इटानगर: रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारत और चीन के बीच विभिन्न मुद्दों पर वार्ता की हिमायत करते हुए रविवार को कहा कि दोनों देशों के बीच मतभेदों को विवाद नहीं बनने देना चाहिए। सीतारमण ने कहा कि भारत और चीन को एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए तथा वार्ता के जरिए मुद्दों का हल करना चाहिए। साथ ही, शांति एवं समृद्धि के लिए हाथ मिलाना चाहिए। मंत्री ने कहा कि रक्षा, सीमा मसला और हिंद महासागर में भारतीय एवं चीनी रक्षा बलों की मौजूदगी जैसे कई मुद्दे हैं, जिनका निरंतर वार्ता के जरिए हल किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि प्रतियोगिता होना सामान्य बात है लेकिन प्रतिस्पर्धा को संघर्ष में नहीं तब्दील होने देना चाहिए। मतभेदों को विवाद नहीं बनने देना चाहिए।
सीतारमण ने कहा कि वार्ता और शांतिपूर्ण संपर्क में समाधान निहित है। लेकिन इसके लिए आपसी विश्वास अवश्य होना चाहिए। उन्होंने ‘‘उभरते एशिया के लिए भारत -चीन संबंध मजबूत करने की ओर’’ विषय पर एक व्याख्यान में यह कहा। चीन के साथ व्यापार बुम ला दर्रा से होकर खोले जाने के मुख्यमंत्री पेमा खांडू के प्रस्ताव पर सीतारमण ने कहा कि सिक्किम के नाथूला और मणिपुर के मोरेह स्थित मौजूदा सीमावर्ती हाटों की तरह दोनों देशों के सीमावर्ती गांवों के साथ व्यापार संभव है। हालांकि, उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच व्यापार संतुलन चीन के पक्ष में है।
उन्होंने कहा, ‘‘भारत और चीन के बीच बड़े पैमाने पर व्यापार होता है, जो 80 से 90 अरब डॉलर के बीच है। लेकिन दुखद है कि हम उनसे बड़ी मात्रा में आयात करते हैं। लेकिन हमारे उत्पादों के लिए उनका बाजार खुला हुआ नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां दोनों देश सहयोग कर सकते हैं, खासतौर पर आतंकवाद रोकने और सतत विकास को बढ़ावा देने में । मंत्री ने भारत और चीन को समूचे विश्व के लिए संवृद्धि का इंजन बताते हुए कहा कि दोनों देशों के आगे बढ़ने से उभरते एशिया का मार्ग प्रशस्त होगा।
एशिया में शांति, सुरक्षा और विकास तभी संभव है जब भारत और चीन विकसित होंगे। दोनों देशों का विकास तभी होगा जब दोनों के बीच परस्पर सम्मान और तालमेल होगा। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उद्धृत करते हुए कहा कि दोनों देशों को विकास के लिए सम्मान, संवाद, सहयोग, शांति और समृद्धि के मंत्र का अनुपालन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र, विश्व मुद्रा कोष, विश्व बैंक आदि जैसे बहुपक्षीय मंचों पर हम जैसे विशाल जनसंख्या वाले देशों का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। भारत और चीन को आपसी फायदे के लिए संयुक्त रूप से मुद्दे उठाने चाहिए।