीत भी अपनी तरह का पहला गीत है।
शकील की कविताओं में अध्यात्म का भी प्रबल पक्ष देखने को मिलता है। राम भजन, देह धरे क्यों आत्मा.. के अतिरिक्त कई ऐसी कविताएं हैं जो अध्यात्म की गहराई में ले जाती हैं। किताब के आखिरी और आठवें खंड 'दिल द ड्रामा' में 'टीन कनस्तर बजते हैं खाली पेट हम हंसते हैं'...बेरोजगारी पर कटाक्ष करता हुआ एक बेहतरीन जनगीत है जिसमें कवि नागार्जुन की ध्वनि प्रतिबिंबित होती है।
शकील की इस किताब की सभी रचनाएं आजाद ख्याल नग्मे हैं जहां छंदों का कोई बंधन नहीं है। ये कविताएं, गजल और कविता के लिए जरूरी छंद और बहर की शास्त्रीय कसौटियों पर भले ही खरी नहीं उतरती हैं लेकिन अपनी अनुभूतियों की गहराई और भाव की प्रबलता में छंदबद्ध कविताओं पर भारी प्रतीत होती हैं।
यह किताब इस लिंक पर भी उपलब्ध है
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